नए कदम
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कुछ उदास पल हैं।
कभी अटखेलियाँ थी॥
और मुस्कान में बिखरी।
कुछ सच्चियाँ थी॥
एक भरोसा था।
अपने अपनों पर॥
कुछ नशा सा था।
खुदके सपनों पर॥
सोचता हूँ,
क्या मैं सही हूँ।
या वही सही है॥
जो मेरी तो है।
पर अब मेरी नहीं है॥
जिसे अब मालूम है।
की मैं गलत हूँ॥
इस इंसानियत की महफिल में।
मैं बेगेरत की हद हूँ॥
गलत हैं वो सब लोग।
जो मेरे आसपास है॥
बेवकूफ हैं बदतमीज़ हैं।
गरूर में बदहवाज़ हैं॥
और मैं हँस पड़ता हूँ।
मेरी बेबसी पर॥
तुम भी कुछ हँस लो।
मेरी हँसी पर॥
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