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हमारे एजुकेशन सिस्टम में कई खामियां हैं, जिसके चलते बहुत से अच्छे स्टूडेंट अपने टैलेंट का सही प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं। उन्हें मौका ही नहीं मिलता है। मोटिवेशन की बहुत कमी है। अगर स्टूडेंट को मोटिवेट किया जाए, तो वे भी बेहतरीन परफॉर्मेस करके दिखा देंगे कि हम किसी से कम नहीं।
टैलेंट है, सिस्टम ठीक नहीं
इंटरनेशनल लेवल पर किसी भी बडी से बडी कंपनी को देखें। सभी जगह इंडियन टैलेंट दिखाई दे जाएगा। फॉरेन कंपनियां इंडियन यूथ को हाथों हाथ ले रही हैं। ये यूथ इंडिया में ही एजुकेशन लेकर जाते हैं, लेकिन क्या वजह है कि बेटर वर्क परफॉर्मेस के बाद भी हमारे यहां का कोई भी इंस्टीट्यूट वर्ल्ड के टॉप 200 इंस्टीट्यूट्स की लिस्ट में शामिल नहीं है। वजह सिर्फ एक है। हमारा सिस्टम ही ठीक नहीं है। जबकि हम इस पर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं।
टैलेंट जस्टिस और चांस
किसी की भी एजुकेशन क्वॉलिटी को हम उसके एग्जाम में लाए गए मॉर्क्स से जज नहीं कर सकते। इसका डिसीजन क्वॉलिटी वर्क से होता है। टॉप एजुकेशन इंस्टीट्यूट के स्टूडेंट्स की परफॉर्मेस से बेटर परफॉर्मेस कई बार छोटे इंस्टीट्यूट के स्टूडेंट्स दे देते हैं। कारण सिर्फ यही है कि उनमें टैलेंट की कमी नहीं है, बस कमी थी तो मार्क्स और फेयर चांस की। टैलेंट को पहचानें, जस्टिस करें, चांस दें। मोटिवेशन होगा तो स्टूडेंट बेटर परफॉर्मेस देने लगेंगे।
सब्जेक्ट इंट्रेस्टिंग हो
बहुत से स्टूडेंट्स का एजुकेशन या किसी एक सब्जेक्ट से मन हट जाता है। जोर देकर उन्हें हम सब्जेक्ट पढाते हैं। इसका कोई बेनिफिट नहीं होता है। हमें अपने सब्जेक्ट्स को इंट्रेस्टिंग बनाना होगा, ताकि स्टूडेंट्स का इंट्रेस्ट जगे। वे इसे एंज्वॉय के साथ लें। देखिएगा, वे कितनी तेजी से सब्जेक्ट्स पर कमांड कर लेंगे। इसके लिए सबसे जरूरी है कि हम फिजिकली मॉडल्स के बेस पर उन्हें इन्फॉर्मेशन देने की कोशिश करें।
हो क्वॉलिटी टीचर्स
एजुकेशन सेक्टर में क्वॉलिटी टीचर्स की कमी है। अच्छा टैलेंट जॉब के लिए दूसरे फील्ड में चला जाता है। इसके पीछे मेन रीजन है कि अपने यहां टीचर्स को फ्रीडम और सैलरी दोनों कम हैं। हम चीप थ्योरी के कॉन्सेप्ट पर चल रहे हैं। जब तक क्वॉलिटी टीचर्स एजुकेशन सेक्टर में नहीं आएंगे, तस्वीर नहीं बदलेगी। टीचर को रेस्पेक्ट दें, फैसिलिटी दें, वे बेटर करने लगेंगे। क्वॉलिटी वर्क चाहिए तो प्राइस तो देना ही होगा।
जापान से पीछे क्यों?
टेक्निकल फील्ड में हम तेजी से आगे बढे रहे हैं, लेकिन अभी भी हमारी टेक्नोलॉजी और जापानी टेक्नोलॉजी में जमीन आसमान का अंतर है। हम थ्योरिटिकल बेस ज्यादा हैं, वहीं जापान में प्रैक्टिकल को एजुकेशन का आधार बनाया गया है। टेक्निकल फील्ड में जब तक प्रैक्टिकल पर हमारा फोकस नहीं होगा, तब तक हम जापान की बराबरी नहीं कर पाएंगे।
मोटिवेशन से चेंज
मेरा एक्सपीरियंस है कि टैलेंट की देश में कमी नहीं है। बस कमी है तो हम उन्हें मोटिवेट नहीं करते। बहुत से स्टूडेंट ऐसे प्रोजेक्ट्स बना देते हैं, जिसे देखकर एक बार लगता है कि यह पॉसिबल नहीं है, लेकिन जब गौर किया जाता है तो जवाब सामने आता है, हां। हो सकता है। ऐसे प्रोजेक्ट्स को सपोर्ट करना चाहिए और उन्हें बनाने वालों को मोटिवेट। नई चीज की शुरुआत आइडिया और एक्सपेरिमेंट के बेस पर होती है, लेकिन बहुत सी जगहों पर अच्छे आइडिया को बिगनिंग स्टेज में ही दबाकर खत्म कर दिया जाता है।
रिमूव इंपॉसिबल वर्ड
स्टूडेंट इंपॉसिबल शब्द अपनी डिक्शनरी से हटा दें। हर चीज पॉसिबल है। प्रैक्टिस मेक्स मैन परफेक्ट। वर्क करें, रुकें नहीं। सूरज की रोशनी कभी छिप नहीं सकती। समय लग सकता है लेकिन क्वॉलिटी है, तो वह कहीं न कहीं सामने आ ही जाएगा। सक्सेस मिलेगी, कॉन्फिडेंस बढेगा तो आप खुद-ब-खुद बेटर से बेस्ट की ओर बढ जाएंगे।
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