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Story of Successful Candidates in Civil Service- प्रशासनिक सेवा में सफल अभ्यर्थियों की दास्तान

नई इबारत नई मंजिल
नई इबारत नई मंजिल
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Shah Faisalमहज 18 साल की उम्र में अपने स्कूल टीचर पिता के आतंकवादियों द्वारा मारे जाने के बावजूद शाह फैसल (Shah Faisal) ने हिम्मत नहीं हारी। सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा (Civil Services Preliminary Examination) के लिए आवेदन करने वाले कुल 4 लाख, 93 हजार उम्मीदवारों में से अंतिम रूप से चुने जाने वाले 875 अभ्यर्थियों में पहला स्थान हासिल कर फैसल ने अपने पिता को न केवल सच्ची श्रद्धांजलि दी है, बल्कि अपनी मां (जो खुद स्कूल टीचर हैं) के सपने को सच करके दिखाया है।


तोड़ा तिलिस्म

आईएएस में टॉप करने के अपने राज को खोलते हुए उन्होंने कहा, मैं लंबे समय से चली आ रही इस धारणा को तोड़ना चाहता था कि कश्मीरी इस एग्जामिनेशन को क्वालिफाई नहीं कर सकते। पहले ही अटेम्ट में आईएएस के तिलिस्म को तोड़कर मैंने इस धारणा को झुठला दिया। कामयाबी के मूलमंत्र के सवाल पर फैसल कहते हैं, एकाग्रता और समर्पण ही मेरा मूलमंत्र रहा है। भावी प्रतियोगियों को मैं पांच महत्वपूर्ण सुझाव देना चाहूंगा :


भाषा पर पकड़ बनाएं

हावभाव यानी एक्सप्रेशन संतुलित हों

क्रिएटिविटी डेवलप करें

बहुमुखी ज्ञान अथवा डाईवर्स नॉलेज

किसी भी मुददे पर निष्पक्ष राय


कुपवाड़ा से श्रीनगर

जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) में कुपवाड़ा (Kupwara) को गेटवे ऑफ मिलिटेंसी के नाम से जाना जाता है यानी इस इलाके में सरहद पार से आतंकवादियों की सर्वाधिक घुसपैठ होती है। इसी जिले के सोगम-लोलाब  (Sogam-Lolab) में 17 मई, 1983 को फैसल का जन्म हुआ था। आरंभ से ही होनहार स्टूडेंट रहे फैसल ने गवर्नमेंट हाईस्कूल, सोगम से डिस्टिंक्शन के साथ 10वीं पास किया। इसके बाद उनका दाखिला श्रीनगर (Srinagar) के टाइंडेल बिस्को स्कूल में कराया गया, जहां से उन्होंने 12वीं में 500 में से 485 अंक हासिल किए। सरकारी स्कूल में अध्यापक पिता गुलाम रसूल अपने अपने दो होनहार बेटों और एक बेटी के साथ हंसी-खुशी जीवन बिता रहे थे। अकस्मात एक दिन जैसे उनके परिवार की खुशी को किसी की नजर लग गई। 3 जुलाई, 2002 की उस काली रात आतंकियों ने उनके दरवाजे पर दस्तक दी और अपने घर में पनाह देने तथा भोजन की व्यवस्था करने की मांग की। गुलाम रसूल मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी कर रहे बेटे फैसल की दुहाई देते हुए उनके सामने गिडगिडाते रहे, लेकिन उन्होंने उनकी एक न सुनी और अंतत: सबके सामने उन्हें गोली मार कर मौत की नींद सुला दिया। इस हादसे से दहशत में आया उनका परिवार सोगम छोडकर श्रीनगर आ गया।


बदला इरादा

पिता की हत्या के एक दिन बाद ही फैसल को मेडिकल एंट्रेंस में सम्मिलित होना था। इस सदमे के बीच ही उन्होंने परीक्षा दी और सभी को आश्चर्य में डालते हुए कामयाबी हासिल की। श्रीनगर के शेरे कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज कॉलेज से एमबीबीएस करने के बाद फैसल ने हाउस जॉब न करने का निर्णय लिया। इस दौरान वे सूचना के अधिकार अभियान में भी खूब सक्रिय रहे।


