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यूडीआरएस – सही या गलत

वर्ल्ड कप क्रिकेट 2011
वर्ल्ड कप क्रिकेट 2011
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India Vs England बंगलुरू एकदविसीय मैच में 339 रन का पीछा करते हुए इंग्लैंड की शुरुआत अच्छी हुई. इंग्लैंड के कप्तान स्ट्रॉस और बेल की जोड़ी को रन बनाने में कोई मुश्किल नहीं आ रही थी. भारतीय टीम ने इस जोड़ी को तोड़ने के लिए सभी हथियार अपना लिए थे, तभी युवराज सिंह की गेंद पर बेल ने स्वीप करने का प्रयास किया, लेकिन बेल कामयाब नहीं हुए और गेंद उनके पैड पर लगी. टीम इंडिया के सभी खिलाडियों ने ज़ोरदार अपील की, अम्पायर बिली ने बेल को नॉट ऑउट करार दिया. लेकिन भारतीय टीम इस निर्णय से सहमत नहीं थी, इसलिए उन्होंने यूडीआरएस (अम्पायर डिसीजन रिव्यू सिस्टम) का सहारा लिया. यूडीआरएस के अनुसार गेंद स्टंप पर लग रही थी, परन्तु अम्पायर ने अपने निर्णय को सही कहते हुए, टीम इंडिया की इस अपील को ख़ारिज इसलिए कर दिया क्योंकि शॉट खेलते समय बेल विकेट से 3.5 मीटर दूर थे. उस समय तो सभी ने अम्पायर का यह निर्णय मान लिया, लेकिन बाद में कप्तान धोनी इस निर्णय से काफ़ी नाराज़ दिखे और उन्होंने सरेआम कह दिया कि इस निर्णय की वजह से मैच ड्रा रहा.

इस पूरे व्याख्या से कई सवाल सामने आए. क्या अम्पायर बिली का यह निर्णय सही था? क्या यूडीआरएस का सही तरह से इस्तेमाल हो रहा है? और क्या यह सिस्टम सही मायनों में अम्पायर का मददगार है?

क्या है यूडीआरएस

• यूडीआरएस (अम्पायर डिसीजन रिव्यू सिस्टम) अंपायर निर्णय समीक्षा प्रणाली, क्रिकेट में इस्तेमाल करने वाली एक नई तकनीक प्रणाली है, जिसके आधार पर टीमें अगर अम्पायर के किसी भी निर्णय से सहमत नहीं है तो वह अंपायर के उस निर्णय को चुनौती दे सकते हैं. इसके बाद तीसरा अम्पायर स्लो मोसन में देखकर उस निर्णय की समीक्षा करता है.

• इस प्रणाली का सबसे पहले इस्तेमाल टेस्ट क्रिकेट में हुआ था. लेकिन कुछ विवादों के कारण इस प्रणाली को क्रिकेट से हटा दिया गया था. परन्तु इस बार के वर्ल्ड कप में इस प्रणाली को फिर से इस्तेमाल में लिया जा रहा है.

• इस प्रणाली के अनुसार एकदविसीय मैच में किसी भी टीम को एक पारी में दो चुनौतियां मिलती हैं. मतलब पूरे मैच में चार.

• अगर किसी टीम को इस प्रणाली का इस्तेमाल करना होता है तो वह अपने दोनों हाथों से “टी” बनाता है, जिससे वह निर्णय समीक्षा के लिए तीसरे अम्पायर के पास चला जाता है.

अभी तक देखा गया है कि ज़्यादातर टीम इस प्रणाली का इस्तेमाल पगबाधा के निर्णय के खिलाफ़ करती हैं जिसकी समीक्षा निम्न मापदंडों के आधार पर की जाती है.

UDRS1. पहला, कहीं गेंद नो बाल तो नहीं. कहीं गेंदबाज़ का पैर गेंदबाज़ी क्रीज़ से आगे तो नहीं निकला है.

