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परमात्मा तो एक ही है, फिर बाबाओं की क्या जरूरत

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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धर्म जीवन का एक ऐसा अंग हैं जिनकी गहराई का अंत नहीं और ऊंचाई की कोई सीमा नहीं। धर्म मानव के कल्याण मार्ग का वो प्रतिबिम्ब है जिसमें इन्सान स्वयं की अच्छाई बुराई देखते हुए आगे बढ़ता है। लेकिन जब इस प्रतिबिम्ब के बीच कोई कथित बाबा आ जाये तो आस्था अंधी हो जाती है और वो आस्था उस इंसान को पहले बाबा और फिर उसे भगवान बना देती है। इस अंधश्रद्धा के सामने बाबा अपना ऐसा आभामंडल बना लेते हैं कि उनके पीछे चलने वालों की सोचने समझने और अच्छे-बुरे का फैसला लेने की शक्ति जाती रहती है। धीरे-धीरे बाबा से भगवान बने इंसान अंधभक्तों को अपने इशारों पर ऐसे नचाते हैं, मानो वे जीते जागते मनुष्य न हों, बल्कि उंगलियों पर नाचने वाली कठपुतली हों। लेकिन जब इस आभामंडल का ये मायाजाल टूटता है, तो बाबा के खोल से कोई आसाराम निकलता है तो कोई रामपाल और कोई रामरहीम।

ऐसे ही अब नाबालिग लड़की से बलात्कार के मामले में आसाराम को जोधपुर की अदालत ने दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। यानि कथित भगवान, बापू और बाबा आसाराम को अब मरते दम तक जेल की काल कोठरियों रहना होगा। आसाराम पर नाबालिग लड़की से रेप का आरोप था। यह मामला 2013 का है। उन पर कई और भी मामले दर्ज हैं। आसाराम पर आशीर्वाद देने के बहाने लड़कियों से छेड़छाड़ और यौन शोषण के आरोप थे। उनके बेटे नारायण साईं पर भी ऐसे ही आरोप लगे थे। चंद्रास्वामी, संत रामपाल, नित्यानंद स्वामी, स्वामी भीमानंद, राम रहीम और भी न जाने कितने छोटे-बड़े कथित बाबाओं और संतां के बाद आसाराम पर लगे आरोप हमारे धर्म और संस्कृति पर एक तरह से ये बदनुमा दाग की तरह है।

लेकिन इनके भक्तों को भी क्या कहा जाय? इतना अंधविश्वास, जिसके बल पर राम रहीम 1200 करोड़ की प्रॉपर्टी खड़ी कर गया! आसाराम 10 हजार करोड़ की जबकि हमारे वेदों में ईश्वर मनुष्यों पर कृकृपा करते हैं, वे दयालु होते हैं लेकिन आज उल्टा भक्तों की कृकृपा से कथित भगवान बने लोग ऐश करते हैं। आशाराम, राधे माँ, राम रहीम, रामपाल व अन्य कई  ऐसे ही भगवान हैं, कुछ के घड़े भर गए, कुछ के बाकी हैं। आसाराम और रामपाल जैसे चमत्कारी व महान आलौकिक संत हमारे देश के कोने-कोने में विद्यमान हैं और बड़ी-बड़ी हस्तियां उनके दरबार में शीश नवाती हैं। लोग ही क्यों साल 2013 उत्तर प्रदेश के उन्नाव में एक कथित संत शोभन सरकार के कहने पर किले में दबे खरबों के खजाने को ढूढ़ने के लिए तत्कालीन सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च कर तमाम जगह खुदाई करा दी थी।

बीते 2 दशकों की बात करें तो देश भर से 2 हजार से भी ज्यादा ढोंगी साधु-महात्माओं की पोलपट्टी खुली है और उनके कारनामे जगजाहिर हुए हैं। इनमें से 180 साधुसंत तो ऐसे थे जो बाकायदा विभिन्न चैनलों पर अपने आपको चमकाने में व्यस्त थे। आम जनता को सत्संगों व प्रवचनों में शामिल कराने के लिए न केवल तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं, बल्कि चैनल आदि प्रचार-प्रसार माध्यमों का भी सहारा ले रहे हैं। अपने सत्संगों व प्रवचनों में ये तथाकथित भगवान बड़े-बड़े नेताओं, मंत्रियों, अभिनेताओं आदि को बुला कर खुद को चमकाने का कार्य करते हैं।

