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अगर इस भारतीय तेज गेंदबाज की सहायता न की जाती तो ये अफ्रीका के किसी देश में मजदूरी कर रहा होता

वर्ष 2011 में एक तेज गेंदबाज जिसके हाथों में क्रिकेट का विश्व कप था वह वर्ष 2015 के विश्व कप क्रिकेट के सम्भावित खिलाड़ियों की सूची में भी नहीं है. लेकिन उसे किसी काग़ज के पन्ने पर 15 लोगों की सूची में अंकित कर समेटा नहीं जा सकता. वह उस गाँव के लोगों के दिलों पर राज करता है जिस गाँव में तेज दौड़ते हुए उसने बल्लबाज़ों को परेशान कर विकेट झटकना सीखा. उसके पाँव उन पाँवों में शामिल थे जो अरबों भारतीयों का सीना चौड़ा करने के लिए 28 सालों से लगातार दौड़ रहे थे. वह उन खिलाड़ियों में शामिल है जो दुख, सुख, सम्मान और समृद्धि सबको आते-जाते देखते हैं लेकिन उनमें बहते नहीं. 1990 के दशक में वह नौवीं में था. तब तक उसने तेज गेंदबाज के रूप में स्वयं को स्थापित तो कर लिया था लेकिन और अधिक क्रिकेट नहीं खेलना चाहता था.




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(साभार: यह तस्वीर दि इंडियन एक्सप्रेस से ली गई है)



पारिवारिक पृष्ठभूमि

उसके पिता किसी और के खेतों में काम करते थे और परिवार में भोजन का अभाव हुआ करता था. उस परिवार में बच्चों को ईद के अवसर पर नये कपड़े पहनने को मिलते थे लेकिन वो भी वर्ष अच्छा होने पर! कुछ वर्ष तक विद्यालय में अवकाश होने पर वो एक खपरैल-कारखाने में निर्यात स्तर की गुणवत्तापूर्ण खपरैल का चयन कर उसे डिब्बा-बंद कर बाहर भेजने की तैयारी करते थे. इस आठ घंटे की नौकरी के एवज में वो 35 रूपये कमा कर घर लाते थे. आर्थिक तंगहाली की उनकी विवशता को हर वो इंसान समझ सकता है जो रोजमर्रा की जिंदगी में आने वाले एक से बढ़कर एक झंझावातों का सामना कर जिंदगी में आगे बढ़ने का हौसला रखता है.



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पहला सवेरा

लेकिन उसने खेलना नहीं छोड़ा. गाँव के ही एक जाने-माने युसुफ भाई से उसने उसे क्रिकेट खेलने के लिए बड़ौदा ले चलने का आग्रह किया. उस युसुफ भाई ने न सिर्फ उसे एक क्रिकेट क्लब में शामिल करवाया बल्कि 400 रूपये का एक जूता भी खरीद कर दिया. उस समय तक वह चप्पलों में ही क्रिकेट खेलता था.




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गरीबी से बाहर आने का रास्ता अफ्रीका तक जाता था

लेकिन उसके इस कदम से पिता नाखुश थे. उनकी नाखुशी परिवार के साथ बैठकर खाने के वक्त उसके लिए निकले पिता के तानों से जाहिर होती थी. वो चाहते थे कि उनका बेटा काम में हाथ बँटाये. गरीब कपास के किसानों के उस गाँव में गरीबी से बाहर आने का रास्ता अफ्रीका में जाकर खत्म होता था. हर वर्ष एक या दो युवक जाम्बिया, मौज़ैम्बिक, दक्षिण अफ्रीका अथवा जिम्बाबवे में अपने मित्र या सगे-संबंधियों के यहाँ कारख़ानों या दुकानों में काम की तलाश करते के लिए पहुँचते थे. लेकिन इसमें उसके पिता की कोई गलती नहीं थी. वास्तव में वहाँ कोई जानता ही नहीं था कि क्रिकेट खेलने के ऐसे सुखद और गरीबी दूर करने वाले परिणाम हो सकते हैं.



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एक भी पत्थर उसके घर पर नहीं फेंका गया

बात वर्ष 2007 की है जब वेस्ट इंडीज में भारत विश्व कप से बाहर हो गया था. सभी को बरमूडा और बांग्लादेश के मैच में किसी चमत्कार की उम्मीद थी और इसी कारण भारतीय खिलाड़ियों को विश्व कप से बाहर हो जाने के बाद भी वहाँ रूकना पड़ा था. लेकिन यहाँ भारत में स्थिति दूसरी थी. सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली के रेस्त्रां पर भारतीय खिलाड़ियों के प्रशंसकों ने विश्व कप से भारत के बाहर होने के विरोध में अपना गुस्सा उतारा था. ज़हीर खान के घर पर पथराव किया गया था और एम एस धोनी के घर की एक दीवार को ढ़ाह दिया गया था. तब सचिन ने उससे पूछा, ‘सभी के घरों पर कुछ न कुछ अप्रिय हो रहा है. तुम्हारे घर पर क्या हो रहा है मुन्ना?” इस पर उसने सचिन को जवाब दिया, ‘पाजी जहाँ मैं रहता हूँ वहाँ 8,000 लोग रहते हैं और वही मेरी सुरक्षा है.’ सचिन ने हँसते हुए कहा ठीक है, ‘फिर तो यहाँ से जाने के बाद हम सब तुम्हारे घर पर ही जाकर रूकेंगे.’




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खरा जवाब देने वाला खिलाड़ी

किसी की चिरौड़ी की आदत न रखने वाला यह खिलाड़ी सामने वाले के कद की परवाह किये बगैर खरा जवाब देता है. एक बार एक मैच के लिए उनका चयन होने के बाद और मैच से एक दिन पहले एक राष्ट्रीय चयनकर्ता ने उससे पूछा, ‘क्या तुम फिट हो?’ इस पर उसने तपाक से जवाब दिया, ‘ बिना इसके आपने मेरा चयन कैसे कर लिया? अगर आपको लगता है कि आपने मुझे चुन कर एहसान किया है तो नहीं खेलना मुझे क्रिकेट.’ जवाब सुनते ही वो चयनकर्ता चुपचाप वहाँ से खिसक गया.

इस तेज गेंदबाज का नाम मुनाफ पटेल है. पटेल शहरों की चकाचौंध से दूर अभी भी गुजरात के अपने गाँव इख़ार में ही रहते हैं. Next….







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