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कभी इस दल को,कभी उस दल को अपना ही मान
चुनावी विगुल सुन गिरगिट से नेता खो रहे सम्मान
आज शिक्षित नौजवां की’वेरोज़गारी’ बन गई पहचान
जनता महंगाई से हुई आक्रांत,फिर भी नेता अंजान
आज दिख रही है दागी हर पार्टी, नहीं उतारों आरती
सोचो जनता, इन घने अंधेरों में कौन बनेगा सारथी
भोली जनता सोच रही ,उसने क्या खोया क्या पाएगी
बदलेसे मुखौटे में कांग्रेस कर विदा क्या मोदी लाएगी
देश को कंगाल बना, फिर भी बोट माँगते हाथ फैला
या फिर दागियों को साथले भ्रष्टतंत्र का कमल खिला
आज दिख रही भ्रष्ट हर पार्टी, नहीं उतारों अब आरती
कभी ‘समाजबादी’ हो भूखी जनता को नाच दिखाते हैं,
कभी दलितों के मसीहा बन साम-दाम से भरमाते हैं
मेरे देश की सोने की चिड़िया को भिखारिन बनाते हैं
अब फिर आश्वासन के सिंहासन-जनता तुझे बिठाते हैं
अब दिख रही दागी हर पार्टी,नहीं उतारों इसकी आरती
सोचो जनता इस घने अंधेरे में, कौन बनेगा अब सारथी
पहने फूलमालाएँ, चुनावी-समर में उतरवाते हैं आरतियाँ
नहीं जानते ये नेता,पीड़ित मानवता की सज़ाते अर्थियाँ
अभी समय रहते जाग ‘जनतंत्र’,कभी न नेता ये बदलेंगे
सत्ता पाते ही ये फिरसे भ्रष्टाचार की फसल को बो देंगे
दिख रही दागी हर पार्टी, अब नहीं उतारों इसकी आरती
सोचो जनता इस घने अंधेरे में कौन बनेगा अब सारथी
कहतें हैं, आर. टी आई का क़ानून निरीह जनता के लिए
सभी पार्टियाँ होंगी इससे दूर, सभी बिल बना एक हो लिए
नेताओं की इन धूर्त चालों से हम-सब आपस में ही लड़ेंगे
चुनावी-जीत के बाद ये फिर जातिबादी व सांप्रदायिक होंगे
दिख रही दागी हर पार्टी, नहीं उतारों अब इसकी आरती
सोचो जनता इस घने अंधेरे में, अब कौन बनेगा सारथी
अब फिर बिजली, पानी और गैस सभी के दाम बढ़ जाएँगे
दूध न पाकर मासूम दुधमुहे बालक भी अनछुए न रहेंगे
अपने पापों का प्रायश्चित लालची नेता कभी नही करेंगे
देश के संविधान की कसमे खानेवाले स्वार्थी उसे बदलेंगे
दिखा रही दागी अब हर पार्टी ,न उतारो इसकी आरती
सोचो जनता इस घने अंधेरे में अब कौन बनेगा ‘सारथी’!
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