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”यह दिल माँगे मोर
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कल शाम जब चुनाव प्रचार थमा तो मन में बड़ा ही सुकून मिला,
महीनों से इस चुनावी-शोर से जी ऊब चुका था,कई महीनों से सड़क
से लेकर टेलीबिजन तक राजनीतिक बातों का ही ज़ोर था, जिसमे
सबसे अधिक गरमाया था..’अबकी बार मोदी सरकार’ का नारा …..
रात्रि के प्रथम पहर में यही सब सोचते-सोचते कब निंद्रा ने मुझे
घेरा, पता ही ना चला…और फिर सपने में मैने अपने देश के भावी
प्रधान-मंत्री पद के उम्मीदवार मोदी जी को अपने घर के दरवाजे पे
पाया, तो भारतीय शिष्टाचारवश घर में उनका स्वागत करते हुए, जब
जल-पान और खाने में उनकी पसंद को जानना चाहा तो मोदी जी
तो जैसे इसी प्रश्न के इंतजार में ही थे….तपाक से बोले ..हां, बड़ी
भूख लगी है…मेरी थाली में मुझे तो बस ३०० कमल ही चाहिएं…
कुछ कमल कम न रह जाएँ, इसीलिए, बहन,’ये दिल माँगे मोर ‘
हैरान- परेशान होकर बोली..’ मोदी जी, इतनी रात को कमल कहाँ
मिलेंगे …अबतो आप कमल माँगना छोड़ दीजिए, यह आचारसंहिता
का उलंघन होगा…तब मोदी जी बोले आचारसंहिता का उलंघन ना हो
इसीलिए तो मैं अब कुछ लोगों के सपने में आकर बाकी बचे कमल
माँग रहा हूँ, तुम्हारे पास इसीलिए आया हूँ, कि बहन, तुम लेखनी के
द्वारा कुछ कमल खिला सको …सुनकर मैं कशम-कश में पड़ गई..कि
घर आए मेहमान की बात मानी जाए.. अथवा अपने ‘आप’ से किए..
वादे .. नहीं मैं पहले किए वादे ही …और मैं जैसे दो नावों के बीच
खड़ी डर गई थी…कि बस एकाएक आँखे ही खुल गईं…सामने कोई
न था फिर भी जैसे,अभी भी मुझे एक ही आवाज़ की गूँज सुनाई
पद रही थी…”यह दिल माँगे मोर” …
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