नए कदम
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और उसको नहीं पाती है
अपनी हालत पे हँसती है
और आँसु नहीं रोक पाती है
पगली सी बववली सी
एक दर्पण कि तलाश में
अनपी छवि दूसरों कि आँखों में देखती
सभलती सवरती साजन कि आस में
अपनी हालत खुद नहीं समझ पाती है
हर सुबह एक फूल कि तरह खिलती है
और शाम को उदास हो मुरझा सी जाती है
गाँव में बड़ी रौनक सी लगी रहती है
जिस गाँव में यह दीवानी पगली रहती है
सभी हँसते है उस पर
और रुलाते है उसको
उसके साथ चलते है गाँव भर
और साजन के घर तक पहुचते है उसको
पर कोई भी उसको समझ नहीं पता है
मिलते है सब रोज़ उससे
पर कोई उसे साजन से नहीं मिला पता है
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