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मालदा, पूर्णिया के बाद…..?

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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मालदा के बाद पूर्णिया और पूर्णिया के बाद …………माफ़ करना पर हिंसा होती रहेगी क्योंकि हिंसा अंधी होती है, और अंधी भीड़ हमेशा विचारहीन होती है। पर प्रेम भी अंधा हो सकता है, जो हिंसको के खिलाफ कार्यवाही ही ना करे? कुछ भी हो पर मैने देखा है 2005 में डेनमार्क के अख़बार जिलैंड्स पोस्टेन ने इस्लाम धर्म से जुड़े 12 विवादित कार्टून प्रकाशित किए थे. इनमें वेस्टरगार्ड का बनाया बेहद विवादित कार्टून भी शामिल था. इसका दुनिया भर के मुस्लिम समुदाय ने विरोध किया. इसके बाद कई देशों में डेनमार्क के दूतावास के सामने प्रदर्शन भी हुए. अगले साल यानी 2006  में डेनमार्क की सरकार ने इसके लिए माफ़ी मांगी थी| उन्ही दिनों में दिल्ली प्रदेश की सीमा के नजदीक लोनी से सटे इलाके में एक मित्र के पास गया था तो देखा करीब 20 हजार लोगों की भीड़ हाथ में एक सडा गन्दा पुतला लिए आ रही थी| हम सडक के किनारे खड़े हो गये लोग उत्तेजित थे उन्हीं उत्तेजित लोगों की भीड़ में हमने एक आदमी को रोक कर पूछा भाईजान क्या माजरा है| उसने कहा पता नहीं में तो मजदूरी पर जा रहा था आवाज़ आई की जल्दी आ जाओं मजहब खतरें में है|

अजीब है ना! दुःख होता है धार्मिक लोगों की मानसिकता पर| सच कहूँ  मुझे कभी अधार्मिक लोगों से डर नहीं लगता, पर धार्मिक लोगों से बड़ा डर लगता है| चाहें वो किसी मजहब पंथ से क्यों ना हो! पश्चिम बंगाल के मालदा के बाद अब बिहार के पूर्णिया में जमकर बवाल हुआ है। मालदा की घटना के बाद कल पूर्णिया में भी एक गुट के लोग जुलूस निकाल रहे थे इसी दौरान हिंसा भड़क उठी। उपद्रवियों ने थाने की कई गाड़ियों को तोड़ डाला। यही नहीं भीड़ ने थाने में रखा सामान भी पूरी तरह तोड़ डाला। जुलूस के दौरान अनियंत्रित भीड़ ने थाने में मौजूद पुलिसकर्मियों पर पथराव भी किया। घटना की सूचना मिलते ही डीएम समेत कई आलाधिकारी मौके पर पहुंचे लेकिन तब तक उपद्रवी वहां से उत्पात मचा कर फरार हो चुके थे।

कौन थे कहाँ से आये थे किसी को नहीं पता, इनका सुचना तंत्र इतना मजबूत होता है एक पल में जुड़ जाते है और पलों में गायब हो जाते है| भीड़ की आगवानी करने वाले राजनीती और धर्म से प्रेरित होते और बाद में नतीजा सत्ता खामोश, नेता खामोश, पक्ष-विपक्ष सब खामोश किन्तु यह ख़ामोशी अगले हमले को बुलावा जरूर देती है| आखिर धर्म के नाम पर हिंसा कब तक होती रहेगी? भीड़ के सब लोग हिंसक नहीं होते कुछ लोग होते है पर बदनाम तो सब होते है|

इस कड़ी में एक बात समझ से परे है| सीमापार से मजहबी रंग में रंगे लोग भारत में आते है| सेना के वाहनों पर सैनिको पर हमला करते है सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाते है जिन्हें हमारी सरकार आतंकवादी कहती है, और उन्हें देखते ही गोली मरने के आदेश है| किन्तु जब अपने देश में पुलिस और सेना के जवानों पर हमला होता है, थानों में आग लगाई जाती है, तोड़फोड़ होती है|  जिन्हें हमारी सरकार प्रदर्शनकारी कहती है और विडम्बना देखो आतंकवादियों को गोली मारने, गिरफ्तार करने के आदेश है और इनके खिलाफ तहरीर तक भी नहीं लिखी जाती है| यह दोहरा मापदंड किसलिए? बस इस लिए की वो यहाँ कि मतदाता सूची में नहीं है? यदि ऐसा है मै उन लोगों को अभागे कह सकता हूँ?

दूसरा वो लोग बंदूक लेकर आते है यह प्रदर्शनकारी खाली हाथ है पत्थर से काम चला रहे है वरना मंशा में मुझे कोई अंतर नहीं लगता! आखिर क्यों सरकार मौन होती है? हिंसा करने वाला कोई भी हो जाति धर्म क्यों देखा जाता है? हिंसा,और अपराध में कैसा मतभेद? अमेरिका में दो मनोवैज्ञानिक थे, जेम्स और लेंगे। उन्होंने एक बहुत अदभुत सिद्धांत प्रतिपादित किया था, और वर्षो तक स्वीकार किया जाता रहा। जेम्स—लेंगे थियरी उनके सिद्धांत का नाम था। बड़ी मजे की बात उन्होंने कही थी। उन दोनों ने यह सिद्ध करने की कोशिश की थी कि सदा से हम ऐसा समझते रहे हैं कि आदमी क्रोधित होता है, इसलिए भागता है। हिंसा करता है दुसरे ने कहा, नहीं, यह गलत है। सच्चाई उलटी होनी चाहिए। दुसरे ने कहा, मनुष्य चूंकि भागता है, हिंसा करता है, इसलिए वह क्रोध करता है। अब हमे यह पता करना होगा  धर्म खतरे में है इसलिए इन्सान हिंसा कर रहा है या हिंसा कर धर्म को खतरे में डाल रहा है| कुछ भी धर्म के नाम पर मासूम लोगों को भड़काने वाले अतिधार्मिक को समझना होगा की यह देश प्रेम का पेड़ है और एक पत्ते को पहुंचाया गया नुकसान जरूरी नहीं है कि जड़ों तक पहुंचे। लेकिन जड़ों को पहुंचाया गया नुकसान पत्तों तक जरूर पहुंच जाएगा; पहुंचना ही पड़ेगा; पहुंचने के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं है। जय हिन्द

राजीव चौधरी

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