आज ‘हॉकी के जादूगर’ मेजर ध्यानचंद की 113वीं जयंती है, उनके जन्मदिन को पूरा देश राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाता है। मेजर ध्यानचंद सिंह ने इंडिया को ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल दिलाया था इसलिए उनके प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उनके जन्मदिन 29 अगस्त को भारत ‘नेशनल स्पोर्टस डे’ के रूप में सेलिब्रेट करता है। ऐसे में चलिए जानते हैं उनके बारे में कुछ खास बातें। अपने हॉकी कैरियर में अंग्रेजों के खिलाफ 1000 से अधिक गोल दागने वाले मेजर ध्यानचंद ने बर्लिन जैसी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ हॉकी टीम को 8-1 से ओलम्पिक में हराकर हिटलर जैसे तानाशाह को अपना मुरीद बना लिया था।
1000 से अधिक गोल दागे थे
मेजर ध्यानचंद ने 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में जन्मे मेजर ध्यानचंद सिंह तीन बार ओलंपिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे। उन्होंने अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल दागे। ऐसा कहा जाता है कि जब वो मैदान में खेलने को उतरते थे तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी।
हिटलर ने दिया जर्मनी आने का ऑफर
मेजर ध्यानंचद की कप्तानी में भारतीय टीम बर्लिन ओलंपिक में भाग लेने पहुंची। भारतीय टीम की भिड़ंत मेजबान जर्मनी से होनी थी। ऐसे में जर्मन चांसलर एडोल्फ हिटलर भी फाइनल देखने पहुंचे थे। ध्यानचंद ने हिटलर के सामने जर्मनी के गोलपोस्ट पर गोल दागने शुरू किए। भारत ने जर्मनी को 8-1 के अंतर से मात दी। मैच के खत्म होने से पहले ही हिटलर स्टेडियम छोड़ चुके थे। लेकिन इसके बाद हिटलर ने ध्यानचंद से मुलाकात करके जर्मनी आने को कहा था। हिटलर ने मेजर ध्यानचंद को अपनी सेना में उच्च पद पर आसीन होने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन तब हिटलर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
जन्मदिन को भारत का ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ घोषित किया गया
मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया है। 1956 में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। भारतीय ओलंपिक संघ ने ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया था।
मेजर को कई सारे सम्मान मिले थे
जादूगर हॉकी के खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद को 1927 में लांस नायक बना दिए गए और 1932 में लॉस ऐंजल्स जाने पर नायक नियुक्त हुए। इसके बाद 1937 ई. में जब भारतीय हाकी दल के कप्तान थे तो उन्हें सूबेदार बना दिया गया। 1943 में ‘लेफ्टिनेंट’ नियुक्त हुए और भारत के स्वतंत्र होने पर उन्हें 1948 में कप्तान बना दिए गए। केवल हॉकी के खेल के कारण ही सेना में उनकी पदोन्नति होती गई।…Next
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