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एक नई सामाजिक पहल

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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अमूमन हमारे आधुनिक समाज में शादी विवाह में या तो अतिथि सेवा पर जोर रहता है या फिर बाहरी चमक-दमक और दान दहेज आदि पर. लेकिन इनके साथ यदि कोई शादी विवाह में डॉ मुकुल कपूर की तरह कुछ अलग हटकर समाज सेवा में सहयोग करें तो निश्चित ही वह खबर समूचे समाज के लिए प्रेरणा का विषय बन जाती है. दरअसल अभी पिछले दिनों होटल रेडिसन ब्लू में समारोह था डॉ मुकुल कपूर और श्रीमती अजंली कपूर के बेटे सामयक संग वसुंधरा के विवाह का. जिसमें मुकुल कपूर ने निमन्त्रण पत्र में ही समाज सेवा के प्रति अपना समर्पण दर्शा दिया था.

इस समाज सेवी परिवार ने अपने निमन्त्रण पत्र में लिखा कि हमारे सुपुत्र “सामयक संग वसुंधरा” की शादी के समारोह में आप सभी सपरिवार आमंत्रित है. कृपया उपहार न लाये और कार्ड में दी गयी तालिका का अनुपालन करें. इसे एक सामाजिक पहल के रूप में ले.

हमारे यहाँ पहली मेज पर आप अंग दान के विभिन्न पहलुओं के बारे में बारीकी से समझ सकते हैं और अपने अंगों को दान करने के प्रति वचन पर हस्ताक्षर कर सकते हैं.

दूसरी मेज पर आप पुराने कपड़ों को जो अच्छी स्थिति में हो दान कर सकते हैं, धोकर उन्हें इस्त्री कर भी ला सकते है ये निर्धन, वंचितों की सहायता के लिए आर्य समाज के एक उद्यम सहयोग के लिए हैं आप जरूरतमंद लोगों के लिए नये कपडें भी दे सकते हैं. सहयोग का नारा “आपका सामान जरुरतमंद की मुस्कान” है. सहयोग आर्य समाज की एक इकाई अखिल भारतीय दयानंद सेवाश्रम संघ के साथ कार्य करता है, जो एक ऐसा संगठन है, जो मुख्य रूप से अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जातियों से गरीबी, निरक्षरता, और सामाजिक असहिष्णुता से ग्रस्त राज्यों से वंचित बच्चों को शिक्षित करने के लिए समर्पित है. सहयोग आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के बच्चों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध हैं. सहयोग का कार्य उद्देश्य शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है ताकि इन लोगों को मुख्यधारा के समाज में लाया जा सकें ताकि ये बच्चें आगे चलकर राष्ट्रनिर्माण में सहायता कर सकें. सहयोग कम विकसित क्षेत्रों और भारत के राज्यों में काम कर रहा हैं. देश के लगभग 10 राज्यों में सहयोग के 40 केंद्र हैं.

तीसरी मेज शारीरिक रूप से विकलांग वयस्कों को रोजगार देने के लिए लगाई गयी है आप अपने घरों से पुराने समाचार पत्र आदि ला सकते है इन सामानों से पेंसिल, गुरुद्वारा से प्राप्त चैड से शगुन लिफाफे, पर्दे और अन्य मोटी सामग्री से बैग बनाना आदि का कार्य किया जाता है. आवश्यकताओं वाले वयस्कों के लिए एक स्थायी एकीकृत समुदाय बनाने के लिए यह एक मिशन है, ताकि वह एक सार्थक और प्रतिष्ठित जीवन जी सके.

स्वागत समारोह में आपको देखने के लिए उत्सुक हैं

अंजलि और मुकुल कपूर

इस तरह होटल रेडिसन ब्लू में होने वाली इस शादी का निमंत्रण पत्र कपूर परिवार के मित्रों, रिश्तेदारों और अन्य सगे सम्बन्धियों तक पहुंचा लोग विवाह में शामिल तो हुए ही साथ ही यहाँ पर लगे सहयोग के स्टाल पर 43 लोगों ने कपडें भी दिए. विवाह में उपस्थित सभी अतिथियों ने कपूर के साथ-साथ समाज सेवा में लगी इन संस्थाओं की भी भरपूर सराहना की. विवाह का शुभ कार्य भली प्रकार संपन्न हुआ.

असल में समाज सेवा का जज्बा कई बार जुनून में बदल जाता है. जब यह जुनून में बदल जाता है तो परिणाम बेहद शानदार रहते हैं और पूरे समाज को इसका फायदा मिलता है. सामाजिक कार्य का सीधा सा अर्थ है कि सकारात्मक, और सक्रिय हस्तक्षेप के माध्यम से लोगों और उनके सामाजिक माहौल के बीच कार्यकर प्रोत्साहित करके कमजोर व्यक्तियों की क्षमताओं को बेहतर करना ताकि वे अपनी जिंदगी की जरूरतें पूरी करते हुए अपनी तकलीफों को कम कर सकें.

आज से कुछ महीनों पहले यही सब सोच विचार कर महाशय धर्मपाल जी की प्रेरणा से आर्य समाज अखिल भारतीय दयानंद सेवाश्रम संघ ने आदिवासी, गरीब और जंगलों में रहने वाले बच्चों के लिए सहयोग नाम से एक निस्वार्थ योजना का गठन किया जिसका उद्देश्य इन गरीब बच्चों तक वो कपड़े, जूते, खिलोने और किताबे पहुचाई जाये जो आपके किसी इस्तेमाल की ना रही हो. जिसे आप फेंकने जा रहे हो जरा सोचिये आपका यह अनुपयोगी सामान यदि किसी गरीब की मुस्कान बन जाये तो आपकी आत्मा जरुर कहेगी कि आपने अपने मनुष्य होने का धर्म अदा कर दिया.

महाशय जी ने जिन गरीब आश्रितों के लिए जो सपना देखा था उस सपने को एक कदम आगे बढ़ाते हुए कपूर परिवार ने जो प्रेरणादायक कार्य किया उससे पुरे समाज को आज सोचने पर मजबूर किया कि यदि किसी शादी विवाह या अन्य पारिवारिक सामाजिक आयोजनों में इस तरह की पहल की जाये तो निश्चित ही समाज को एक अच्छी दिशा दी जा सकती हैं. यह एक ऐसी पहल जो अनावश्यक खर्च तो कम करेगी ही साथ ही समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा भी पैदा करेगी. सोचिये विवाह में वर वधु परिणय सूत्र में भी बंध जाये साथ ही किसी गरीब आदिवासी की मुस्कान भी खिल जाये तो सच्चे अर्थो में यह ईश्वर का आशीर्वाद ही कहा जायेगा..

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