सत्येन्द्र सिंह
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इरादे तो न थे मिलने के हमारे
पर क्यूँ मिल जाते थे वो बहाने से,
था मज़बूत दिल से भी बहुत मैं,
क्यूँ होश उड़ गए नज़रों के निशाने से,
चाहत भी थी, मुहब्बत भी थी
दिल मुस्कुराने लगा खुद के तराने से,
फिर न जाने क्या हुआ कि
वो सरकने लगे कुछ बेगाने सेए
दिल को आहत किया करते रहे
वो बन कर जाने-जाने किन्तु अनजाने से,
कष्ट हुआ पर आँसू गिरा न सका
कि अफ़सोस न हो उन्हें इस दीवाने से
है दुआ कि हँसे और मुस्कुराए वे,
पर न रोकें हमें वो छद्म मुस्कुराने से।
डिस्क्लेमर : उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी भी दावे या आंकड़े की पुष्टि नहीं करता है।
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