सत्येन्द्र सिंह
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न तुम बदले न हम बदले
न वक्त बदला न समाँ बदला
और न बदले ज़ज्बात।
न निगाहें बदली न सीरत बदली
न अरमान बदलें न ख्वाइशें बदलीं
तो क्या बदल गए हालात
न बदला सुबह-सुबह खुदा
से दुआ का वो माँगना
कि खुश रहो तुम और
न बदलो मुस्कुराना तुम
फिर भी लोग कहते हैं
मैं स्वार्थी हूँ
हाँ! हूँ कि तुम खुश रहोगे
तो मैं भी मुस्कुरा दूगाँ।
हाँ, याद आया- न तुम बदले न हम बदले
न वक्त बदला न समाँ बदला
और न बदले ज़ज्बात
हाँ बदला है तो केवल मेरा अंदाज-ए-बयान।
नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं और इसके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं।
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