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शरियत कानून आधा-अधूरा लागू क्यों ?

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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भारत में जब-जब अपराध की बात आती है, तो सारे मोलवी, मोलाना एक स्वर में कहते है की सारे अपराध ख़तम करने है तो शरियत कानून लागु करो तब मेरे मन में सब मर्जो की एक दवा हमराज चूरन याद आती है  जो गलियों में साईकल पर एक चूरन बेचने वाला आता था। जो हर मर्ज का इलाज अपने हमराज  चूरन द्वारा ठीक होने का दावा करता था। पेट में गैस हो या दांत का दर्द, बदहजमी हो और तो और आंखो की रोशनी  बढाने का भी दावा करता था। वो सिर्फ दावा करता में सच कहता हूँ,, कि भारत में अधूरा शरियत कानून लागू क्यों,  इसे या तो पूर्ण रुप से लागू करो या फिर बिलकुल समाप्त! कारण भारत में मुसलमानों के लिये विवाह,  विरासत, और वक्फ संम्पत्ति से जूडे मूसलमानों के अधिकांश  मामले मुस्लिम कानून शरियत के द्वारा नियंत्रित होते है। और अदालतो से ये कानून पारित है कि मुसलमानो को अपने व्यक्तिगत मामलों में भारतीय संविधान की अपेक्षा अपने इस्लामिक कानून को अधिक प्रधानता होगी। मतलब एक शादी करो या चार।  दो बच्चे पैदा करो या दस भारत का संविधान आपको नही रोकेगा! आप कभी भी किसी औरत से शादी कर सकते है, और फिर कभी भी तीन बार तलाक, तलाक, तलाक कह कर उसकी छूटटी कर सकते है। साफ बात यह कि  व्यक्तिगत जीवन का आनंद समझे जाने वाले सभी सोत्र खुले रखने के शरियत कानून की जरुरत भारतीय मुसलमानो को है किन्तु जब चोरी जैसे अपराध में शरियत के मुताबिक हाथ कटने की बात आती तो ये शरियत को भूल भारतीय संविधान में आस्था जताते है।

वैसे तो भारत में कई और भी अल्पसंख्यक धर्म है पर इस्लाम एक ऐसा मजहब है जिसका मुस्लिम पर्सनल ला जैसा खुद का कानून है, जो कि शरियत पर आधारित है और अपूर्ण लागू है। यदि भारत में मुसलमानो के लिये भारत में शरियत कानून लागू कर देते है, तब क्या होगा, यह जानने के लिये हमें जाना होगा उत्तर प्रदेश  के मुजफफरनगर मे केस था ससुर द्वारा अपनी पुत्रवधू इमराना,का बलात्कार। इमराना नाम की एक महिला का बलात्कार ससुर ने कर दिया जिसकी शिकायत इमराना ने अपने शोहर से की पर उसने पिता को कुछ ना कहा। फिर इमराना के माइके वालो के हस्तक्षेप के बाद पंचायत बुलाई गयी जिसने शरियत के तहत फैसला सुनाया कि अब इमराना को अपने पति को तलाक देकर अपने ससुर से निकाह करना करना पडेगा और अपने पति को अपना बेटा मानना पडेगा। विचार करने की बात तो यह है कि इस कुकृत्य पर दारुल उलूम जिसे अरबी में  ज्ञान का घर कहते है उसने भी मोहर इस पर लगा दी की इमराना अब अपने पति की मां है और उसे अब तलाक देना पडेगा। में यहां आपको बता दूँ कि यह विवाह नही था, बलात्कार जैसा धिनोना कुकृत्य था। जिस पर ये इस्लामिक फेसला सुनाया गया  हालाकि इस इस्लामिक फैसले से आहत इमराना ने न्याय के लिये भारतीय संविधान का सहारा लिया और दोषी  को जेल भिजवाया। पर यहां कई प्रश्न  खडे रह गये कि क्या     शरियत के मुताबिक यह इंसाफ था? शरियत के कानून के हिसाब से तो बलात्कार के दोषी को सजा-ए- मौत दी जाती है। वो भी बंद दरवाजो के पीछे नहीं बल्कि सार्वजनिक स्थान पर सरेआम सर कलम किया जाता है। लेकिन दारुल उलूम  व मौलवी जानते है कि शरियत की आड में महिलाओ का शोषण   कर मजहब के बहाने कई शादिया कर अपनी वासनाओं की पूर्ती कर बच्चे पैदा करना है, लेकिन इस घटना क्रम से व् अन्य अपराधो को देखकर में चाहता हूँ  भारत में मुसलमानों के शरियत लिये पूर्ण रुप से लागू हो क्या चोरी करने के आरोप में हाथ काट दिये जाये, क्यों  ना   संबध रखने पर पत्थरो से मार-मार कर मौत की सजा होनी चाहिये, शरियत के अनुसार मुस्लिम महिला वोट नहीं डाल सकती, कार स्कूटी नही चला सकती। पुरुष  का अपमान करने पर 70    कोडो की सजा का प्रावधान है। और राष्ट्र  द्रोह के मामले में सर कलम करने की सजा का प्रावधान है।  अभी हाल ही सउदी अरब के अन्दर ड्रग स्मगलिंक के दो दोषियों  को चोराहे के बीच सर कलम कर दिया गया। क्यों  ना भारत में भी इनके मजहब के अनुसार सजा का प्रावधान हो शरियत के अनुसार तो हज  यात्रा पर मिलने वाली छूट भी हराम है। क्यों  भारत सरकार हर साल प्रतियात्री ४७४५४  रुपये अनुदान देती है? मेरी किसी मजहब विषेश से कोई इर्ष्या द्वेष नही बस कहने का तात्पर्य इतना है या तो सरकार कोई भी कानून या तो पूर्ण रुप से लागू करे या फिर बिलकुल खत्म करे!! अब या तो सिविल कोड लागू करे या इनके लिए शरियत कानून…..

राजीव चौधरी

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