2. दूसरा, गेंद कहां गिरी है. जैसे कि अगर गेंद लेग स्टंप के बाहर गिरती है तो नॉट ऑउट होता है.

3. तीसरा, गेंद बल्लेबाज़ को कहां लगी. अगर गेंद बल्लेबाज़ के पैरों पर ऑफ स्टंप के बाहर लगी और उस समय बल्लेबाज़ शॉट खेल रहा है तो नॉट ऑउट होता है.

तीसरा अम्पायर इन तीनों मापदंडों की समीक्षा करता है और अगर यह तीनों मापदंड सही होते हैं तो, बल्लेबाज़ ऑउट होता है. लेकिन उस दिन तो यह मापदंड भारतीय टीम के साथ थे, लेकिन फिर भी बेल को क्यों नॉट ऑउट दिया गया? अम्पायर बिली ने अपना निर्णय इस आधार पर कायम रखा क्योंकि शॉट खेलते समय बेल स्टंप से काफ़ी दूर थे, लेकिन शायद बेल भूल गए हैं कि समय के साथ -साथ अम्पायर के निर्णयों में काफ़ी परिवर्तन आया है. अगर गेंद स्टंप पर लग रही है तो अम्पायर फ्रंट फुट में ऑउट देने से नहीं कतराते.

शुरू में जब यूडीआरएस इस्तेमाल में लाया गया था इसका समर्थन सभी ने किया था लेकिन समय के साथ इससे विवाद भी जुड़ने लगे. वेस्टइंडीज के पूर्व क्रिकेटर जोएल गार्नर ने इस प्रणाली को क्रिकेट में इस्तेमाल करने वाली नौटंकी तक कह डाला. भारतीय खिलाड़ी तो हमेशा से इसके खिलाफ़ रहे हैं, हों भी क्यों न जब आप इस प्रणाली के द्वारा अम्पायर के निर्णय पर अंगुली उठा रहे हैं और वह भी सबके सामने, ऐसे में क्या अम्पायर की सार्थकता पर प्रश्न चिह्न नहीं उठता ?

लेकिन प्रश्न अब भी वहीं का वहीं है कि क्या यूडीआरएस सही है या गलत? बंगलुरू मैच के बाद हम भारतीय तो इससे खिलाफ़ ज़रुर होंगे, केवल बंगलुरू मैच ही नहीं हमें इस प्रणाली से कभी भी फायदा नहीं हुआ. शायद हम इसे इस्तेमाल करना जानते ही नहीं. उदाहरण के तौर पर हरभजन को ही ले लीजिए, जिन्होंने इस प्रणाली का इस्तेमाल लिया जबकि किसी को भी संदेह नही था कि वह ऑउट थे. ऐसा कई बार हुआ है जबकि इस प्रणाली का इस्तेमाल तब करना चाहिए जब मन में कोई संदेह हो.

इस प्रणाली के खिलाफ़ अंगुली ज़्यादा इसलिए उठती है क्योंकि तीसरे अम्पायर के साथ-साथ सभी लोग उस निर्णय को देख पाते हैं, इसलिए पारदर्शिता तो होती है किन्तु विवाद की गुंजाइश भी बढ़ जाती है, जबकि सही मायनों में इस निर्णय को केवल तीसरे अम्पायर और मैच रेफरी तक सीमित रखना चाहिए, क्योंकि बहुत कम लोगों को मालूम होता है कि सही निर्णय क्या है. ज्यादातर लोग केवल अनाप-शनाप आकलन करते लगते हैं जिससे भ्रम फैलता है.

इसके साथ इस प्रणाली का इस्तेमाल करने में कुछ पारदर्शिता होनी चाहिए जैसे कि अगर हम इसमें चौथा मापदंड यह जोड़ दें कि इस प्रणाली के द्वारा यह भी बताया जाए कि गेंद विकेट में लग रही है या नहीं तो ज़्यादा फायदा होगा.

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