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प्रयोग से भरा वर्ल्ड कप

वर्ल्ड कप क्रिकेट 2011
वर्ल्ड कप क्रिकेट 2011
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इस बार के क्रिकेट वर्ल्ड कप को अगर हम प्रयोग से भरा वर्ल्ड कप कहें तो गलत न होगा, क्योंकि अभी तक टीमों ने वर्ल्ड कप में जितने प्रयोग किए हैं वह सभी को अचंभित कर रहे हैं. उदाहरण के तौर पर कल दक्षिण अफ्रीका ने अपनी टीम में तीन स्पिन गेंदबाजों को खिलाया यही नहीं बोथा ने तो पहला ओवर भी फेंका. कभी किसी ने सोचा नहीं था कि दक्षिण अफ्रीकी टीम भी कोई ऐसा प्रयोग करेगी. हम यह इसलिए भी कह सकते हैं क्योंकि दक्षिण अफ्रीका के पास तेज़ गेंदबाजों की फौज है, स्टेन, मोर्केल, लोनवाबो सोतसोबे और वायने पार्नेल जैसे बेहतरीन गेंदबाज़ हैं लेकिन उसके बाद भी कप्तान ग्रीम स्मिथ ने स्पिन गेंदबाजों को टीम में जगह दी जिसका फायदा भी उन्हें मिला क्योंकि अपना पहला मैच खेल रहे इमरान ताहिर ने चार विकेट लिए.

प्रयोग केवल दक्षिण अफ्रीका ने नहीं किया बल्कि वेस्टइंडीज ने भी ऐसा ही कुछ किया. एक समय था जब वेस्टइंडीज टीम में तेज़ गेंदबाज़ भरे रहते थे लेकिन कल वेस्टइंडीज की तरफ़ से बाएं हाथ के स्पिन गेंदबाज़ सुलेमान बेन ने गेंदबाज़ी की शुरुआत की. वर्ल्ड कप में ऐसा न्प्रयोग नया नहीं है, 1992 में न्यूज़ीलैण्ड ने भी कुछ ऐसा ही किया था जब उनके स्पिन गेंदबाज़ दीपक पटेल ने पहला ओवर फेंका था.

अभी तक रनों ने भरी पिचों में ज़्यादा सफलता फ़िरकी गेंदबाजों को मिली है, यह एक अंदेशा है कि आगे भी शायद फ़िरकी गेंदबाजों को फायदा मिले और आने वाले मैचों में टीमें तेज़ गेंदबाजों की जगह फ़िरकी गेंदबाजों को खिलाएं.

ऑस्ट्रेलिया का हटकर प्रयोग

जहां एक तरफ वेस्टइंडीज, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, बांग्लादेश जैसे टीमें स्पिन गेंदबाजों को टीम में ले रही हैं वहीं दूसरी तरफ़ चार बार की क्रिकेट वर्ल्ड कप विजेता ऑस्ट्रलिया की रणनीति अलग है. ऑस्ट्रेलिया की टीम में तेज़ गेंदबाजों की भरमार है. शेन टेट, ब्रेट ली, डग बोलिंगर और मिशेल जानसन जैसे तेज़ गेंदबाज़ हैं और जिनसे कहा गया है कि जितना तेज़ गेंद आप फेंक सकें फेंकें. इस रणनीति का फायदा ऑस्ट्रेलिया को मिला भी. न्यूज़ीलैण्ड के साथ मैच में आठ विकेट तो केवल तेज़ गेंदबाजों ने लिए. सही मायनों में इन तेज़ गेंदबाजों ने न्यूज़ीलैण्ड के बल्लेबाजों में बहुत मुश्किल में डाला.

कहीं तेज़ तो कहीं स्पिन सब टीमों की अपनी-अपनी रणनीति. लेकिन क्या केवल रणनीति बनाने से सफलता मिलती है? रणनीति बनाने के बाद उस रणनीति का पालन भी तो करना होता है.

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