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भारत में हर रोज महाभारत

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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देश में पश्चिम बंगाल, राजस्थान और बिहार के कई हिस्सों में रामनवमी के दौरान हुई हिंसा की घटनाएँ थमी भी नहीं थी कि अनुसूचित जाति-जनजाति कानून में बदलाव के विरोध में आहूत “भारत बंद” हिंसक हो गया. करीब 12 लोगों की जान चली गई और बड़ी संख्या में लोग जख्मी हो गए. बंद समर्थकों ने यातायात पर भी अपना गुस्सा उतारा. कहीं ट्रेनें रोकी गईं तो कहीं बसों को आग के हवाले कर दिया गया। पुलिस चौकी जलाने के साथ पुलिसकर्मियों को भी निशाना बनाया गया. कई स्थानों पर जनजीवन थम गया.

दलित आंदोलन की आग से पश्चिमी यूपी सबसे ज्यादा प्रभावित रहा. मेरठ, मुजफ्फरनगर, फिरोजाबाद, हापुड़, बिजनौर और बुलंदशहर सहित पश्चिमी यूपी के जिलों में जमकर तोड़फोड़ और हिंसा हुई. सबसे ज्यादा हालात मध्य प्रदेश, यूपी, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में खराब दिखे. भिंड-मुरैना और ग्वालियर जिले में भी छह लोगों की मौत हो गई. यहां पुलिस को कर्फ्यू लगाना पड़ गया. यूपी में तीन और राजस्थान में एक व्यक्ति को जान गंवानी पड़ी. हालात पर काबू करने के लिए पुलिस को कई जगह लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस के गोले दागने पड़े. घटनाएँ इतनी ज्यादा है कि सभी का विवरण यहाँ नहीं दिया जा सकता.

दरअसल अनुसूचित जाति-जनजाति कानून जोकि 11 सितम्बर 1989 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया था, यह अधिनियम उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं तथा वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता हैं. अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसमें संशोधन की बात की गयी थी.

यकायक मामला कुछ यूँ उभर कर आया जब दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले एक शख्स ने महाराष्ट्र के सरकारी अधिकारी सुभाष काशीनाथ महाजन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. शिकायत में महाजन पर शख्स ने अपने ऊपर कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में अपने दो कर्मचारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई पर रोक लगाने का आरोप लगाया था. काशीनाथ महाजन ने एफआईआर खारिज कराने के लिए हाई कोर्ट का रुख किया था, लेकिन बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इससे इनकार कर दिया था. इसके बाद महाजन ने हाई कोर्ट के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी. इस पर शीर्ष अदालत ने उन पर एफआईआर हटाने का आदेश देते हुए अनुसूचित जाति-जनजाति एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक का आदेश दिया था. यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दे दी थी.

कोर्ट के इस फैसले के बाद से ही देश के दलितों में काफी क्रोध पनपने लगा था, जिसने एक हिंसक रूप ले लिया है. हालाँकि मोदी सरकार ने दलितों के हक में सोमवार (2 अप्रैल) को कोर्ट के सामने इस फैसले को लेकर पुर्नविचार याचिका दायर कर दी है. लेकिन इसके बाद भी हिंसा का दौर देर शाम तक चलता रहा.

कथित ऊंची जातियों द्वारा दलितो को किसी प्रकार के शोषण से बचाने के लिए देश में 1995 में एसटी.एससी एक्ट लागू हुआ. मगर हालिया रिपोर्ट के अनुसार हर साल देश भर में लाखों दलित उत्पीड़न से जुड़े केस सामने आते हैं जिनमें से सैकड़ों फर्जी होते हैं. इसके बावजूद इस फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. दलित संगठनों और कई राजनीतिक दलों की ओर से केंद्र सरकार से इस मसले पर अपना रुख स्पष्ट करने की मांग करने के साथ ही हिंसा का मूक समर्थन भी करते दिखे. जहाँ राजनेताओं को दलीय भावना से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता और समरसता की भावना को प्राथमिकता देनी चाहिए थी, वहां हिंसा आगजनी को प्राथमिकता दी गयी और वोट की राजनीति के लिए भारत में हर रोज एक और महाभारत कराया जा रहा है.

यधपि किसी भी कानून में सुप्रीम कोर्ट का यह पहला संशोधन नहीं है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने खाप पंचायतों द्वारा बने सामाजिक कानूनों को चुनौती दी.थी. इससे पहले जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने पति और ससुरालियों के उत्पीड़न से महिलाओं को बचाने वाली भारतीय दंड संहिता की मशहूर धारा 498-ए पर अहम निर्देश जारी किए थे. जिसमें सबसे अहम निर्देश यह था कि पुलिस ऐसी किसी भी शि‍कायत पर तुरंत गिरफ्तारी नहीं करेगी. महिला की शि‍कायत सही है या नहीं, पहले इसकी पड़ताल होगी. पड़ताल तीन लोगों की एक अलग नई बनने वाली समिति करेगी. यह समिति पुलिस की नहीं होगी.

तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धारा 498-ए का महिलाएं इसका गलत इस्तेमाल कर रही हैं. झूठे केस दर्ज हो रहे हैं. हिंसा के ठोस सुबूत के बिना इस धारा का बेजा-इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है. महिलाओं की बढ़ा-चढ़ाकर कर पेश की गई शि‍कायतों में बेकसूर परिवारजनों को फंसा दिया जाता है. अधिकांश मामलों में इस कानून की वजह से अन्याय भी हो रहा है.

ऐसा ही कुछ हाल महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने कानून की धारा 354 के सेक्शन ए.बी.सी.डी और रेप के खिलाफ बनी कानून की धारा का भी दुरूपयोग बहुतेरे मामलों में झूठा पाया गया. पिछले दिनों द हिंदू अखबार की रिपोर्ट के अनुसार माने तो अकेले राजधानी दिल्ली के जिन 40 फीसदी मामलों में फैसला आया, जजों ने कहा कि यौन सम्बन्ध सहमति से स्थापित हुए थे और ज्यादातर मामलों में महिला के माता पिता ने शिकायत दर्ज कराई. यह शिकायत उस व्यक्ति के खिलाफ होती है जिसके साथ उनकी बेटी भाग गई हो. रिपोर्ट कहती है 25 फीसदी ऐसे मामले हैं जिनमें मर्द सगाई के बाद या फिर शादी का वादा करने के बाद मुकर गए.

हालाँकि हम नहीं चाहते कि किसी भी कानून का दुरूपयोग हो चाहें इसमें वादी हो प्रतिवादी ये सभी कानून देश के नागरिकों को समानता का अधिकार और सुरक्षा प्रदान करते है लेकिन जिस तरह कानून के नाम पर 2 अप्रैल को भारतीय संविधान की धज्जियां कथित दलित समाज की ओर से उड़ाई गयी उसी संविधान निर्माता बाबा साहब अम्बेडकर की आत्मा को जरुर द्रवित कर रही होगी…? राजीव चौधरी

 

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