भारत में क्रिकेट की पूरी तस्वीर बदलने वाले सचिन तेंदुलकर ने आखिरकार क्रिकेट के एक फॉर्मेट एकदिवसीय क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा कर ही दी. सचिन ने इस संन्यास की घोषणा उस समय की जब भारत-पाक क्रिकेट सीरीज़ शुरू होने वाली है. सचिन के संन्यास के बाद उन लोगों का मुंह बंद हो चुका है जो हर समय सचिन की महानता पर विचार न करके उनके उम्र और प्रदर्शन को देखकर उन्हें संन्यास लेने के लिए दबाव डालते थे. लेकिन कुछ लोगों को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा कि कैसे कोई खिलाड़ी जो भारत में क्रिकेट का प्रतीक बन चुका है क्रिकेट से संन्यास ले सकता है.
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पिछले कुछ दिनों से सचिन को लेकर यह आवाज उठ रही थी कि अब सचिन को क्रिकेट से संन्यास ले लेना चाहिए. बीसीसीआई और चयनकर्ताओं को उनके संन्यास को लेकर विचार करना चाहिए. लेकिन फिर भी कुछ जानकार मानते थे कि सचिन जैसे महान खिलाड़ी को जिसने 20 साल से अधिक समय से अपने-आप को क्रिकेट के लिए समर्पित कर दिया उसे कम-कम यह तो अधिकार होना चाहिए कि संन्यास के मामले में वह स्वयं निर्णय ले सकें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. आखिरकार एक मानसिक दबाव में सचिन ने संन्यास ले लिया.
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लोगों को आश्वर्य इस बात पर भी है कि सचिन को अगर संन्यास लेना ही था तो वह टेस्ट से लेते क्योंकि इसी फॉरमेट में उनका प्रदर्शन काफी लचर रहा है. फिर उन्होंने एकदिवसीय मैच से संन्यास लेने की घोषणा क्यों की. तो इस पर जानकार मानते हैं कि सचिन विश्वकप 2011 के बाद एकदिवसीय मैच बहुत ही कम खेलना चाहते थे. वह अपना सारा ध्यान टेस्ट मैच की ओर देना चाहते थे. यह स्वयं यह भी चाहते थे कि उनकी जिंदगी का 100वां शतक टेस्ट में ही लगे लेकिन टेस्ट में लगातार नाकामियों और कई तरह के दबाव के बाद उन्होंने एशिया कप को ही चुना जहां उनका 100वें शतक का सपना पूरा हुआ.
100वां शतक लगाने के बाद सचिन तेंदुलकर पर दबाव बहुत हद तक कम हुआ. उन्होंने फिर एक बार सोचा कि वह एकदिवसीय मैचों से दूर रहेंगे. यही कारण रहा कि सचिन ने मार्च 2012 के महीने में खेले गए एकदिवसीय मैचों के बाद कोई मैच नहीं खेला. उन्होंने मन को पूरी तरह से टेस्ट मैचों के लिए तैयार कर लिया लेकिन सचिन जिस टेस्ट मैच के लिए एकदिवसीय मैच से दूर रह रहे थे असल में उसी टेस्ट में सचिन का प्रदर्शन पिछले कई महीनों से खराब चल रहा है. टेस्ट में खराब प्रदर्शन के कारण सचिन फिर दबाव में आ गए. इस बार का दबाव 100वें शतक का नहीं बल्कि संन्यास का था. आपको बता दें कि सचिन ने 2012 में 9 टेस्ट मैच में 23.8 के औसत से केवल 357 रन ही बनाए हैं.
एक महान खिलाड़ी का टेस्ट में इतने खराब प्रदर्शन के बावजूद लोगों को लगा सचिन संन्यास तो लेंगे लेकिन एकदिवसीय क्रिकेट से नहीं बल्कि टेस्ट क्रिकेट से, लेकिन हुआ उसका उलटा. अब जानकारों का मानना है कि अगर सचिन को एकदिवसीय क्रिकेट से संन्यास ही लेना था तो वह विश्वकप या फिर एशिया कप के बाद लेते. इससे साफ पता चलता है कि सचिन के ऊपर दबाव था कि वह संन्यास लें. सचिन ने यहां भी अपने दबाव को कम करने के लिए एकदिवसीय क्रिकेट को जरिया बनाया.
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