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माँ

नए कदम
नए कदम
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भीड़ में मैं अपने आसूँ रूक लेती हूँ।
एक सूनसान कोने में छुपकर रोती हूँ॥
मेरी माँ मुझे चुप क्यों नहीं करती।
यही सवाल मैं रोज़ खुद से करती हूँ॥

तेरी लोरी को मेरे कान तरस गए।
तेरे आँचल के बिना कितने बरस गए॥
मैं मेरे आँचल में गम समेट लेती हूँ।
“मैं खुश हूँ”, ऐसा झूठ कहती हूँ॥

आज एक हथेली 10 का नोट थमा गयी।
उसकी शक्ल से तेरी याद आ गयी॥
जिस मोड पर तू मुझे छोड़ गयी थी।
उसी चोरहे पर मैं अब सोती हूँ॥

मैं पेट भरने के लिए बदनाम होती हूँ।
जमाने की बुराइयाँ चुपचाप सहती हूँ॥
की अगला जन्म में मैं बेटी बनूँ।
पर तेरी नहीं, यही दुआ करती हूँ॥

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