अभी एकदिवसीय मैचों से संन्यास लिए सचिन तेंदुलकर को कुछ महीने भी नहीं हुए कि अब उन पर टेस्ट से संन्यास लेने का दबाव है. वजह साफ है एक बड़े खिलाड़ी के तौर लगातार उनका खराब प्रदर्शन. पिछले दो सालों में सचिन का खेल लगातार नीचे गिरा है. जहां इंग्लैड और ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर सचिन ने टुकड़ों में बैटिंग की तो वहीं न्यूजीलैंड और इंग्लैंड के भारत दौरे में सचिन जिस तरह से बैटिंग कर रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे वह अपने वास्तविक खेल के मिजाज को भूल से गए हों.
इन्होंने वंचित तबके की औरतों का दर्द समझा
पहले यह कहा जाता था कि ज्यादा क्रिकेट होने की वजह से सचिन तेंदुलकर टेस्ट मैचों में ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते थे लेकिन अब तो उन्होंने एकदिवसीय और अंतरराष्ट्रीय टी-20 मैच से भी संन्यास ले लिया है लेकिन फिर भी उनके खेल में थोड़ा भी बदलाव देखने को नहीं मिला. अगर वर्तमान सीरीज की बात करें तो तेंदुलकर फॉर्म के लिए जूझते नजर आए. केवल चेन्नई टेस्ट मैच की पहली पारी को छोड़कर बाकी सभी टेस्ट मैचों की सभी पारियों में सचिन संघर्ष करते हुए दिखे.
कई बड़े जानकार मानने लगे हैं कि सचिन की अब उम्र हो चुकी है तथा उनकी फिटनेस भी जवाब देने लगी है इसलिए उन्हें अब अपने संन्यास के विषय में सोचना चाहिए. उनका कहना है कि सचिन के पास पहले भी ऐसे मौके थे जैसे विश्वकप 2011 या फिर बांग्लादेश में लगाया गया 100वां शतक जहां उन्हें संन्यास ले लेना चाहिए था.
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एक तरफ जहां सचिन को संन्यास लेने के लिए दबाव बनाया जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ ऐसे कई लोग भी हैं जो सचिन को पिच पर खेलते हुए देखना चाहते हैं. उन्हीं लोगों में पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली भी हैं. गांगुली के मुताबिक सचिन तेंदुलकर को तब तक खेलना चाहिए जब तक वह खेलना चाहते हैं.
वैसे सचिन के संन्यास की वजहों में एक वजह यह भी है कि टीम के युवा खिलाड़ी लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. आज जहां भारत ने आस्ट्रेलिया को 4-0 से हराकर इतिहास रचा है उसमें अगर किसी का सबसे अधिक योगदान है तो वह हैं टीम के युवा खिलाड़ी. पुजारा, कोहली, विजय, धवन ये ऐसे बल्लेबाज हैं जिन्होंने अपनी बल्लेबाजी से चयनकर्ताओं को काफी प्रभावित किया. ऐसे में टीम के साथ सचिन को ढोना चयनकर्ताओं को अब बोझ सा लगने लगा है.
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