इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में स्पॉट फिक्सिंग का मामला सामने आने के बाद भारतीय क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था भारतीय किक्रेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं. सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि दुनिया की सबसे धनवान क्रिकेट संस्था होने के बावजूद भारतीय क्रिकेट में हो रहे भ्रष्टाचार पर बीसीसीआई रोक क्यों नहीं लगा पा रही है? क्या वह स्वयं एक भ्रष्ट खेल संस्था हो गई है?
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यह तो सवाल हुआ बीसीसीआई पर लेकिन सवाल उन खिलाड़ियों पर भी उठते हैं जो कहने को तो बड़े खिलाड़ी हैं लेकिन जब उनसे क्रिकेट में फैल रहे भ्रष्टाचार के बारे में पूछा जाता है तब वह या तो चुप्पी साध लेते हैं या फिर इसको निराशाजनक बताकर अपनी जिम्मेदारी से कन्नी काट लेते हैं. भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की तरह ही दुनिया के महानत बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) ने भी स्पॉट फिक्सिंग के मामले में ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे यह उम्मीद जताई जा सके कि वह वाकई क्रिकेट में जारी अनियमितता से परेशान हैं.
achin Tendulkar) ने चुप्पी तोड़ दी और कहा कि क्रिकेट में फिक्सिंग काफी निराशाजनक है. क्रिकेट का गलत कारणों से चर्चा में आना दुखद है. उन्होंने कहा कि जब भी क्रिकेट की बदनामी होती है तो उनके दिल को दुख होता है. उन्होंने नए क्रिकेटरों को हिदायत देते हुए कहा कि क्रिकेटर के तौर पर हमें हमेशा सिखाया जाता है कि मैदान पर जाओ, पूरी ताकत से संघर्ष करो, अपना सर्वश्रेष्ठ दो और सच्ची खेल भावना से खेलो. अपनी टीम मुंबई इंडियन्स की जीत के बाद आईपीएल से संन्यास लेने वाले सचिन ने कहा है कि अधिकारियों को गंभीर कदम उठाने चाहिए, ताकि मामले की जड़ तक पहुंचा जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि खेल की विश्वसनीयता लौट आए.
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achin Tendulkar) के इस पूरे बयान में यह कहीं भी भरोसा नहीं दिया गया कि आने वाले वक्त में दर्शक जो मैच देखेंगे उसमे स्पॉट फिक्सिंग जैसे चीजे नहीं होंगी. क्रिकेट में सचिन का ओहदा जिस स्तर का है उनसे यह उम्मीद नहीं जा सकती कि वह केवल निराशा ही जताकर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला छाड़ लें. भारत में तो खासकर क्योंकि भारत में सचिन को क्रिकेट का देवता माना जाता है. यहां लोग बीसीसीआई के नाम पर क्रिकेट देखने नहीं जाते बल्कि वह इस आशा के साथ क्रिकेट को देखने जाते हैं कि किसी क्रिकेटर की पारी में ही सही सचिन की बल्लेबाजी देखने को मिल जाए.
achin Tendulkar) को यहां स्पॉट फिक्सिंग पर दुख न जताकर उन भ्रष्ट अधिकारियों और क्रिकेटरों की पोल खोलनी चाहिए थी जहां उनको लगता है कि इनकी वजह से क्रिकेट को नुकसान होगा. एक व्यक्ति जिसने अपनी जिंदगी के आधे वक्त से भी ज्यादा क्रिकेट खेलने में ही बिता दिया उससे तो आम दर्शक यही उम्मीद करता है वह स्वयं को आगे करे और क्रिकेट पर जारी संकट के बादल को दूर भगाए. लेकिन क्या सचिन ऐसा कर सकते हैं?
जानकारों की मानें तो सचिन और धोनी जैसे खिलाड़ी व्यवस्था के शिकार हो गए हैं जहां पैसा और शोहरत तो बहुत है लेकिन पारदर्शिता और जवाबदेही के नाम पर कुछ भी नहीं है. यहां हर समय लगता है कि क्रिकेट के बहाने जो हमें दिखाया जा रहा है उसमें लेस मात्र की सच्चाई है भी या नहीं.
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