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बाढ़ और अंधविश्वास के बीच डूबता केरल

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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देश का दक्षिणी राज्य केरल पिछले करीब 100 साल की सबसे भीषण बाढ़ का सामना कर रहा है. कई दिनों से भारी बारिश, भूस्खलन और बाढ़ में करीब 300 से अधिक  लोगों की मौत हो गई. सेना और एनडीआरएफ के जवान दिन-रात राहत कार्य में जुटे हैं. इस भयंकर जल प्रलय में लोग जीवन और मौत के बीच जूझ रहे है. लेकिन इससे भी दुखद यह है कि जहाँ इस प्राकृतिक आपदा के खिलाफ जहाँ लोगों को एकजुट होकर सामना करने का होसला दिया जाना चाहिए वहां उल्टा मौत के मुंह से बचें लोगों को अंधविश्वास में डुबोया जा रहा है. लोग कह रहे है केरल उन लोगों की वजह से डूब रहा है जिन्होंने सबरीमाला मंदिर के अनुशासन में हस्तक्षेप किया. भगवान अयप्पा गुस्से में हैं और बाहरी लोगों के दखल देने के कारण केरल को दंडित कर रहे हैं. ज्ञात हो इस महीने की शुरुआत में, सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला मंदिर में मासिक धर्म के उम्र वाली महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था. कुछेक लोगों का मानना है केरल को बाढ़ का सामना इसी वजह से करना पड़ रहा है.

सवाल ये भी है कि बाढ़ में डूबे लोगों को तो भारतीय सेना उपयुक्त साधनों से बचा सकती है लेकिन अंधविश्वास में डूबे लोगों को किन साधनों से बचाए, यह कोई समझ नहीं पा रहा है? इस अंधविश्वास का शिकार सामान्य जन ही नहीं बल्कि भारतीय रिजर्व बैंक के बोर्ड में ऊँचे पद पर आसीन एस गुरुमुर्ति जैसे लोग है जिन्हें हाल ही आरबीआई में पार्ट टाइम गैर-आधिकारिक निदेशक के रूप में नियुक्त किया है. गुरुमुर्ति ने लिखा हैं सुप्रीम कोर्ट के जजों यह देखना चाहिए कि इस मामले और सबरीमाला में जो भी हो रहा है उसके बीच में क्या कोई संबंध है. अगर इन दोनों के बीच संबंध होने का चांस लाख में एक हो तो भी लोग अयप्पन के खिलाफ किसी भी तरह के फैसले को स्वीकार नहीं करेंगे. यदि इस मामले और बारिश में हल्का  सा भी कनेक्शन हुआ तो लोग नहीं चाहेंगे कि फैसला भगवान अयप्पन के खिलाफ जाए.

असल में हजारों वर्ष से चली आ रही परंपराओं के कारण हिन्दू धर्म में विश्वास- अंधविश्वास बन गए हैं? ये विश्वास शास्त्रसम्मत है या कि परंपरा और मान्यताओं के रूप में लोगों द्वारा स्थापित किए गए हैं? ऐसे कई सवाल है जिसके जवाब ढूंढ़ने का प्रयास कम ही लोग करते हैं और जो नहीं करते हैं वे किसी भी विश्वास को अंधभक्त बनकर माने चले जाते हैं और कोई भी यह हिम्मत नहीं करता है कि ये मान्यताएं या परंपराएं तोड़ दी जाएं या इनके खिलाफ कोई कदम उठाए जाएं

कुछ लोग कह रहे है कि इतिहास में केरल के अन्दर कभी भी, कुछ भी बुरा नहीं घटा. हमें अविश्वास का अधिकार है. लेकिन सदियों से चली आ रही अपनी प्रथा से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए. जबकि केरल में बाढ़ का असली कारण कोई देवीय प्रकोप नहीं है इस विनाशकारी बाढ़ से ठीक एक महीने पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक आंकलन में केरल को बाढ़ को लेकर सबसे असुरक्षित 10 राज्यों में रखा गया था. साथ ही पिछले माह चेतावनी दी थी कि केरल राज्य जल संसाधनों के प्रबंधन के मामले में दक्षिण भारतीय राज्यों में सबसे ख़राब स्तर पर है. ऐसा लगता है कि एक महीने बाद ही इस सरकारी रिपोर्ट के केरल में इस के परिणाम भी मिलने लगे हैं. जल प्रबंधन अधिकारियों और विशेषज्ञों का कहना है कि यदि प्रशासन कम से कम 30 बांधों से समयबद्ध तरीके से धीरे-धीरे पानी छोड़ता तो केरल में बाढ़ इतनी विनाशकारी नहीं होती. इससे बचा जा सकता था. एक किस्म से देखा जाये तो जल प्रबन्धन से जुड़े तमाम संस्थान और राज्य सरकार अपनी नाकामी सबरीमाला के अंधविश्वास की ओट में छिपा देना चाहती है.

दरअसल तमाम अध्यन और केन्द्रीय जल प्रबन्धन से जुड़े लोगों के बयानों से यह भी स्पष्ट है कि केरल में बाढ़ आने से पहले ऐसा काफी वक्त था जब पानी को छोड़ा जा सकता था. जब पिछले हफ्ते पानी उफान पर था, तब 80 से अधिक बांधों से एक साथ पानी छोड़ा गया. जो इस तबाही का सबसे बड़ा जिम्मेदार है.

असल में इस राज्य में कुल 41 नदियां बहती हैं. आपदा प्रबंधन नीतियां भी हैं लेकिन इस रिपोर्ट के आने के बावजूद केरल ने किसी भी ऐसी तबाही के ख़तरे को कम करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए. हालाँकि पहले के वर्षों में पिछले चार महीने के दौरान जितनी बारिश होती थी इस बार केवल ढाई महीने में ही इससे 37 फीसदी अधिक बारिश हुई है. लेकिन इसका कारण प्रबंधन नीति रही या अंधविश्वास ये लोगों को सोचना होगा.

कौन भूल सकता है कि ऐसा ही हादसा 2015 में चेन्नई में हुआ था और साल 2013 में केदारनाथ त्रासदी भी इसी देश में हुई थी. यदि यहाँ भी अंधविश्वास से बाहर निकलकर सच का सामना करें तो पर्यावरणविद इसके लिए जंगलों की कटाई को दोष दे रहे हैं. तेजी से होते शहरीकरण और बुनियादी ढांचों के निर्माण की वजह से बाढ़ की विभीषिका से प्राकृतिक तौर पर रक्षा करने वाली दलदली जमीनें और झीलें गुम होती जा रही हैं. लगातार हो रहे शहरीकरण से पेड़ पौधे कटने लगे और उनकी जगह कॉटेज और मकान बनने लगे. भारत के उन दूसरे हिस्सों में भी जहां वनों की कटाई की गई है, वहां बहुत कम समय में भारी बारिश की वजह से पहले भी तबाही मच चुकी है. इसे किसी किसी भी अंधविश्वास से मत जोड़िए. पर्यावरण की रक्षा के साथ इस समय केरल के लोगों को मदद की जरूरत है न कि अंधविश्वास की..

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