भारतीय क्रिकेट टीम की समस्या रही है कि वह घर में तो शेर बनकर रहती है लेकिन विदेशी जमीन पर जाते ही ढेर हो जाती है. क्या हो अनुभवी, क्या हो न्यू टैलेट हर खिलाड़ी विदेशी जमीन पर अपने विरोधी खिलाड़ियों के सामने नतमस्तक दिखाई देती है. यह सिलसिला आज से नहीं बल्कि उस दौर से है जब भारतीय खिलाड़ियों को विदेशों में खेलने के लिए भेजा जाता था.
वर्तमान सीरीज का हाल भी कुछ ऐसा ही है. पिछले दो मैचों में 141 व 134 रनों से मिली हार उस टीम को आइना दिखा गईं जो एकदिवसीय रैंकिंग में शीर्ष पर रहकर अपना रुतबा बयां कर रही थी. दक्षिण अफ्रीका में भारतीय टीम और मेजबान के बीच तीन मैचों की सीरीज का एकदिवसीय मुकाबला खेला जा रहा है जिसमें से दो मैचों में भारतीय टीम को शर्मनाक हार मिली है.
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सीरीज गवां चुकी भारतीय टीम खेल के हर मोर्चे में फेल हुई है. बैंटिंग, गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण में खिलाड़ियों का प्रदर्शन कुछ ऐसा था जैसे पहली बार वह साउथ अफ्रीका के खिलाफ खेल रही हो. यह सच है की टीम में अधिकतर खिलाड़ी युवा हैं उन्हें न तो बड़ी टीमों के साथ खेलने का अनुभव है और न ही विदेशी जमीन पर. लेकिन यह वही टीम है जिसको लेकर पिछले कुछ दिनों से तारिफों के पुल बांधे जा रहे थे. कहा जा रहा था कि इतिहास में इस तरह की मजबूत टीम कभी भी नहीं मिली.
वैसे इस तारिफ की मुख्य वजह भारतीय टीम द्वारा लगातार कई सीरीज का जितना है. भले ही भारतीय टीम के नाम इस साल कई सीरीज हो लेकिन इसमें से अधिकतर सीरीज उन टीमों के साथ हुई जो कमजोर थी या फिर भारतीय जमीन पर खेल रही थी. लेकिन जब उन्हें दक्षिण अफ्रीकी जमीन पर खेलने का मौका मिला तो टीम फिसड्डी साबित हो रही है. बुधवार 11 दिसंबर को दक्षिण अफ्रीकी के सेंचुरियन में आखिरी एकदिवसीय मैच खेला जाएगा लेकिन जिस तरह से भारतीय टीम अपना प्रदर्शन कर रही है और बड़े मार्जन से हार रही है उससे तो यही लग रहा है कि टीम अपना अगला मैच भी हार जाएगी.
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