- 78 Posts
- 18 Comments
अगर आपमें जीतने का जुनून हो तो कोई भी लक्ष्य ऐसा नहीं होता जिसे आप हासिल नहीं कर सकते.
क्रिकेट में आलराउंडर की महत्ता बयां करता 1983 क्रिकेट विश्व कप जिसे हम प्रूडेंशियल विश्व कप के नाम भी जानते हैं भारतीय क्रिकेट इतिहास की महान गाथा का साक्षी है.
भारतीय मिलेनियम क्रिकेटर कपिल देव की अगुवाई में हमारे रणबांकुरों ने लॉर्ड्स के मैदान में जो कारनामा किया था वह एक ऐसा पल था जिसने हम सभी भारतीयों की धमनियों में क्रिकेट रुपी खून का प्रवाह तेज कर दिया था और शायद आज भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता का कारण यही खून है.
चाहे मोहिंदर अमरनाथ का हरफनमौला खेल हो या कपिल देव की ज़िम्बाब्वे के खिलाफ़ यादगार पारी सभी खिलाड़ियों ने विश्व कप जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी. कहा जाता है कि कप्तान होने के नाते कपिल देव ने सभी खिलाड़ियों से कहा था कि अगर किसी ने कोई भी गलती की तो मैं उसको मैदान पर ही जूता मारूंगा और अगर मैं गलती करूं तो आप मेरे साथ भी वही सलूक करें.
1983 के विश्व कप में कुल मिलाकर आठ टीमों ने भाग लिया था जिनको चार-चार के दो ग्रुपों में बांटा गया था. भारत ऑस्ट्रेलिया, वेस्टइंडीज और ज़िम्बाब्वे के साथ ग्रुप “बी” में था. भारत ने पहले ही मैच में उलटफेर करते हुए दो बार के चैम्पियन वेस्टइंडीज को हरा दिया. हालांकि दूसरे मैच में वेस्टइंडीज के हाथों भारत को हार का मुंह देखना पड़ा.
दूसरे चरण में भारत का मैच ज़िम्बाब्वे से था. सभी का अनुमान था कि भारत यह मैच आसानी से जीत लेगा. लेकिन भारत की शुरुआत बहुत खराब रही और उसने 17 रन पर अपने 5 सलामी बल्लेबाज़ खो दिए. उसके बाद जो हुआ वह इतिहास बन गया. कपिल देव का जो बल्ला चला उसने ज़िम्बाब्वे के गेंदबाजों की बखिया उधेड़ दी. और कपिल देव की 175 (138 गेंद 16 चौके और 6 छक्के) रनों की बदौलत भारत ने ज़िम्बाब्वे को हरा दिया. भारत का आखिरी मैच ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ था. भारतीय तेज़ गेंदबाजों मदल लाल और बिन्नी के सामने ऑस्ट्रेलिया की एक ना चली और भारत ने यह मैच आसानी से जीत लिए. इस जीत के साथ भारत ने सेमीफाइनल में भी प्रवेश कर लिया.
भारत का सेमीफाइनल मुकाबला मेजबान इंग्लैंड के साथ था. सभी ने आस लगाई थी कि भारत के इस मैच को जीतने के चांस केवल 40% हैं लेकिन एक बार फिर सभी आशंकाओं पर विराम लगाते हुए टीम इंडिया ने इंग्लैंड को छः विकेट से हरा फाइनल में पहली बार जगह बनाई.
भारत का फाइनल मुकाबला था वेस्टइंडीज के साथ. पहले मैच में मिली हार के बाद वेस्टइंडीज के कप्तान लॉयड जानते थे कि भारत को हल्के में लेना उनकी भूल होगी. फाइनल मुकाबले में टॉस वेस्टइंडीज ने जीता और पहले गेंदबाज़ी करने का निर्णय लिया. वेस्टइंडीज के तेज़ गेंदबाजों के सामने भारतीय बल्लेबाजों की एक ना चली और पूरी टीम केवल 183 रन बना सकी. जवाब में वेस्टइंडीज ने सधी शुरुआत की लेकिन भारतीय गेंदबाजों ने पिच पर नमी का पूरा फायदा उठाया और वेस्टइंडीज के बल्लेबाजों को कभी भी टिकने नहीं दिया. और आखिरकार वह दिन आ ही गया गया जिसका सभी क्रिकेट प्रेमियों को इंतज़ार रहता है. भारत ने वेस्टइंडीज को 140 रन पर आउट कर 43 रन से फाइनल मैच जीत विश्व कप पर कब्ज़ा जमा लिया.
अपने हरफनमौला खेल के लिए मोहिंदर अमरनाथ को मैन ऑफ दी सीरीज चुना गया. वह सेमीफाइनल और फाइनल मैच में भी मैन ऑफ दी मैच रहे थे.
Read Comments