Ankit Pandey
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आपकी यादें
कुछ रुलाती हैं…
…कुछ हँसाती हैं
मगर महफिल में भी तन्हा कर जाती हैं
जब बैठता हूँ उस पेड़ की ठण्डी छाँव में
तो याद आ जाते हैं वो दिन
जब चला करते थे हम साथ मगर
खोये रहते थे बस एक दूसरे में हम
वैसे तो मिलने को तरसते थे हम
मगर जब मिलते थे तो बस खामोश से रहते थे हम
कहना वो भी चाहते थे बहुत कुछ
कहना हम भी चाहते थे बहुत कुछ
मगर इन खामोशियों की वजह थी शुरुआत कौन करे
शब्द न दें साथ तो बात कौन करे…@
उनके अधरोँ पर वो खूबसूरत मुस्कान कभी न ला पाया मैं
उनकी तन्हाई को खुद की मौजूदगी से भी न मिटा पाया मैं
वो रुठते तो कम थे मगर
जब रुठे तो उनको न मना पाया मैं
बहुत कोशिश की उनकी यादों को मिटाने की
मगर गलती से भी कभी न भुला पाया मैं…..
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