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नाचत हम, नाचत तुम, नाचत जिंदगी हमरे संग,
नगाड़ों की नाद से, चेंदा की थाप से
अनेकता में एकता लिए, नाचत सबहु कण
मेहंदी की ललाई, योग की सिखाई, नृत्यों की नचाई
हमने दिखाई विश्व को ‘हमरी सचाई’
चार वर्ष पूर्व ऑस्ट्रेलिया में सम्पन्न हुए राष्ट्रमंडल खेलों की समापन समारोह की भव्यता देख यह प्रतीत हुआ था कि क्या 2010 में दिल्ली में भी ऐसा कुछ देखने को मिलेगा? और इस सवाल का उत्तर हाँ है. इतना बड़ा हाँ कि इस हाँ के पीछे पुरानी सारी गलतियाँ समां गयीं और विश्व के सामने भारत की जो छवि उभर कर आई वह अतुल्य थी.
रंगीन था समां
19वें राष्ट्रमंडल खेलों के उद्घाटन समारोह में 3 अक्टूबर को भारतीय संस्कृति और अनेकता में एकता का अद्भुत नजारा देखने को मिला. जहाँ एक तरफ़ 18 भाषाओं में अभिवादन, बानगी था हमारे जज्बे का वहीँ सोच को रफ्तार देने वाला संगीत, मिसाल थी हमारे जोश की. आम आदमी को श्रद्धांजलि देते हुए हम भारतीयों ने दिखा दिया कि बात जब खेलों की आती है तो भारत क्या कर सकता है.
60 हज़ार देशी-विदेशी दर्शकों के बीच शुरू हुए उद्घाटन समारोह की शुरुआत शंखनाद से हुई और फिर डंग चेन ने दर्शकों का मन मोह लिया. उद्घाटन समारोह की भव्यता देख यह प्रतीत हो रहा था कि जैसे पूरा भारतवर्ष आज दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम में समां गया है.
भारतीय वाद्य यंत्रों से शुरू हुए कार्यक्रमों में ड्रम वादकों की थाप से लोग झूमने लगे. शास्त्रीय नृत्य, क्षेत्रीय संगीत और शानदार आतिशबाजी से समारोह स्थल जगमगा उठा गया था.
ग्रेट इंडियन जर्नी
समारोह की विशेष बात यह थी कि इस समारोह से सभी ने अपने आपको जुड़ा पाया. समारोह के दौरान ‘ग्रेट इंडियन जर्नी’ के द्वारा भारत देश के परिदृश्यों को दर्शाया गया. ‘ग्रेट इंडियन जर्नी के दौरान मुंबई के डब्बावाला से लेकर स्टेशन के कुलियों को, ईंट ढोने वाले मज़दूरों को, साइकिल ठीक करने वाले कारीगरों को, भोंपे से जनता को परेशान करने वाले नेताओं को और भारत की आम जनता को जिस रूप से प्रस्तुत किया गया वह कबिलेतारीफ़ था.
मैदान के ऊपर लगे एयरोस्टेट गुब्बारे में लगी विशेष लाइटें नीचे चल रहे कार्यक्रम के मुताबिक रंग बदल रही थीं और इस सतरंगी छटा में कलाकारों के प्रदर्शन को देख दर्शक मंत्रमुग्ध हो रहे थे. भारत की हस्तकला को प्रस्तुत करता कार्यक्रम ‘द नालेज ट्री’ भी इसी एयरोस्टेट गुब्बारे के द्वारा दिखाया गया.
बापू को श्रद्धांजलि
दुनियाभर में मशहूर भारतीय कलाकार सुदर्शन पटनायक द्वारा रेत पर आकृतियां उकेरकर बापू की दांडी यात्रा का जो चित्र प्रस्तुत किया गया उसे देख सब मन्त्रमुग्ध हो गए.
चाहे रहमान का ऑस्कर विजेता गीत ‘जय हो’ या फिर मौज़-मस्ती से भरा ‘छैंयाँ-छैंयाँ’ पूरे समारोह के दौरान भारत की संस्कृतिक विरासत और अनेकता में एकता की भव्यता का जो प्रदर्शन किया गया उसे देख यह कहीं भी नहीं प्रतीत हुआ कि कुछ दिनों पहले राष्ट्रमंडल खेलों पर काले बदल छाए हुए थे और निरंतर हो रही बरसात ने तो सारे किए कराए पर पानी ही फेर दिया था.
कुछ भी हो इस समारोह के टीम सॉग से एक बात तो साफ़ तय हो गई कि “जियो, उठो, बढ़ोगे” तो जीतोगे ज़रूर.
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