इन सब पाखंड और अंधविश्वास से दुखी होकर ही आर्य समाज आज चमत्कारी बाबाओं, बंगाली बाबाओं के चमत्कारों से जुड़ी भ्रांतियां दूर करने और तंत्र-मंत्र से जुड़ी सच्चाई सामने लाने के लिए ‘‘अंधविश्वास भगाओ, देश और समाज बचाओ’’ कार्यक्रमों के आयोजन आर्य समाजों, आर्य संस्थाओं, स्कूलों, पार्कों आदि लगातार कर रहा है। आज जितने कथित बाबा दुराचार कर रहे हैं इनसें ज्यादा तो देश में बहुत सारे छोटे-छोटे बाबा, तांत्रिक सक्रिय हैं, जो आज मनचाहा प्यार दिलाने, सौतन-दुश्मन से छुटकारा दिलाने के नाम पर, नौकरी और सब दुखों से एक मिनट में छुटकारा दिलाने के नाम पर न सिर्फ लोगों को हजारों का चूना लगा रहे हैं बल्कि महिलाओं तक के सम्मान को भी निशाना बना रहे हैं। ऐसे लोग छोटे-मोटे जादू टोने लोगों के सामने करते हैं जिससे लोग उन्हें सिद्ध पुरुष समझकर, अपनी गाढ़ी कमाई का हिस्सा सोप बैठते हैं।

आज हर कोई दुखी है। किसी को बच्चे की कमी, तो किसी को कारोबार में घाटा। कोई इश्क में फंसा है, तो कोई घर में ही अनदेखी का शिकार है इस कारण यह लोग देश की जनता को भ्रमित करके अपने झांसा में फंसा कर पैसा लुटने का कार्य कर रहे हैं। इस वजह से आर्य समाज, दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा स्कूलों, पार्कों आदि में सुबह-शाम कार्यक्रम आयोजित करके अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता का अभियान चला रही है, ताकि देश से इस तरह की सामाजिक बुराइयों और इनसे उत्पन्न हो रहे अपराधों पर भी अंकुश लग सके। हमारा मानना हैं आज सिर्फ कानून के भरोसे नहीं बैठना चाहिए बल्कि सचेत होकर स्वयं जागरूकता का कार्य करना होगा। क्योंकि अगर मानव बस इतना सा भाव समझ ले कि भक्त और भगवान के बीच अगर भावना का तालमेल बैठ जाए, तो वहां कर्मकांडों का कोई महत्त्व ही नहीं रह जाता। भक्त और भगवान के बीच बस भाव का रिश्ता होता है। ये भाव खुद भक्त भगवान तक पहुंचा सकता है, बिना फल, फूल, आरती, पूजा,आडंबर, बाबा, काबा, साधू, पंथी, पीर के। बस डायरेक्ट कनेक्शन जोड़ने की देर है।

लेकिन हमारे देश में धार्मिक आस्थाएं बहुत प्रबल हैं। उन पर रत्ती भर भी किसी किस्म की रोकटोक लगभग नामुमकिन है। धर्म के नाम पर कुछ भी कर लेना जायज माना जाता है। पाखंड खड़े होते है अंधविश्वास घड़े जाते है इस कारण देश के कोने-कोने में तथाकथित ऐसे साधुसंतों की बाढ़ सी आ गई है, जो अपने को भगवान से भी बड़ा मानते हुए धर्म के ठेकेदार बन कर मौज कर रहे हैं। भोलीभाली जनता ही नहीं, अच्छाखासा उच्च शिक्षित तबका भी इनकी तथाकथित ज्ञान, धर्म की बातों में आकर आए दिन अपना सर्वस्व लुटा रहा है। कहीं मन्नतों के नाम पर तो कहीं पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए बाबाओं के डेरों में भीड़ है एक पकड़ा जाता जनता दूसरे को खोज लेती है। कोई अपने पियक्कड़ पति से परेशान महिला किसी उम्मीद में डेरे में खड़ी हैं। किसी को बेटे की अच्छी नौकरी की तलाश है तो किसी को बेटी के लिए अच्छे वर की तलाश अब  साक्षात गुरु का आशीर्वाद हो तो क्या चिंता, क्या भय? आजादी के सत्तर साल बाद भी यदि हम बाबाओं के पैरां में पड़े है तो सोचिये इसमें गलती किसकी है और शर्म किसे आनी चाहिए? सोचना चाहिए कि परमात्मा तो एक ही है, फिर बाबाओं की क्या जरूरत है?…विनय आर्य सचिव आर्य समाज 

 

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