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भारत की लगभग 8 हजार 118 किलोमीटर लंबी सीमा समुद्री तटों को छूती है। ये विशाल समुद्री तट, लाखों लोगों के लिए रोजगार और जीवन यापन के साधन भी बने हुए हैं। शायद आपका सवाल हो कैसे?
इसका उत्तर है, मछली पकडने के रोजगार के रूप में। मत्स्य पालन का क्षेत्र पिछले कुछ वर्षो में तेजी से बढा है। यही नहीं संयुक्त राष्ट्र संघ के फूड ऐंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार 1990 से 2010 के दौरान भारत का मत्स्य उत्पादन लगभग दुगना हो गया है।
अगर आपने भी बारहवीं की परीक्षा, विज्ञान के बायोलॉजी, फिजिक्स और कैमिस्ट्री विषयों के साथ पास की है तो मत्स्य पालन के क्षेत्र में कॅरियर की संभावनाएं तलाश सकते हैं। इस क्षेत्र में आने के लिए आपको बैचलर इन फिशरी साइंस की डिग्री हासिल करनी होगी। देश के विभिन्न संस्थानों से यह कोर्स किया जा सकता है। बैचलर कोर्स में मछलियों के पालन-पोषण, उनके संरक्षण के बारे में बारीकियां सिखाई और पढाई जाती हैं।
Career 2012 : यहां भी हैं संभावनाएं
पाठ्यक्रम
कॅरियर काउंसलर जितिन चावला, फिशरी साइंस को कई विषयों का सम्मिश्रण के रूप में देखते हैं। इस कोर्स में स्टूडेंट्स को ऑशनोग्राफी, इकोलॉजी, बायोलॉजी और इकोनॉमिक्स के अलावा मैनेजमेंट जैसे तमाम विषय पढाए जाते हैं। साथ ही एक्वाकल्चर, फिश प्रोसेसिंग, फिश न्यूट्रीशन और ब्रीडिंग आदि का अध्ययन भी कोर्स के दौरान कराया जाता है।
इस क्षेत्र की बारीकियां सीखने के लिए चार वर्षीय बैचलर कोर्स किया जा सकता है। विभिन्न संस्थान चार वर्ष के इस कोर्स में अंतिम वर्ष में छह महीनों के लिए फील्ड ट्रेनिंग के लिए भी भेजते हैं। इसके बाद मास्टर इन फिशरी साइंस के विकल्प भी हैं। इस कोर्स की अवधि दो वर्ष की होती है। मास्टर इन फिशरी साइंस के लिए बीएसी/बीएफएससी की डिग्री या फिर जूलॉजी में बीएससी की डिग्री होना आवश्यक है। आप चाहें तो एक्वाकल्चर, फिशरीज बायोलॉजी, फिशरीज मैनेजमेंट, फिश प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी में पीएचडी की डिग्री भी हासिल कर सकते हैं। इन डिग्री कोर्सेज के अलावा कई संस्थान फिशरी मैनेजमेंट में पीजी डिप्लोमा कोर्स भी ऑफर करते हैं।
अवसरों की कमी नहीं
फिशरी साइंस के कोर्स के बाद सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में रोजगार की संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं। ग्रेजुएट छात्रों की नियुक्ति असिस्टेंट फिशरीज डेवलपमेंट ऑफिसर, डिस्ट्रिक फिशरीज डेवलपमेंट ऑफिसर के पदों पर होती है। निजी क्षेत्र की बात करें तो एक्वाकल्चर फार्म और एक्वाक्लचर इंडस्ट्रीज में जहां संभावनाओं की तलाश की जा सकती है वहीं फिश प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज के अलावा क्वालिटी सेंट्रल लैब में भी काम किया जा सकता है।
इस कोर्स के बाद बैंकिंग सेक्टर में एग्रीकल्चर और फिशरी ऑफिसर के रूप में आप काम कर सकते हैं। बात सेंट्रल गर्वमेंट द्वारा मिलने वाली संभावनाओं की करें तो एआरएस यानी एग्रीकल्चरल रीसर्च सर्विस एग्जाम पास करने के बाद सेंट्रल फिशरी संस्थानों जैसे सीएमएफआरआई, सीआईएफए, सीआईएफटी, सीआईबीए आदि में बतौर साइंटिस्ट भी काम किया जा सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि विदेश जाने के लिहाज से भी फिशरी साइंस का कोर्स आपके लिए तमाम राहें खोल सकता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन जैसी संस्थाओं में भी इस कोर्स के बाद संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं। अगर देश में ही रहकर काम करना चाहते हैं तो टीचिंग की दिशा में भी आप आगे बढ़ सकते हैं।
आय
इस क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि आरंभिक चरणों में इस क्षेत्र के प्रोफेशनल्स को 20 से 25 हजार रुपये ऑफर किए जाते हैं, लेकिन जैसे-जैसे काम में निपुणता और अनुभव आता है, आय भी बढती जाती है। काम और अनुभव के आधार पर इस क्षेत्र में प्रति माह लाखों रुपये की आय भी हासिल की जा सकती है।
प्रमुख संस्थान
– कॉलेज ऑफ फिशरी साइंस, पंतनगर, उत्तराखंड
– कॉलेज ऑफ फिशरीज, ढोली, बिहार
– सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज एजुकेशन, मुंबई, महाराष्ट्र
– सेंट्रल मेरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट, कोच्ची, केरल
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