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जिस तरह से विश्व में बीमारियों की संख्या बढ रही है, उसके लिए अलग-अलग विशेषज्ञों (Experts) की जरूरत महसूस होने लगी है। आज से कुछ वर्ष पहले तक माइक्रोबॉयोलॉजी (Microbiology) से संबंधित पढाई ही विभिन्न संस्थानों में होती थी, लेकिन मेडिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट (Medical Microbiologist) की बढती मांग को देखते हुए अब इसकी पढाई अलग से होने लगी है।
माइक्रोबायोलॉजी (Microbiology) से कैसे है अलग
यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल साइंसेज छत्रपति शाहू जी महाराज, कानपुर, (University Institute of Paramedical Sciences Chhatrapati shahu Ji Maharaj, Kanpur) के कोऑर्डिनेटर डॉक्टर (Coordinator Doctor) प्रवीण कटियार के अनुसार, अमूमन लोगों की स्वास्थ्य समस्याओं को मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी (Medical Microbiology) के तहत हैंडल किया जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो फंगस (Fungus), त्वचा रोग (Skin Diseases) व बैक्टीरिया (Bacteria) और परजीवियों and Parasites) से पैदा होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं को मेडिकल (Health Problem) माइक्रोबायोलॉजिस्ट डायग्नोस (Microbiologist Diagnosis) करता है, वहीं पौधों व अन्य वस्तुओं पर बैक्टीरिया (Bacteria) के दुष्प्रभावों का इलाज माइक्रोबायोलॉजिस्ट (Microbiologist) करता है।
कोर्स और योग्यता (Qualification)
अधिकतर संस्थानों में माइक्रोबायोलॉजी (Microbiology) के अंतर्गत ही इसकी पढाई होती है, लेकिन कुछ संस्थान इसकी पढाई अलग से कराने लगे हैं। प्रमुख संस्थानों में डिग्री कोर्स (Degree Course) उपलब्ध होते हैं। इस क्षेत्र में इंट्री के लिए छात्र को 12वीं में फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी (12th PCB) जैसे विषय जरूरी हैं। डॉ. प्रवीण कहते हैं कि इस क्षेत्र में आने केलिए कुछ खास विषयों पर पकड होना अहम होगा। यहां पर ह्यूमन एनाटोमी (Human Anatomy), बायोफिजिक्स (Biophysics), मेडिकल लैबोरेटरी टेक्निक (Medical Laboratory Technical), इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी (Industrial Microbiology), क्लिनिकल पैथोलॉजी (Clinical Pathology) आदि की पढाई होती है।
कई हैं शाखाएं (Branches)
मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी (Medical Microbiology) के अंतर्गत अनेक शाखाएं हैं। इम्युनोलॉजी (Immunology) के अंतर्गत माइक्रोबायोलॉजी (Microbiology) पर जोर रहता है, जिसकी मदद से लोगों की प्रतिरोधी शक्तियों को बढाने का काम किया जाता है। वहीं पैरासिटोलॉजी (Parasitology) में परजीवियों (Parasites) का अध्ययन किया जाता है। ये परजीवी (Parasite) बैक्टीरिया (Bacteria), वायरस (Virus) इत्यादि सामान्य तौर पर शरीर के कुछ खास अंगों पर हमला कर उन पर साइड इफेक्ट छोडते हैं।
क्या है स्कोप (Scope)
माइक्रोबायोलॉजिस्ट के लिए काम का स्कोप काफी बढ चुका है। यहां माइक्रोबायोलॉजी (Microbiology) में पीजी (Post Graduation), पीएचडी (Doctor of Philosophy) करके आप मेडिकल कॉलेजों (Medical College) में बतौर फैकेल्टी मेंबर (Faculty Member) ज्वाइन कर सकते हैं। जॉब (Job) के नजरिए से देखें तो आपके पास लैब पैथोलॉजी (Lab Pathology), फार्मास्युटिकल, बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री (Pharmaceutical-Biotechnology Industry) में काम के बढिया मौके हैं। माइक्रोपैथोलॉजी लैब (Micropathology Lab) खोलकर स्वरोजगार (Self-Employment) का विकल्प भी आपके पास होता है।
एमसीआई (Medical Council of India) का दिशा-निर्देश
देश में प्राइवेट मेडिकल कॉलेज (Private Medical Colleges) में योग्य फैकल्टी की कमी को पूरा करने के लिए एमसीआई (Medical Council of India) ने कुछ निर्देश दिए हैं, जिसके तहत देश में खुल रहे प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों (Private Medical Colleges) में अब नॉन मेडिकल स्टॉफ (Non-Medical Staff) की भी नियुक्ति हो सकेगी। काउंसिल की गाइडलाइन के अनुसार, इन कॉलेजों में होने वाली तीस फीसदी भर्ती अब उन नॉन मेडिकल (Non-Medical Staff) छात्रों में से हो सकेगी, जिनके पास माइक्रोबायोलॉजी (Microbiology) में पीजी (Post Graduation), पीएचडी (Doctor of Philosophy) डिग्री है। कहा जा सकता है कि माइक्रोबायोलॉजी (Microbiology) के क्षेत्र में एमसीआई (Medical Council of India) के ये दिशा निर्देश युवाओं को नए मौके (Opportunity) देते नजर आ रहे हैं।
प्रमुख इंस्टीट्यूट (Institute)
एम्स, दिल्ली (All India Institute of Medical Sciences, New Delhi)
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस (Banaras Hindu University, Banaras)
दिल्ली यूनिवर्सिटी, दिल्ली (University of Delhi)
अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ (Aligarh Muslim University, AMU, Aligarh)
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, हिसार (Chaudhary Charan Singh University, Hisar)
गुरु नानकदेव यूनिवर्सिटी, अमृतसर (Guru Nanak Dev University, Amritsar)
सीएसजेएमयू, कानपुर (Chhatrapati Shahu Ji Maharaj University, Kanpur)
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