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संवाद बना रहे!

मुझे याद आते है
मुझे याद आते है
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आज मेरी बेटी की सहेली उसके साथ घर आ गई .बहुत उत्साह से मेरी बेटी ने उसका परिचय कराया .जब उनको खाना परोसा तो अनायास ही मेरी बेटी के सर पर हाथ रखते ही दूसरा हाथ उसकी सहेली के सर पर चला गया !अचानक उसकी सहेली ने सर ऊँचा कर मेरी आँखों में झाँका .एक पल के लिए मैं  भी अचकचा गई  ,क्या हो गया ?इतने में उस बच्ची के मुह  से जो शब्द निकले सुनकर मैं हतप्रभ रह गई ” आंटी मेरी मम्मी ने कभी मेरे सर पर इस तरह हाथ नहीं रखा “सुनकर दिल को धक्का सा लगा “
ऐसे ही मुझे मेरी बचपन की एक सहेली की याद आ गई ….  एक साथ एक ही स्कूल में होने और पड़ोस में रहने के कारन हमारा बहुत समय एक साथ ही व्यतीत होता था ! .मेरी माँ और पिताजी हमेशा एक साथ भोजन करते थे ,दोनों नौकरी पेशा होने के बावजूद भोजन पर एक दुसरे का इंतज़ार जरुर करते थे ….यद्यपि बचपन में इन बातो का  ध्यान बच्चे बहुत कम रखते है लेकिन एक बार ऐसे ही भोजन के समय जब मेरी माँ और पिताजी भोजन कर रहे थे तब मेरी सहेली ने कहा ” तेरे माँ और पिताजी हमेशा एक साथ भोजन करते है लेकिन मैंने मेरे माँ और पिताजी को कभी एक साथ भोजन करते नहीं देखा !
उस समय इन बातो की कीमत समझ नहीं आती थी !लेकिन विवाह के बाद और बिटिया होने के बाद यही बाते महत्वपूर्ण लगने लगी !जब बिटिया स्कूल जाने लगी तो वापिस आते ही मैं उससे रोज़ सवाल करती .”सुबह घर से टैक्सी में बैठने के बाद और घर आने तक क्या क्या हुआ  बताओ “और वो अपनी हर बात का टेप चालू कर देती …….जो आज तक जारी है !किस सहेली से लड़ाई हुई किस सहेली ने उससे क्या कहा ,उसने किसी से क्या कहा सब टेप में होता .स्कूल में क्या किया  सब कुछ !और कभी व्यस्तता के कारन बिटिया से सवाल न करू की आज क्या हुआ ……..समय मिलते ही ” मम्मी आज तो आपने मेरे से पुछा , स्कूल में क्या हुआ ” और मुझे माफ़ी मांगते हुए उसे समय देना पड़ता है .पर उस समय उसके चेहरे की  ख़ुशी क्या देती है बयां करना मुश्किल है
मेरी ये बाते हो सकता है आपको साधारण सी लगे …..पर इन के पीछे छिपी गहराई  कम नहीं है !माता पिता का आपकी व्यव्हार भी पूरी तरह से बचपन को प्रभावित करता है !बचपन  को एक स्नेह भरे स्पर्श की जरुरत हमेशा होती है .वो स्नेह भरा स्पर्श उनके दिल के अन्दर क्या चल रहा है सब बाहर ले आता है !माता – पिता को पता चलता है संतान के दिल में क्या चल रहा है ,वो किस मानसिक स्थिति में है ?संवाद बना रहे ये जरुरी है !

