ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेट टीम अपने मज़बूत इरादों और अत्यंत प्रतिकूल स्थितियों में भी जीत का इरादा रखने और कई बार जीत जाने के लिये जानी जाती है. ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम की इस जीवटता ने उन्हें वर्षों तक उस पायदान पर रखा जहाँ पहली बार पहुँचना अब भी कई देशों का सपना ही है.
क्रिकेट में कंगारूओं के नाम से जानी जाने वाले इस टीम के खेल का इतिहास ऐसे कई कप्तानों से भरा पड़ा है जो हारते हुए मैच को भी जीते लेने का माद्दा रखते हों. क्रिकेट के मैदान पर इनकी मानसिकता रक्षात्मक न होकर आक्रामक होती है. वर्ष 1950 से ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट खिलाड़ियों की यह मानसिकता इतिहास और भविष्य बनती-बनाती रही है. सर डोनाल्ड ब्रैडमेन के संन्यास के बाद उस वर्ष पहली एशेज मैचों की श्रृंखला खेली जानी थी. गब्बा में लिंडसे हस्सेट के नेतृत्व में ऑस्ट्रेलियाई टीम और इंग्लैंड की टीम का मुकाबला तय हुआ.
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एशेज की इस श्रृंखला के पहले मैच में मेज़बान टीम टॉस जीत पहले बल्लेबाजी करने के लिये मैदान पर उतरी. बल्लेबाजी के अनुकूल मानी जाने वाली इस पिच पर ऑस्ट्रेलियाई टीम 55.5 ओवर में 228 रनों पर सिमट गयी. इन बल्लेबाजों में नील हार्वे ने 10 चौकों की मदद से 74 रन बनाये जो सबसे अधिक थे. पहले दिन का खेल वहीं रूक चुका था. दूसरे दिन ब्रिस्बेन में आँधी चलने के कारण मैच रोक देना पड़ा. तीसरा दिन खिलाड़ियों के लिये विश्राम का दिन था. चौथें दिन इंग्लैंड की टीम बल्लेबाजी के लिये उतरी. जीत समीप नजर आ रहे उनके खिलाड़ियों को ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों ने 22 ओवर में मात्र 68 रनों पर 7 खिलाड़ियों को वापस भेज दिया. इंग्लैंड ने अपने पुछल्ले बल्लेबाजों को चोटो से बचाने के लिए सात विकेट गिर जाने पर ही अपनी पारी घोषित कर दी.
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इसके बाद दूसरी पारी शुरू हुई. देखते ही देखते शून्य रन के स्कोर पर 3 विकेट गिर चुके थे. हालांकि, बेले और बेडसेर ने टीम को संभालने की कोशिश की. 32 रन के स्कोर पर 7 ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी पैवेलियन वापस जा चुके थे. कंगारूओं ने भी अपनी पारी घोषित कर दी. हर दर्शक इस घोषणा पर हैरान था. अब इंग्लैंड की टीम बल्लेबाजी करने उतरी. अंग्रेजो के सामने जीत के लिये कुल 193 रनों का आँकड़ा था. हालांकि, इंग्लिश बल्लेबाज 122 रनों पर ही ढ़ेर हो गये. किसी ने यह उम्मीद भी नहीं की होगी कि 32 रनों पर अपनी पारी घोषित करने के बाद भी ऑस्ट्रेलिया यह मैच जीत जायेगी.Next…
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