आईएएस का जुनून

फैसल का मानना रहा है कि, अगर आप व्यवस्था में बदलाव चाहते हैं, तो आपको सिविल सेवा जरूर ज्वाइन करनी चाहिए। उनकी मां जो खुद भी सरकारी स्कूल में टीचर हैं, कहती हैं, आईएएस के लिए उसमें गजब का जुनून रहा है। वह मुझसे पूछता था कि उसे मेडिकल कॉलेज में क्यों दाखिल कराया गया? जवाब में मैं उससे कहती थी कि मैंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि मैं उसका भविष्य सुरक्षित करना चाहती थी। मुझे खुशी है कि उसने अपने सपने को सच कर दिखाया। कश्मीर यूनिवर्सिटी (Kashmir University) द्वारा संचालित सिविल सेवा परीक्षा की कोचिंग में भी उन्होंने टॉप किया। 2009 की सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा पास करने के बाद मुख्य परीक्षा की तैयारी के लिए वे दिल्ली आ गए।


ट्रिक और स्ट्रेटेजी

यह पूछने पर कि उन्होंने आईएएस टॉप करने के लिए कौन-सी खास ट्रिक अपनाई, इसके जवाब में फैसल का कहना है कि, मैं शुरू से ही यही मानकर चला कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। आपको अपना लक्ष्य पता होना चाहिए और उसके लिए ईमानदारी से परिश्रम करना चाहिए। मैंने यही स्ट्रेटेजी और ट्रिक अपनाई। वह कहते हैं, मैंने ज्यादा देर तक नहीं पढ़ा, पर जो पढ़ा मन लगाकर पढ़ा। स्मार्ट वर्क किया। मैं कभी भी लगातार लंबे समय तक नहीं पढ़ता था। मेरा मानना है कि एंटरटेमेंट भी जरूरी चीज है। इसके लिए मैं कश्मीरी संगीत और नुसरत फतेह अली खान को सुनता था।


अलग करने की इच्छा

श्रीनगर स्थित शेरे कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज से एमबीबीएस करने वाले फैसल से जब पूछा गया कि मेडिकल फील्ड में करियर बनाने की बजाय उन्होंने प्रशासनिक सेवा (Administrative Services) में जाने का निर्णय क्यों किया? इसके जवाब में वे कहते हैं, मैंने लोगों की सेवा करने के लिए ही सिविल सेवा में आने का मन बनाया। हालांकि डॉक्टर बनकर भी मैं यह काम कर सकता था, लेकिन उसका दायरा बहुत सीमित होता। इसके अलावा सिविल सेवा में आने के बाद आप जनता की भलाई को ध्यान में रखते हुए जननीतियों को भी तैयार कर सकते हैं। इस क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद लोगों के लिए काम करने की अपार संभावनाएं रहती हैं।


क्या थे सब्जेक्ट

प्रारंभिक परीक्षा में मेरा सब्जेक्ट पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन था, जबकि मुख्य परीक्षा में पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन और उर्दू साहित्य विषय थे। तैयारी के दौरान मैंने कॉम्प्रिहेंसिव स्टडी पर ध्यान देते हुए भाषा, उच्चारण और कम्युनिकेशन स्किल पर भी पूरा ध्यान दिया। इसके अलावा जो भी पढ़ा , सभी विषयों में कोरिलेशन का ध्यान रखा। एमबीबीएस के सब्जेक्ट लेने की बजाय नए विषय लेने के बारे में उन्होंने तर्क है कि, चूंकि मेरा लक्ष्य आईएएस था, इसलिए पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन मुझे सही लगा। लोगों के लिए लोगों के बीच रहकर काम जो करना है, इसलिए यह विषय पूरी तरह प्रासंगिक है। इसके अलावा उर्दू से मेरा जज्बाती रिश्ता है। फैज अहमद फैज और इकबाल की शायरी मुझे बहुत पसंद है।


