‘स्कूल से आकर मैं एक टाइल फैक्टरी में काम करने जाता था। उस वक्त मेरी उम्र 10-11 साल थी। मैं नहीं जानता था कि मैं अपने जीवन के साथ क्या कर रहा हूं लेकिन मेरे पास कोई विकल्प भी नहीं था। मुझे वहां 8 घंटे काम करने के बदले 35 रुपए मिलते थे’।
यह कहानी है क्रिकेटर मुनाफ पटेल की, जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीएय क्रिकेट में 2006 में कदम रखा था। मुनाफ ड्रेसिंग रूम में बहुत कम बोलते थे, लेकिन मैदान में उनकी घातक बॉलिंग जमकर बोलती थी। मुनाफ आज बेशक अंतर्राष्ट्री य क्रिकेट से गायब हो चुके हैं, लेकिन फिर भी उनके फैंस उन्हें याद करते हैं। हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में न खेल पाने की कसक उन्हें आज भी है। आज मुनाफ का जन्मदिन है, आइए जानते हैं उनसे जुड़े दिलचस्प किस्से-
1990 में हाथ में क्रिकेट का बल्ला नहीं, कंधों पर जिम्मेदारियां थीं
मुनाफ गुजरात के भारुच जिले के इखार गांव से हैं। यहां पर गरीबी कोई नई बात नहीं है। बात उन दिनों की है, जब मुनाफ 35 रुपए की दैनिक मजदूरी पर एक टाइल फैक्ट्री में काम किया करते थे। उनके पिता भी दूसरों के खेतों में मेहनत-मजदूरी करते थे। परिवार के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वो अपने लिए कपड़े सिलवा सके। साल में एक बार नए कपड़े सिलवाए जाते थे। अपने एक इंटरव्यू में मुनाफ ने उन दिनों को याद करते हुए कहा था ‘बहुत दुख होता था घर के हालातों को देखकर लेकिन सबकुछ सहने की आदत-सी हो गई थी। एक दिन मेरे एक दोस्त ने मेरे टीचर को बता दिया कि मैं स्कूल से जाने के बाद काम करता हूं। मैं बहुत डर गया था, लेकिन मेरे टीचर ने मेरे हालातों को समझते हुए कहा ‘तुम्हें खेलना चाहिए, इसमें तुम्हारा भविष्य है।’ उनकी इस बात के बाद मैं शाम को चप्पलों में क्रिकेट खेला करता था, जो बहुत मुश्किल था, क्योंकि मेरे पैरों में अक्सर चोट लग जाती थी।’
युसुफ भाई बन गए मुनाफ के मसीहा
एक रोज क्रिकेट खेलते हुए मुनाफ की मुलाकात वहीं गांव में रहने वाले युसुफ भाई से हुई। उन्होंने मुनाफ को जूते दिलवाने के साथ बडौदा क्रिकेट क्लब में भर्ती करवा दिया। वहां पहुंचकर मुनाफ ने खूब मेहनत की और रणजी क्रिकेट मैच के लिए चुन लिए गए। इसके बाद एक दिन मुनाफ की मेहनत रंग लाई और उन्हें अंतर्राष्ट्री य क्रिकेट के लिए चुन लिया गया।
बेहतरीन प्रदर्शन और पार्टी-पब से दूरी
मुनाफ की गेंदबाजी की तारीफ शुरुआत में ही होने लगी थी। वही बल्लेबाजी में भी या तो वो जीरो पर आउट होते थे या ताबड़-तोड़ रन बटोर लेते थे। मुनाफ हमेशा पार्टी, पब और नाइट कल्ब से दूर ही रहते थे। एक बार मुनाफ ने एक अखबार को अपना अनुभव कुछ इस तरह बताया था ‘मुझे बहुत डर लगता था पब में जाने में। मुझे किसी ने बताया था कि पब में जाकर शराब पीना जरूरी होता है, लेकिन मेरे दोस्त गौतम गंभीर ने मुझे बताया कि ऐसा जरूरी नहीं है बल्कि मैं भी शराब नहीं पीता, लेकिन मैं चला जाता हूं कभी-कभी’ इसके बाद मेरा डर कुछ कम हुआ और मैं उसके साथ चल दिया।’
