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मानवाधिकार आयोग मर जाता है क्या?

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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हमारे देश में जरा- जरा सी बात पर अक्सर लोकतंत्र की हत्या होने का राग अलापा जाता है, मानवाधिकार आयोग सकते में आ जाते है| रोहित वेमुला आत्महत्या, और अख़लाक़, की हत्या को राजनेताओं द्वारा लोकतंत्र की हत्या बताई गयी थी| इशरत जहाँ जो मुठभेड़ में कई साल पहले मारी गयी थी लेकिन मानवाधिकार आयोग अभी तक आंसू बहा रहा है| किन्तु मानवधिकारों के लिए लड़ने वाले उन लोगों को शायद पता हो जो एक आतंकी की फांसी के लिए पूरी रात सुप्रीम कोर्ट के दरवाज़े पर पड़े रहे थे कि असली मानवाधिकारों हनन कैसे होता है तो सुने – दो साल पहले बोको हराम द्वारा अगवा की गई लड़कियों का एक वीडियो सामने आया है| दो साल पहले चरमपंथी संगठन बोको हराम ने 276 लड़कियों को चिबोक शहर से अगवा कर लिया था| इन लड़कियों के अगवा किए जाने के बाद सोशल मीडिया पर ‘ब्रिंग बैक ऑवर गर्ल्स’ नाम से एक प्रचार अभियान चल रहा था जिसमें अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा और कई हस्तियां जुड़ीं थी| बोको हराम के नेता अबु बकर शेकाउ ने कहा है कि लड़कियों ने इस्लाम कबूल कर लिया है और उन्हें बोको हराम के लड़ाकों से शादी के लिए सोप दिया जाता है या फिर उन्हें योंन गुलाम के तौर पर बेचा जाता है बोको हराम के नेता अबु बकर शेकाउ ने कहा है कि लड़कियों ने इस्लाम कबूल कर लिया है और उन्हें बोको हराम के लड़ाकों से शादी की धमकी दी जाती है या फिर उन्हें गुलाम के तौर पर बेचा जाता है| अगवा की गई लड़कियों में से 57 लड़कियां भागने में कामयाब रही हैं, 219 अभी भी बोको हराम के कब्ज़े में हैं|

समूचे विश्व में मानवधिकारों के पैरोकार आवाज़ बुलन्द करते दिखाई पड़ते है| मानवधिकारों की रक्षा को तत्पर यह लोग अक्सर दोगली नीति करते दिखाई देते है| यह दोगलापन ही तो है कि कश्मीर और याकूब मेमन पर मानवाधिकार का हनन बताने वाले स्वामी अग्निवेश जैसे महानुभाव इन अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बोलने से कतराते क्यों है? इसलिए की नाइजीरिया इनसे दूर है चलो नाइजीरिया और सीरिया में यजीदी समुदाय की बेटियों पर हुए जुल्म इनकी पहुँच से दूर है लेकिन पाकिस्तान में जुल्मों का शिकार हुई रिंकल का मामला तो अमेरिका की संसद तक गूंजा था क्या तब इन्हें रिंकल की चीख सुनाई नहीं दी थी? या तब मानवाधिकार बहरा हो गया था?

पाकिस्तान में फरवरी 2012 में मुसलमान बनने के लिए मजबूर की गयी 19 वर्षीय हिन्दू लड़की रिंकल कुमारी ने वहाँ की एक अदालत में कहा था पाकिस्तान में सब लोग एक दुसरे से मिले हुए है यहाँ इंसाफ सिर्फ मुसलमानों को मिलता है हिन्दू और सिखों के लिए कोई इंसाफ नहीं है| मुझे यहीं कोर्ट रूम में मार डालों लेकिन दारुल अमन मत भेजो| रिंकल के इस बयान से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है| रिंकल अब फरियाल के नाम से जानी जाती है वह इन दिनों जबरदस्ती के अपने शोहर नवीद शाह के साथ रहने को मजबूर है| रिंकल का मामला अमेरिका तक पहुंचा था| अमेरिकी सांसद ब्रेड शरमन ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जरदारी को पत्र लिखकर कहा था सिंध में हिन्दुओं का दमन रोके| लेकिन तब भारत से रिंकल के लिए एक आवाज़ ना तो सरकार की ओर से उठी और ना ही मानवाधिकारों के रक्षको के मुंह से रिंकल को न्याय देने की बात नहीं कही गयी! इशरत जहाँ को अपनी बेटी तक बताने वाले तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेता तब खामोश पाए गये थे| अख़बारों के ताजा आंकड़ों के मुताबिक पाकिस्तान के अन्दर पिछले 3 महीने में करीब 47 हिंदू लड़कियों का रेप आदि के बाद धर्मपरिवर्तन करा दिया गया क्या रिंकल समेत यह बेटी किसी की बेटी नहीं है? यदि है तो फिर यह दोगलापन क्यों? क्या इन मामलों इनका मानवधिकार मर जाता है?

हमे तब भी उम्मीद थी और आज भी है कि इस्लाम के वे अनुयायी जो इस्लाम को अध्यात्म शांति और सहिष्णुता का मजहब बताने वाले लोग उठ खड़े होंगे| लेकिन एक निंदा तक का स्वर कहीं सुनाई नहीं दिया| किन्तु जब किसी पर इशनिंदा का आरोप लगता है तो लाखो मुसलमान विरोध प्रदर्शन हिंसा करने को सड़कों पर उतर जाते है| लेकिन इस्लामवादी आतंकियों बोको हरम से लेकर इस्लामिक स्टेट द्वारा बरपाई जा रही ज्यादतियों शायद ही कोई मुसलमान सामने आता हो? विगत कुछ सालों से धर्मनिरपेक्ष दलों के नेताओं के बयान और आतंकवादियो के प्रति उठती उनकी सवेंदना से भारत का उदारवादी मुस्लिम असमंजस की स्थिति में आ गया  कि कहीं जिहाद की बातें और कृत्य शायद अधिक इस्लाम प्रमाणित हो| चाहें उनका व्यवहार कुरूप क्रूर ही क्यों ना हो! आज अमेरिका से लेकर जो खुद को आतंक का सबसे बड़ा रक्षक कहता है भारत तक आतंक के मुद्दे पर दोगली राजनीति हो रही है कारण अमेरिका का हित अपना हथियार कारोबार और भारत के नेताओं का वोट हित जिसके कारण सच को दबाया जाता है| वरना अख़लाक़ की मौत को यूएनओं में उठाने वाले नेता एक कुर्दिस बच्चे ऐलन कुर्दी की मौत पर कई दिन रोने वाली विश्व की मीडिया इन बेगुनाह बेटियों के मुद्दे पर बोलने से हिचकते क्यों है? या हो सकता है इन्हें खबर मिली ही ना हो शायद उन्हें यह खबर तब ही मिलती जब उनमें से कोई एक बेटी इनकी भी होती? लेखक राजीव चौधरी

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