मुझे याद आते है
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हमने आसमान से जमीन का सफ़र तय किया उनके लिए!
उन्हें खबर भी न हुई एक नज़र देखा और मुस्करा कर चल दिए!!
रफ्ता रफ्ता उनकी चाहत के रंग दिल में गहराने लगे !
हवाओ ने भी रुख बदला वो बारिश के डर से उठे और चल दिए!!
आँखे बरस रही थी अनवरत ,दरिया बना था आँखों में !
उनके कदम बड़े और कागज़ की किश्ती तैरा कर चल दिए!!
क्या गिला करू मैं इन झूमती हवाओं का !
उन्होंने संगीत समझा और गुनगुना कर चल दिए!!
खनक उठे हम कांच के टूटे टुकडो की तरह !!
वो अपना अक्स निहार कर चल दिए !
ऐ खुदा किसी को ऐसा मंजर न दिखाए मोहब्बत में !!
हम उनके आगे बिखरते गए किताब के पन्नो की तरह!
वो आये अहिस्ता से चिंगारी दिखा कर चल दिए!!
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