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नए समझ सोच को पिरोना ही है

नए कदम
नए कदम
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यह तो होना ही है ।
जाते समय को खोना ही है ॥
नया अध्याय नये पन्ने पर ।
नए समझ सोच को पिरोना ही है ॥

कई सादिया देखी परखी ।
नयी ऋतू को जीवन संजोना ही है ॥
नए फूलों को खिलना ही है ।
नयी आशा कि पौध को बोना ही है॥

हरे भरे पेड को लहलहराते देखा है ।
पतझड में उसे पत्ते खोना ही है ॥
नए सुबह कि रोशनी के लिए ।
रात को पुराना होना ही है ॥

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