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“टीम ऐसे नहीं जीतती, जीतना पड़ता है”
• 2007 का टी20 फाइनल.
• सीबी सीरीज में ऑस्ट्रेलिया को हराना.
• एशिया कप जीतना.
• और न्यूज़ीलैण्ड को उन्हीं की धरती पर टेस्ट और एकदिवसीय दोनों सीरीज में हराना.
कुछ ऐसे सुनहरे लम्हें हैं जिसे टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी कभी नहीं भुलाना चाहेंगे. लेकिन दक्षिण अफ्रीका से मिली पिछले मैच में हार एक ऐसा सबक है जिसे धोनी अपने जहन से जल्द से जल्द निकालना चाहते होंगे.
वर्ल्ड कप शुरू होने से पहले भारतीय क्रिकेट टीम को जीत का प्रबल दावेदार माना जा रहा था लेकिन इंग्लैंड के खिलाफ़ ड्रॉ और दक्षिण अफ्रीका से मिली हार के बाद यह बयार उलटी बहने लगी है. लोग यहां तक कह रहे हैं कि कहां गया धोनी का वह दावा जो उन्होंने सचिन तेंदुलकर से किया था. शायद अब समय आ गया है कि धोनी को कप्तान कूल से कप्तान गंभीर बनना होगा.
आप कितने भी मैच जीत लें लेकिन एक हार जीत की सारी खुशियों को काफूर कर देती है. भारतीय क्रिकेट टीम के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ, एक हार और सब गाने लगे कि अब कप हमारा नहीं है, धोनी की कप्तानी का तरीका सही नहीं है, हमेशा आप गैर परंपरागत तरीके अपना कर नहीं जीत सकते. लेकिन क्या सही मायनों में धोनी के सभी निर्णय गैर परंपरागत हैं? क्या धोनी के सभी निर्णयों में उनकी सहज रहने की प्रवृत्ति होती है?
अगर हम पिछले मैच की बात करें तो नेहरा से आखिरी ओवर करवाना कोई गलत निर्णय नहीं था. इससे पहले नेहरा ने तीन बार और 50वां ओवर किया था और तीनों बार भारतीय टीम को जीत मिली थी ऐसे में यह स्वाभाविक था कि आखिरी ओवर नेहरा से ही कराएं. लेकिन दूसरी बात पर गौर करें तो उस मैच में नेहरा का प्रदर्शन अच्छा नहीं था जबकि उस समय टीम के सबसे सफल गेंदबाज़ हरभजन सिंह थे, ऐसे में अगर 49वां ओवर हरभजन सिंह से कराया जाता और 50वां ओवर ज़हीर खान करते तो शायद आज हम जीत सकते थे. लेकिन अगर हम धोनी के पहलू से सोचें तो अगर वह ऐसा करते और हम फिर भी हार जाते तब भी तो सभी यही कहते कि आखिरी ओवर नेहरा से करवाना था, क्योंकि ऐसे कारनामे उन्होंने पहले भी किए हैं.
सही मायनों में भारतीय टीम की हार का कारण वह आखिरी ओवर नहीं था, मैच तो हम तभी हार गए थे जब हमने 29 रन में 9 विकेट खो दिए थे. धोनी का निर्णय पठान को पहले भेजना और वह भी स्टेन के सामने गलत था. सभी जानते हैं कि पठान स्पिन गेंद को ज़्यादा अच्छा खेलते हैं और उस समय की स्थिति का आंकलन करें तो अभी भी स्पिन गेंदबाजों के ओवर बचे थे. फॉर्म में चल रहे युवराज और स्वयं धोनी अच्छा विकल्प होते.
समय के साथ-साथ धोनी के खेल में बहुत बदलाव आया है. याद है वह छः साल पुराना धोनी और उनकी हेलीकॉप्टर शॉट सब बदल गया है. शायद धोनी अब टीम में अपनी अहमियत जानते हैं तभी उनका ध्यान अब लंबी पारी खेलने पर होता है. लेकिन हर समय धोनी की यह रणनीति सही नहीं होती. अगर धोनी को लंबी पारी खेलनी ही है तो उन्हें तीसरे या चौथे नंबर पर बल्लेबाज़ी करनी होगी जहां उनको अपने पारी बुनने का समय मिले. छठें या सातवें नंबर पर या आपको ताबड़तोड़ बल्लेबाज़ी करनी होती है या फिर आपको विकेट बचाने होते हैं और नीचे बल्लेबाज़ी करके यह काम एक साथ नहीं हो सकते.
अब समय आ गया है कि धोनी को अपनी रणनीति में बदलाव लाना ही होगा. ठीक है अब तक वह जीतते आए हैं लेकिन अब डगर कठिन हो गई है. और यदि वर्ल्ड कप में वह हारे तो अंजाम शायद वह खुद जानते होंगे.
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