Mother_and_Daughter_by_xcgirl08

दो दिन पहले मेरी बेटी की सहेली उसके साथ घर आ गई .बहुत उत्साह से मेरी बेटी ने उसका परिचय कराया .जब उनको खाना परोसा तो अनायास ही मेरी बेटी के सर पर हाथ रखते ही दूसरा हाथ उसकी सहेली के सर पर चला गया !अचानक उसकी सहेली ने सर ऊँचा कर मेरी आँखों में झाँका .एक पल के लिए मैं  भी अचकचा गई  ,क्या हो गया ?इतने में उस बच्ची के मुह  से जो शब्द निकले सुनकर मैं हतप्रभ रह गई ” आंटी मेरी मम्मी ने कभी मेरे सर पर इस तरह हाथ नहीं रखा “सुनकर दिल को धक्का सा लगा ”
ऐसे ही मुझे मेरी बचपन की एक सहेली की याद आ गई ….  एक साथ एक ही स्कूल में होने और पड़ोस में रहने के कारण   हमारा बहुत समय एक साथ ही व्यतीत होता था ! .मेरी माँ और पिताजी हमेशा एक साथ भोजन करते थे ,दोनों नौकरी पेशा होने के बावजूद भोजन पर एक दुसरे का इंतज़ार जरुर करते थे ….यद्यपि बचपन में इन बातो का  ध्यान बच्चे बहुत कम रखते है लेकिन एक बार ऐसे ही भोजन के समय जब मेरी माँ और पिताजी भोजन कर रहे थे तब मेरी सहेली ने कहा ” तेरे माँ और पिताजी हमेशा एक साथ भोजन करते है लेकिन मैंने मेरे माँ और पिताजी को कभी एक साथ भोजन करते नहीं देखा !
उस समय इन बातो की कीमत समझ नहीं आती थी !लेकिन विवाह के बाद और बिटिया होने के बाद यही बाते महत्वपूर्ण लगने लगी !जब बिटिया स्कूल जाने लगी तो वापिस आते ही मैं उससे रोज़ सवाल करती .”सुबह घर से टैक्सी में बैठने के बाद और घर आने तक क्या क्या हुआ  बताओ “और वो अपनी हर बात का टेप चालू कर देती …….जो आज तक जारी है !किस सहेली से लड़ाई हुई किस सहेली ने उससे क्या कहा ,उसने किसी से क्या कहा स्कूल में क्या किया  सब कुछ  टेप में होता .!और कभी व्यस्तता के कारण  बिटिया से सवाल न करू, कि आज क्या हुआ ……..समय मिलते ही ” मम्मी आज तो आपने मेरे से पुछा  ही नहीं कि स्कूल में क्या हुआ ” और मुझे माफ़ी मांगते हुए उसे समय देना पड़ता है .पर उस समय उसके चेहरे की  ख़ुशी क्या देती है बयां करना मुश्किल है
मेरी ये बाते हो सकता है आपको साधारण सी लगे …..पर इन के पीछे छिपी गहराई  कम नहीं है !माता पिता का आपकी व्यव्हार भी पूरी तरह से बचपन को प्रभावित करता है !बचपन  को एक स्नेह भरे स्पर्श की जरुरत हमेशा होती है .वो स्नेह भरा स्पर्श उनके दिल के अन्दर क्या चल रहा है सब बाहर ले आता है !माता – पिता को पता चलता है संतान के दिल में क्या चल रहा है ,वो किस मानसिक स्थिति में है ?अगर आपको लगता है बच्चे अपनी भावनाएं आप को बताये तो जरुरी है ………संवादहीनता  की स्थिति न आने दे mother-and-daughter-unique-consignment

किशोरावस्था  से गुजर रहे बच्चों के साथ संवादहीनता के  परिणाम घातक हो सकते है व्यस्त दिनचर्या और तनाव लोगों को अंतर्मुखी बनाता जा रहा है नतीजतन परिवारों में संवादहीनता भी बढ़ती जा रही है। तकनीक ने जीवन को जितना सरल किया है उतना ही उलझाया भी है। यंत्रवत जीवन से संवेदनाएं कुछ यूं गुम हुई हैं कि हम अपने मन की कहने और अपनों के मन की सुनने की क्षमता खोते जा रहे हैं। तकनीक ने जितनी दूरियां कम की है उतनी ज्यादा भी की है ! आपाधापी  भरे आज के जीवन में यूँ  तो सभी की दिनचर्या व्यस्त है ही  लेकिन इसके बावजूद अगर हम सभी पारवारिक सदस्य कम से कम एक समय का भोजन एक साथ करने की व्यवस्था करे तो संवादहीनता से कुछ हद तक बचा जा सकता है  वर्ना  संबंधों में साथ रहते हुए भी दूरियाँ अपनी जगह बना ही लेती हैं।

इसलिए जरुरी है …..संवाद बना रहे

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