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सिर्फ़ बेटों की चाहतों में बसती न वस्तियाँ
बेटियाँ खुदा का नूर बन बनाती हैं हस्तियाँ
बेटियों से ही रोशन होते घर के चिराग हैं,
बेटियाँ न हों तो बढ़ न सकेंगी वंश-वेलियाँ
चाहत बेटों की पालने बालों, उनके जवां होते
फिर क्यों ढूढ़ते हो, पराई मासूम सी बेटियाँ
दुनियाँ की हर दौड़ में आगे ही चलतीं जा रहीं
हर शिकस्त मात देतीं,अंतरिक्ष में भी बेटियाँ
परी बनके आतीं हैं जब धरती की ये बेटियाँ
तब सारे राग-रस-सौरभ बरसाती हैं ये बेटियाँ
जिस घर में बेटियाँ , वहाँ लक्ष्मी अवश्य आती
जाते हुए भी अपनत्व की पूंजी दे जातीं बेटियाँ
मात-पिता को कन्या-दान का पुण्य देती बेटियाँ
वक्त विदाई के हर किसी को आँसू में भिगो जातीं
परायों औ,पराए घर को अपना बनाती ये बेटियाँ
निज अरमानों की हस्ती, दूजो पे लुटाती बेटियाँ
कद्र करो दुनियाँ वालों, ये तो वो अमृत-कलश हैं
जिसे हर किसी पर प्यार से छलका देती बेटियाँ
अंजाने ही तुम पाषाण में भी पूजते हो ये बेटियाँ
फिर अनचाही नफ़रत कैसी,क्यों मारते हो बेटियाँ?
गर चाहते हो दुनियाँ में सुख-वैभव,औ,अमन-चैन
तो फिर लेलो संकल्प, नहीं तोड़ोगे ये नन्हीं कलियाँ
देखना फिर इक दिन महका देंगी दुनियाँ का चमन
और बस फिर बसेगा इस जहाँ में अमन ही अमन
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