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आस्था या पागलपन?

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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उत्तराखंड के वनों में लगी आग अभी बुझी ही थी कि अचानक उतराखंड में जातिवाद की लपटों ने सामाजिक समरसता को चपेट में ले लिया दुखद बात ये कि घटना देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में हुई जहाँ से सब के लिए बिना भेदभाव किये गंगा यमुना बहती है इन नदियों का उद्गम स्थल पर इतना भेदभाव! बल्कि वहां से सामजिक समरसता की मिसाल कायम होनी चाहिए थी| देश के अलग-अलग हिस्सों से खबर आती रहती है कि मंदिरों में दलितों को जाने नहीं दिया जा सकता, यह परंपरा यह कानून बनाने वालों ने इसे इतना पवित्र मान लिया कि सब कुछ टूट-फूट सकता है, किसी का सिर फुट सकता है, हाथ पैर टूट सकता है मगर यह कानून नहीं टूट सकता| पता नहीं यह आस्था है पागलपन? दलितों को सिलगुर मंदिर में प्रवेश कराने को लेकर राज्यसभा सांसद तरुण विजय और दलित श्रद्धालुओं पर उग्र भीड़ ने हमला कर दिया। भीड़ ने तरुण विजय, दलित नेता दौलत कुंवर की गाडि़यां भी तोड़फोड़ कर खाई में फेंक दीं। पुलिस के साथ भी भीड़ ने हाथापाई की। सांसद के सिर पर गंभीर चोटें आयी हैं। इससे ज्यादा लज्जाजनक क्या होगा कि वर्षो से जातीय उत्पीडन सह रहे दलितों को जब भाजपा सांसद तरुण विजय ने मंदिर में प्रवेश की मुहीम छेड़ी तो जातीय उन्माद में अंधे लोगों ने उनपर ही हमला कर दिया| दरअसल पोखरी में हुई हिंसा क्षणिक आवेश में बौखलाए कुछ लोगों की कारस्तानी नहीं थी बल्कि उत्तराखंड के इस इलाके में फैले जातिवाद का एक वीभत्स रूप था|

यदि वैदिक काल के बाद भारत का आस्था, उपासना का इतिहास देखे तो सिर शर्म से झुक जाता है| अन्धविश्वास, छुआछूत और जातिवादी परम्पराओं के कारण हिन्दुओं के हजारों मंदिर अन्य लुटेरों द्वारा तोड़ दिए गये पर यह लोग आज तक अपनी उन परम्पराओं को नहीं तोड़ पाए जो इन्होनें रंग भेद अमीर गरीब को देखकर बनाई थी| जब यह सामंतवादी लोग मानते है कि हम सब एक ईश्वर की संतान है तो फिर यह सोच कहाँ से आई कि उसके मंदिर में फ़लां आ सकता है, फ़लां नहीं. फ़लां पवित्र है और फ़लां अपवित्र? सामंतवाद कहो या जातिवाद आज की तारीख़ में अपने धार्मिक चोले में अपनी अतार्किकता, अपनी अमानवीयता को बचाकर रख सकता है, क्योंकि उस पर प्रश्न लगाना सबसे कठिन है, संवेदनशील मामला है| यह उंच नीच का भेदभाव रखने वाले लोग  दलितों के हर तरह के इस्तेमाल में विश्वास तो रखते है, किन्तु उसे अधिकार देने में नहीं आखिर ऐसा क्यों?

शनि शिगणापुर का मामला अभी भी ठंडा नहीं हुआ है जब एक महिला सब पुरुषों की आँख बचाकर मंदिर में प्रवेश कर लिया था जिसके बाद इन तथाकथित धर्म के ठ्केदारो द्वारा उक्त मंदिर को अपवित्र बता गाय के दूध से धोने का ढोंग रचा गया था| शिगणापुर की इस पहल ने मुस्लिम महिलाओं को भी क़दम बढ़ाने के लिए प्रेरित किया था और वो भी मुंबई के आज़ाद मैदान में हाजी अली दरगाह में प्रवेश की मांग को लेकर इकट्ठा हुईं थी| देश को स्वतंत्र हुए 70 साल बीत गये कितु धर्म ध्वज वाहक अभी तक तय नहीं कर पाए की किसे मंदिर में प्रवेश दे किसे नहीं! यदि यह मंदिर इनके अपने है तो लोग इनके अन्दर जाते क्यों है और यदि मंदिर भगवान के यह तो फिर यह लोग रोकने वाले कौन होते है? यदि यह लोग समाज को सही दिशा नहीं दे सकते, इन खोखली और बेजान परम्पराओं के खिलाफ नहीं बोल सकते तो यह देश धर्म के लिए कतई शुभ नहीं है| सच में सांसद तरुण विजय पर हुए हमले में कठोर स्वर सुनाई देने चाहिए थे मुख्यमंत्री मंत्रियों द्वारा दोषियों पर कड़ी कारवाही की जानी चाहिए तमाम दलों के नेताओं को अपने जातीय हित छोड़कर इस मानसिक बीमारी के खिलाफ अपनी आवाज़ मुखर करनी चाहिए तभी इस देश में कोढ़ की तरह फैले जातिवाद को कम किया जा सकता है जब  सबसे पहले तो यहां के बुद्धिजीवी, महंत, मंडलेश्वर यह स्वीकार करें कि यहां जातिवाद की गहरी  पैठ है और फिर वे लोग धीरे-धीरे लोगों में जागरूकता लेकर आएं, ताकि देश इन लज्जाजनक कार्यो से बाहर आ सके| दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा ..लेख राजीव चौधरी

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