जब कोई दर्शक किसी खेल को इस आशा के साथ देखता है कि उसे जो मिलेगा उसमें पूरी ईमानदारी और सच्चाई होगी तो वह दर्शक उस खेल का दिल से आनंद लेगा खासकर उस खेल के लिए जिसकी वह हर समय पूजा करता है लेकिन जब उसे पता चलता है कि जो उसे दिखाया जा रहा है असल में वह खेल नहीं बल्कि खेल के पीछे का बाजार और भ्रष्टाचार है. तब उसके जहन में एक ही बात आती है कि ‘इस तरह के खेलों को बंद कर देना चाहिए’.
सभ्य लोगों का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट ने जब भी मौका मिला है दर्शकों की उम्मीदों को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट पहले से ही सट्टों के खेल से बदनाम है अब उसकी परछाई इंडियन प्रीमियर लीग पर पूरी तरह से पड़ गई है. यहां भी अब आईपीएल प्रेमियों को खेल की जगह धोखा और छल-कपट ही मिल रहा है.
ताजा मामले में दिल्ली पुलिस की विशेष पुलिस शाखा ने तेज गति के गेंदबाज एस. श्रीसंत, घरेलू खिलाड़ी अजीत चंडीला और अकिंत चव्हाण को क्रिकेट मैचों की स्पॉट फिक्सिंग में कथित तौर पर शामिल होने के आरोपों में गिरफ्तार किया. इनके ऊपर आरोप है कि इन्होंने मौजूदा सत्र में राजस्थान रॉयल्स के तीन मैचों की स्पॉट फिक्सिंग की थी. वैसे यह पहला मामला नहीं है जब खिलाड़ी इस तरह के विवाद में फंसे हों. आईपीएल के पिछले सत्र में भी एक टीवी चैनल के स्टिंग ऑपरेशन के जरिए स्पॉट फिक्सिंग का मामला सामने आया था. यहां मामला केवल आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग तक सीमित नहीं है और भी दूसरे विवाद हैं जिसकी वजह से न केवल आईपीएल बल्कि भारतीय क्रिकेट भी बदनाम हो रहा है.
ऐसे में यहां सवाल उठता है कि जिस उम्मीद और आशाओं के साथ इंडियन प्रीमियर लीग का 2008 में शुभारंभ किया था क्या उसमें भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) और खेल प्रबंधन कामयाब हुआ है. कई खेल विशेषज्ञ मानते हैं कि आईपीएल अपनी उम्मीदों पर खरा उतरा है. इसने ऐसे सफल बल्लेबाज और गेंदबाज दिए हैं जो आज भारतीय टीम का हिस्सा हैं जिसमें अश्विन और रविंद्र जडेजा का नाम पहले लिया जाता है.
लेकिन वहीं दूसरी तरफ खेल के जानने वाले यह भी मानते हैं कि आईपीएल खेल न होकर भ्रष्ट कारोबार करने की ऐसी जगह है जहां खिलाड़ी मशीन की तरह जोते जाते हैं और टीमों के मालिक उनके नाम पर प्रायोजक जुटाने और मुनाफा कमाने की जुगत में लगे रहते हैं. यहां केवल मालिक मुनाफा नहीं कमाता बल्कि वह खिलाड़ी भी लाखों और करोड़ों में खेलता है जिसे घरेलू मैच में मामूली पैसे मिलते हैं. यह वहीं खिलाड़ी होते हैं जो 10 महीने तो घरेलू मैच खेलते हैं बाकी दो महीने उन्हें आईपीएल खेलने का मौका मिलता है. यही वह समय होता है जहां खिलाड़ी गलत और सही तरीके से पैसा कमाने की सोचता है.
आईपीएल के पिछले और इस सत्र में जो खिलाड़ी स्पॉट फिक्सिंग के मामले में पकड़े गए हैं इसमें केवल एस श्रीसंत को छोड़कर बाकी सभी खिलाड़ी पैसे के मारे हैं. उन्हें लगता है कि जिस चकाचौंध के साथ वह आईपीएल मैच खेलते हैं अगर पैसे नहीं रहे तो दो महीने बाद वह चकाचौंध बिलकुल खत्म हो जाएगा इसलिए पैसा कमाने का वह कोई भी मौका नहीं गंवाते. ऐसे में वह खिलाड़ी अपने भविष्य के साथ-साथ आईपीएल और क्रिकेट पर कुछ सवाल छोड़ जाता है जिसका जवाब हर किसी को चाहिए जैसे:
1. क्या एक खिलाड़ी के लिए पैसा ही सब कुछ है खेल धर्म व राष्ट्र कुछ नहीं?
2. अगर आईपीएल जैसे खेलों में घोटाले होते रहेंगे तो क्या इसका असर दूसरे खेलों पर नहीं पड़ेगा?
3. इस तरह की करतूतों से क्या क्रिकेट के चाहने वालों का विश्वास नहीं डगमगाता?
4. क्या आईपीएल जैसे खेल आयोजनों को बंद कर देना ही आखिरी समाधान है?
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