पीड़ा से मिली प्रेरणा

झुग्गी-झोपडी में अभावों के बीच रहकर पहले ही प्रयास में आप सिविल सर्विसेज एग्जाम में अच्छी रैंक हासिल कर सकते हैं। इसका जीवंत उदाहरण हैं दिल्ली के हरीश चंद्र  (Harish Chandra) जो 21 साल की उम्र में ही कॉलेज की लाइब्रेरी, पार्क और लॉन में तैयारी कर ले आए 309 वीं रैंक..

मैं बचपन से अभावों के बीच पला-बढ़ा हूं। मेरी मां ने दूसरों के घरों में बर्तन धोकर और मेरे पिता ने दिहाडी मजदूरी कर मेरी परवरिश की। जब से मैंने होश संभाला, अपने माता-पिता और घर की हालत देख मुझे अत्यधिक पीड़ा होती रही है। हालांकि मैंने कोई चमत्कार होने का सपना नहीं देखा, लेकिन बारहवीं के बाद जब मैंने हिन्दू कॉलेज (Hindu College) में एडमिशन लिया, तो जैसे मेरी दुनिया ही बदल गई। एक तरह से कहा जाए, तो यह मेरी जिंदगी का टर्निग प्वाइंट था। दरअसल, हिंदू कॉलेज में शुरुआत से ही मुझे पढ़ाई का बहुत अच्छा माहौल मिला। इससे मेरा आत्मविश्वास कई गुना बढ़ गया। उसी समय से मैं आईएएस बनने के बारे में सोचने लगा।


दोस्त ने दिखाई दिशा

दसवीं तक पढ़ाई के साथ-साथ दुकान में काम भी करता था। इसलिए ठीक से पढ़ाई न हो पाने के कारण बहुत कम मा‌र्क्स आए। बारहवीं में दुकान छोडकर पढ़ाई के साथ-साथ ट्यूशन पढ़ाने लगा। इससे काफी फायदा पहुंचा और बारहवीं में 80 प्रतिशत अंक आए। कॉलेज में सहपाठी आशु मिश्रा ने मेरी आंखें खोल दीं। इससे पहले मैं खुद को हीन समझता था, लेकिन आशु के जज्बे ने मुझे आगे बढ़ने के लिए काफी प्रेरित किया। आशु नेत्रहीन है, इसके बावजूद वह पॉजिटिव अप्रोच रखता है और फिर भी आगे बढ़ रहा है। उससे प्रेरित होकर मैं खुद को आगे बढ़ाने में जुट गया। इसके अलावा रिक्शा चालक के बेटे गोविंद जायसवाल की सफलता से भी काफी प्रभावित हुआ और मन में यह विश्वास हो गया कि साधनहीन व्यक्ति भी अपने प्रयास से आईएएस बन सकता है। इसके अलावा मुझे माता, पिता और टीचर का भरपूर सहयोग मिला।


टुकडों में बनाया लक्ष्य

आर्थिक स्थिति अच्छी न होने की वजह से टुकड़ों में लक्ष्य निर्धारित किया और उसे प्राप्त करने में लग गया। सबसे पहले अपने विषयों पर पकड़ बनाई। इससे कॉन्फिडेंस बढ़ता गया। यूनिवर्सिटी की तरफ से स्कॉलरशिप मिलती थी। इस कारण पढ़ने में अधिक परेशानी नहीं हुई। पैरेंट्स के सहयोग से कुछ अलग करने के लिए उत्साहित हुआ। सबसे पहले बीए की पढ़ाई मन लगाकर की। मुझे बीए में 64 प्रतिशत अंक मिले। बीए में मेरा सब्जेक्ट पॉलिटिकल साइंस और फिलॉसफी था। इन्हीं दो विषयों से आईएएस बनने का ख्वाब देखने लगा। परीक्षा देने के लिए उम्र कम थी। इसलिए एमए किया और पहले प्रयास में ही जेआरएफ मिल गया।


