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‘इंसान को अपनी औकात भूलने की बीमारी है, कुदरत उसकी औकात याद दिलाने की अचूक दवा है ‘। आज इसका प्रत्यक्ष उदाहरण सामने है –एक छोटा सा वायरस कोरोना पूरे विश्व को घुटने पर ला दिया है।इतना अति आधुनिक तकनीक और हथियार रखने के वावजूद भी उसने कोरोना वायरस के समक्ष हथियार डाल दिया है कुदरत द्वारा भेजी गई इस वायरस का ये असर है कि पूरी दुनिया एक खौफ के साये में जी रही है, अबोध बच्चे तक कोरोना का नाम लेते ही सहम जाते है।
संसार में मृत्यु सत्य है शेष सब कुछ मिथ्या है, यह जानते हुए भी इंसान तरह तरह के कर्म करता है। अपने आप को अमर की बेल पर बैठा हुआ समझता है । इंसान सिर्फ मृत्यु से बचने के लिए कोरोना वायरस को काल के रूप मे देख रहा है ।कुदरत ने इसे अदृश्य बनाया है नही तो इंसान इसे अबतक खत्म कर चुका होता ।सरकार कितना ही सख्त से सख्त कानून बना ले उसे पूरी तरह से पालन न करना इंसान ने अपनी फ़ितरत में शामिल कर लिया है। किंतु देखिए वही इंसान कोरोना संक्रमण से बचने के लिए सारे नियम कानून का वखूबी पालन कर रहा है ।यहाँ तक कि यह जान ले कि उसके किसी अतिप्रिय व्यक्ति की जांच रिपोर्ट कोरोना positive आई है तो वह उससे ऐसा दूर भागता है कि मानो हिंसक जानवर को देखकर भाग रहा हो।
वाकई यही पर ईश्वर का प्रत्यक्ष आभास होता है और किसी कवि द्वारा रचित कविता की यह पंक्ति याद आ जाती है –‘खटपट होते देख दौड़े बिना खटपट झटपट आये है समाये झटपट में’। कहने का तात्पर्य यह है कि इंसान की जिंदगी पर जब खुद खतरा मंडराने लगता है तब जाकर उसकी आँखे खुलती है ।उसको सब पूजा पाठ, दान धर्म, सहानुभूति मदद सब याद आने लगती है और बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगता है ।सत्य तो यही है जो यहाँ से लिया है उसे यही चुका कर मनुष्य को यहाँ से जाना पड़ता है –अर्थात् अपने कर्म का फल इंसान को इसी जन्म में चुकाना पड़ेगा।
डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी दावे या आंकड़े की पुष्टि नहीं करता है।
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