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आखिर कब देश के जवानों का दर्द समझेगे?

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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एक बार फिर कश्मीर राजनीती का अखाडा बनता जा रहा है| एक बार फिर तमाम तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल राजनीती की भट्टी में कश्मीर के भविष्य को झोंकते नजर आ रहे है| इस बार मामला विस्थापित कश्मीरी पंडितो का नहीं बल्कि कश्मीर को बाढ़, बीमारी, आतंक भूख आदि से बचाने वाली सेना के रिटायर जवानों के मकानों को लेकर है| पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने साफ किया है कि यदि घाटी में पूर्व सैनिको को बसाया गया तो देश बड़े विरोध प्रदर्शन को तैयार रहे| उमर अब्दुल्ला और कांग्रेस ने कहा कि सैनिक कॉलोनी बनाने के सरकार के प्रस्ताव का सीधा मतलब धोखे से बाहरी लोगों को कश्मीर में बसाने की चाल है और धारा 370 को नजरअंदाज करना है| तो वहीं अलगाववादियों ने विरोध का ऐलान कियाअलगाववादी नेताओं ने भी घाटी में रिटायर्ड जवानों के लिए अलग (सैनिक) कॉलोनी बनाने को कश्मीर में बाहरी लोगों को बसाने की चाल और मुस्लिम बहुल राज्य के सामाजिक ढांचे में बदलाव बताया है|

यदि विपक्ष की बात करें तो जब बात कश्मीर की रक्षा की होती है, तो सैनिक अन्दर के हो जाते है| किन्तु जब उनके रहने आवास आदि की बात आती तो सैनिक बाहर के लोग हो जाते है| शायद इसी कारण पिछले कुछ सालों से सेना कश्मीर के अन्दर लगातार सम्मान और मकान के लिए तरस रही है| एक ऐतिहासिक भूल धारा 370 को विपक्ष आज भी अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाये खड़ा है| किन्तु यह प्रतिष्ठा का प्रश्न क्या सिर्फ गैर मुस्लिम लोगों के लिए है? क्योंकि श्रीनगर के अन्दर तिब्बत से आकर बड़ी संख्या में तिब्बती मुस्लिम तो बस सकते है| लेकिन जब बात अन्य समुदाय की आती है, तब धारा 370 हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है  श्रीनगर के बीचोबीच बाहरी मुस्लिम बस सकते है किन्तु जब सेना के जवानों को बसाने का जिक्र करते तो सामाजिक धार्मिक ढांचा बिगड़ने की बात दोहराई जाती है| जो राजनेता या या दल एक स्वर में आज मात्र कुछ सैनिको के वहां बस जाने से कश्मीर का सामाजिक, धार्मिक ढांचा बिगड़ने की बात कर रहे है; वो तब कहाँ थे, जब तीन दिन के अन्दर मजहबी जूनून में पागल हुए एक वर्ग के कारण साढ़े तीन लाख कश्मीरी पंडितों को घाटी से भागना पड़ा था? क्या तब सामाजिक धार्मिक बिगड़ने की बजाय सोहार्दपूर्ण हुआ था?

हमेशा से जम्मू कश्मीर, आसाम, और बंगाल पर राजनैतिक दलों के नजरिये में कहीं ना कहीं दोहरापन दिखाई देता है| कश्मीर में पंडितों को बसाने की बात पर बिफरने वाली ममता बनर्जी ने पिछले दिनों साफ तौर पर धमकी देते हुए कहा था| यदि एक भी बांग्लादेशी को बाहर निकाला गया तो देखना हम क्या करेंगे!! हर मुद्दे को वोट के आधार पर देखने वाले राजनितिक दल आखिर कब देश के जवानों का दर्द समझेगे? वर्ष 1988 से अब तक कश्मीर में 6193 जवान शहीद होने के अलावा ना जाने कितने जवान अपने अंग गवां चुके है| लेकिन राजनेता हमेशा उनके बलिदान को सिर्फ एक कानून की धारा 370 में लपेट कर शाशन करते नजर आ रहे| सब जानते है अलगाववादियों को घाटी में जवानों का बसना कतई रास नहीं आएगा पर देश के अन्य विपक्षी दलों को जवानों के वहां बसने से क्या आपत्ति है? यदि आपत्ति है तो फिर अलगाववादियों और इन दलों में अंतर क्या है?

आज भारत की सुरक्षा की दृष्टि से हिमालयी क्षेत्र अत्यन्त महत्वपूर्ण है। लेकिन दुर्भाग्य से यह क्षेत्र विकास की दृष्टि से भी और सुरक्षा की दृष्टि से भी अवहेलित रहा है। पाकिस्तान के अनधिकृत कब्जे में जम्मू-कश्मीर का लगभग 10 हजार वर्ग कि.मी. भाग है। आज यह क्षेत्र पूर्णतया मुस्लिम हो चुका है| ऊपर से चीन तिब्बत में अपने पूर्व सैनिको को बड़ी संख्या बसा कर आज पाक अधिकृत कश्मीर में भी अपने सैनिक अड्डे बनाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है| उसे देखते हुए आज समय की मांग है कि भारत ज्यादा से ज्यादा संख्या में सैनिको पूर्व सैनिको को अंदरूनी बाहरी के मुद्दे से हटकर कश्मीर में बसा दे| आज कश्मीर में विकास की काफी सम्भावना है| पर्यटन के अलावा कश्मीरी कपड़ो का भी बड़ी संख्या में कारोबार होता वहां के लोगों को आज अपना अपने आने वाली नस्ल का भविष्य सोचना होगा| अनंतनाग के एक युवा अतहर आमिर उल शफी आई ए एस में चुने जाने को लेकर काफी खुश है आमिर कहता है कि कश्मीर को सबसे पहले गीलानी जैसे कट्टरपंथियों की चंगुल से लोगों को आज़ाद कराना होगा| मैं चाहता हूँ कि वह माहौल बने जिसमें जनमत संग्रह में हिन्दुस्तान को बहुमत मिले और हम सर उठा के संतोष के साथ कह सकें कि हम एक सेक्यूलर देश हैं और कश्मीर हमारा बेहद अजीज़ हिस्सा है और यह सुनकर कश्मीरी मुस्कुरा कर सहमति दे|lekh by  rajeev choudhray

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