नियमित पढाई जरूरी

आईएएस की तैयारी के लिए मैं रोज आठ से दस घंटे की पढ़ाई करता था। गंभीर तैयारी एक वर्ष पहले से शुरू कर दी। सबसे पहले पिछले वर्ष के प्रश्नों को देखा और उसी के अनुरूप तैयारी करने लगा। विषयों की तैयारी के लिए समय बांट लिया। अखबार का रोज अध्ययन करता था। इससे करेंट अफेयर्स की तैयारी में काफी मदद मिली। मैं मानता हूं कि सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने के लिए कोचिंग जरूरी नहीं है। कोचिंग सिर्फ दिशा दे सकती है। सफलता खुद के प्रयास से ही मिलती है। मुझे पातंजलि आईएएस कोचिंग से दर्शन शास्त्र की तैयारी के लिए दिशा मिली, जिससे मैं बेहतर स्कोर कर सका।


पहले प्रयास में सफलता

यह मेरा पहला प्रयास था। प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मुख्य परीक्षा की तैयारी में जुट गया। अपनी पढ़ाई घर पर रहकर ही की। खुद को तरोताजा रखने के लिए वाकिंग करता था। क्वेश्चन बैंक और टीचरों के सहयोग से तैयारी में जुट गया। प्रारंभिक परीक्षा में पॉलिटकल साइंस और मुख्य परीक्षा में पॉलिटिकल और फिलॉसफी था। बीए में ये दोनों सब्जेक्ट थे, इसलिए मुख्य परीक्षा में विशेष परेशानी नहीं हुई। मैंने कभी भी अधिक पुस्तकों का अध्ययन नहीं किया। एनसीईआरटी को आधार बनाया। आर्ट्स का स्टूडेंट्स होने की वजह से स्टेटिस्टिक्स में कुछ परेशानियां आई, लेकिन अनवरत अभ्यास से इसमें भी सफल रहा। इंटरव्यू लगभग चालीस मिनट चला और काफी सौहार्दपूर्ण रहा। इंटरव्यू में हिंदी माध्यम का स्टूडेंट्स होने की वजह से किसी तरह की परेशानी नहीं हुई। इंटरव्यू में मुझसे बहुत सारे प्रश्नों के अलावा महापुरुषों के जन्म दिन पूछे जा रहे थे। मुझसे पूछा गया कि 3 मई को किस महापुरुष का जन्मदिन है? मैं सोच में पड़ गया। बाद में बताया कि मैं नहीं जानता। वे फिर भी दिमाग पर जोर देने की सलाह दे रहे थे। अंत में मैंने उत्तर दिया कि इस दिन मेरा जन्म हुआ था। उत्तर सुनते ही सभी हंस पडे। उसी समय मुझे लग गया कि मेरा सेलेक्शन इस परीक्षा में हो सकता है। लेकिन 309 रैंक आएंगी, यह आशा नहीं थी।


थ्री इडियट्स से लें सीख

इस परीक्षा में शामिल होने वाले स्टूडेंट्स से यही कहूंगा कि वे वही करे, जिनमें रुचि हो। पेरेंट्स बच्चों पर अपने विचार न थोपें, बल्कि उन्हें उनकी रुचि के अनुरूप लक्ष्य निर्धारित करने में सहयोग दें। इस मामले में थ्री इडियट बेहतरीन उदाहरण है। आमिर खान ने क्लास में टॉप इसलिए किया, क्योंकि इस क्षेत्र में उनकी रुचि थी। हिंदी माध्यम के स्टूडेंट्स और साधनहीन स्टूडेंट्स भी यदि अपनी रुचि के अनुरूप आईएएस बनने का लक्ष्य निर्धारित करें, तो सफलता अवश्य मिलती है।


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