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आधुनिक विचारों के धनी भारतीय युवा
युवा किसी भी देश के विकास में महत्वपूर्ण होते हैं, उन्हें अच्छे बनने की प्रेरणा इतिहास से मिलती है। भारत को युवाओं का देश कहा जा सकता है और देश की तरक्की में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। आज ही नहीं, आजादी से पहले ही युवा देश के विकास और आजादी में काफी आगे रहे हैं। देश के पूरे स्वतंत्रता आंदोलन (Independence Movement) में युवाओं का जोश व मजबूत इरादा हर जगह नजर आया है। चाहे वह महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के नेतृत्व में अहिंसात्मक आंदोलन या फिर ताकत के बल पर अंग्रेजों को निकाल बाहर करने का इरादा लिए युवा क्रांतिकारी, सभी के लिए इस दौरान देश की आजादी के सिवाय बाकी सभी चीजें गौण हो गई थीं। स्कूल, कॉलेज राष्ट्रीय गतिविधियों के प्रमुख केंद्र बन रहे थे। इस दौरान शिक्षा का मतलब ही राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली बन गया था। जिसके अंतर्गत अंग्रेजी स्कूलों मिशनरी शिक्षा संस्थानों का बहिष्कार किया गया।
भगत सिंह (Bhagat Singh)
23 साल की उम्र बहुत नहीं होती। उम्र के जिस पडाव पर आज के युवा भविष्य, कॅरियर की उधेडबुन में रहते हैं भगत सिंह (Bhagat Singh) ने उसी उम्र में अपना जीवन ही राष्ट्र के नाम कर दिया था। दुनिया उन्हें फिलोशफर रिवोल्यूशनर के नाम से जानती है , जो गोली बंदूक की धमक से ज्यादा विचारों की ताकत पर यकीन रखते थे। डीएवी कॉलेज, लाहौर से शिक्षित भगत सिंह अंग्रेजी, हिंदी, पंजाबी, उर्दू पर बराबर अधिकार रखते थे। लेकिन ऐसे प्रतिभावान युवा के लिए जीवन की सुखद राहें इंतजार ही करती रह गई, क्योंकि उनका रास्ता तो कहीं और से जाना तय लिखा था- जी हां, बलिदान की राह का पथिक बन भगत सिंह ने अपना नाम सदा सदा के लिए इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया और इतने वर्षों के बाद भी आज हर युवाओं के धडकन में समाए हुए हैं।
चंद्रशेखर आजाद (Chandrasekhar Azad)
छोटी सी उम्र लेकिन हौसले इतने बुलंद कि दुनिया की सबसे ताकतवर सत्ता भी उसके आगे बेबस नजर आई। केवल पंद्रह साल की उम्र में जेल गए, अंग्रेजों के कोड़े खाए। फिर तो इस राह पर उनका सफर, शहादत के साथ ही खत्म हुआ। हम बात कर रहे हैं अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की। मां की इच्छा थी कि उनका चंदू, काशी विद्या पीठ से संस्कृत पढ़े। जिसके लिए उन्होंने वहां प्रवेश भी लिया, लेकिन नियति ने तो उनके लिए कुछ और ही तय कर रखा था।
सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose)
समृद्ध परिवार, असाधारण मेधा , बेहतर शक्षिक माहौल। कहने के लिए तो एक शानदार कॅरियर बनाने की वो सारी चीजें उनके पास मौजूद थी, जिनकी दरकार छात्रों को होती है। लेकिन सुभाष ने वो चुना जिसकी जरूरत भारत को सर्वाधिक थी। आजादी की। 1918 में सुभाष चंद्र बोस ने स्कॉटिश चर्च कॉलेज (कलकत्ता यूनिवर्सिटी) ने स्नातक किया। उसके बाद आईसीएस की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। वो चाहते तो एक सुविधाजनक, एशोआराम का जीवन उनके कदमों पर होता। लेकिन इसे ठुकराकर उन्होंने देश की स्वतंत्रता का संघर्षमय मार्ग चुना। पूरी दुनिया की खाक छानी, फंड जुटाया, आईएनए का गठन किया और ब्रिटिश शासन की जड़ें हिला दीं।
स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda)
स्वामी विवेकानंद के पास 1884 में वेस्टर्न फिलॉसपी में बीए करने के बाद विकल्पों की कमी नहीं थी, लेकिन उनका संकल्प तो राष्ट्र सेवा था। उन्होने निराशा में गोते लगा रहे युवा वर्ग को उस समय उठो जागो लक्ष्य तक पहुंचे बिना रूको मत का मंत्र दिया तो वहीं भारत की गरिमा दोबारा स्थापित की। भारत में उनका जन्म दिवस 12 जनवरी युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। अरविंद घोष, सरदार वल्लभ भाई पटेल, सुरेंद्रनाथ बनर्जी जैसे बहुत से लोगों को इस सूची में स्थान दिया जा सकता है।
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