Sushma Gupta's Blog
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नदी की इसी धार सा
वहता जाता यह जीवन
बिन खेवनहार भी खेता
तन की इस नैया को
मुश्किलों की मझधार में
लड़ता तूफानी मौजों से
होता ना हताश कभी..
पतवार से उम्मीदों की
खे रहा अवाध गति से
इस पार से उस पार तक
होगा मिलन बहारों से भी
गर्दिशों में चाहत उसे तो
गम में डूवों को बचाने की
वज़ह है बस जीने की
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