जब शेन वार्न के साथ हो गई थी लड़ाई
हमारे देश में राजनीति सड़क से लेकर संसद तक होती है। ऐसे में क्रिकेट इससे कहां अछूता रह सकता है। कहा जाता है कि मुनाफ ने बोर्ड अधिकारियों के गलत फैसलों पर आवाज उठानी शुरू कर दी थी, जिसका असर उनके कॅरियर पर पड़ने लगा। मुनाफ 2011 में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेली जा रही श्रृंखला के बाद बाहर हो गए। इसकी वजह मीडिया को उनका चोटिल होना बताया गया। 2011 विश्व कप में भारतीय टीम की ओर से तीसरे नंबर पर सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज रहे मुनाफ साल 2013 तक आईपीएल में खेलते नजर आए। इसके बाद मुनाफ की अंतर्राष्ट्रीरय क्रिकेट में वापसी मुश्किल हो गई
2009 आईपीएल से जुड़ी एक ऐसी घटना है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। जब मुनाफ राजस्थान रॉयल की टीम में खेला करते थे। शेनवार्न टीम के कैप्टन थे। एक मैच में टीम की जीतने की उम्मीदें बहुत कम थी। ऐसे में मुनाफ को खुद पर पूरा भरोसा था कि वो इस मैच को जिता सकते हैं, लेकिन वार्न ने उन्हें गेंदबाजी देने की बजाय किसी और गेंदबाज को बॉल थमा दी। ये देखकर मुनाफ को बहुत गुस्सा आया। राजस्थान रॉयल वो मैच हार गई। मैच खत्म होने के बाद मुनाफ ने टीम के मालिक से वार्न की शिकायत कर दी। इसके बाद बात बढ़ती देखकर शेनवार्न मुनाफ को मनाने पहुंचे, लेकिन मुनाफ उस वक्त बेहद निराश थे इसलिए वो वार्न के दरवाजा खटखटाने के बाद भी बाहर नहीं आए और कमरे के अंदर से ही उन्हें चले जाने को कहा।’
शेनवार्न की हमेशा करते हैं तारीफ
इस घटना के बारे में जब मुनाफ से पूछा गया तो उन्होंने कहा ‘वार्न एक जादू है, उनके साथ जो भी खेलता है वो उनका मुरीद बन जाता है लेकिन उस दिन मैं उनके फैसले से नाखुश था, लेकिन मैं उनके फैसलों से हमेशा प्रभावित रहा हूं।’
अधिकारियों के प्रति रोष के चलते नहीं हो सकी वापसी
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो मुनाफ को अच्छे प्रदर्शन के बाद भी टीम में नहीं चुना गया। वहीं टीम में ऐसे दूसरे भी खिलाड़ी थे, जिन्हें अच्छे प्रदर्शन के बाद भी बाहर रखा जाने लगा। मुनाफ ने बेहतर टीम के लिए अधिकारियों के सामने अपनी बात रखी लेकिन कुछ अधिकारियों को मुनाफ का विद्रोही रवैया नहीं भाया। इसके बाद से मुनाफ का टीम में अंदर-बाहर जाना लगा रहा। हालांकि, मुनाफ अब आईपीएल की गुजरात लायंस टीम के सबसे दमदार गेंदबाज माने जाते हैं। ये बात किसी ने छुपी नहीं है कि आईपीएल में पैसा बोलता है यानि आईपीएल बस मनोरंजन और बिजनेस का दूसरा नाम बन चुका है जबकि अंतर्राष्ट्री य क्रिकेट में अपने देश के लिए खेलने की भावना खेल को और भी धारदार बना देती है। देश के लिए खेलने का यही सपना लिए हुए आज भी कितने ही लड़के आपको ‘गली क्रिकेट’ खेलते हुए दिख जाएंगे।…Next
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