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हमें किसी से नफरत कब और क्यों होती है?

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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प्रेम और नफरत दुनिया की दो ऐसी भावनाएं है जिनकी जकड से इन्सान कभी मुक्त नहीं हो सकता। दोनों मन की ऐसी अवस्था है जिससे इन्सान को जीवन में अनेकों बार गुजरना पड़ता है। यदि हम प्रेम की बात करें इस विषय पर शायद संसार में सबसे ज्यादा लिखा गया और पढ़ा गया किन्तु इसके उलट भावना नफरत पर बहुत कम ध्यान दिया गया। आखिर नफरत क्या है, यह भावना मन में किस स्थिति में उपजती है? यह प्रश्न अवश्य ही जेहन में कई बार उठता और गिरता रहता है। वैसे देखा जाये तो यह मन की भावनाओं के एक पूरे परिवार का हिस्सा है। जहाँ एक तरफ प्रेम में स्नेह, ममता, समर्पण उपासना आदि भावनाएं है तो वही दूसरी ओर गुस्से के साथ ईर्ष्या, भय, खिन्नता आक्रमण और हिंसा के भाव है। एक किस्म से कहें तो यह भावनाओं का युद्ध है जिसके हम स्वयं साक्षी है। दूसरा हम अक्सर उन लोगों से नफरत करते हैं जो हमारे से अलग हैं।

इसमें भय का सिद्धांत भी काम करता हैं हालाँकि गोस्वामी तुलसीदास दास ने लिखा है कि भय बिना होय न प्रीति किन्तु हम जिन लोगों से डरते हैं अक्सर बाद में उन्ही लोगों से नफरत करने लगते है। व्यवहारिक शोधकर्ताओं की माने तो जो लोग दूसरों के प्रति नफरत करते हैं, वे खुद के भीतर डरते हैं यानि कुछ इस सिद्धांत के साथ कि मैं भयानक नहीं हूं पर आप हैं।

चित्र प्रतीकात्मक
चित्र प्रतीकात्मक

असल में हम अपने जीवन को एक पद्धति के अनुसार विकसित कर लेते है अपनी सीमाओं में सोचते है, अपनी सीमाओं में देखते और समझते हैं इससे मन और मस्तिक्ष का यह दायरा मजबूत होता चला जाता है। यह एक धारणा बन जाती है। जब हमारे जैसी धारणा के लोग हमें मिलते है तब हम आत्ममुघ्ध होकर एक दूसरे की इस धारणा को बल प्रदान करते है। इस भाव को प्रेम भी कह सकते है और मित्रता और स्नेह भी। पर जब कोई पारिवारिक या बाहरी व्यक्ति हमारी इन धारणा पर चोट करता है तब मन विचलित होने लगता है क्योंकि हमने बड़ी मेहनत से एक धारणा को विकसित किया था और उस धारणा का विखंडन सहन कर नहीं कर पाते।

इसे इस तरह समझ सकते है कि जब हम स्वयं का अस्वीकार्य हिस्सा पाते हैं, तब हम खतरे से बचाव के लिए दूसरों पर हमला करते हैं। जब तक हमारे पास बदले में देने के लिए शब्द है शब्दों से हमला करते है जब शब्द समाप्त होते है तब हमला शारारिक हो जाता है। इतिहास ऐसे अनेकों उदहारण भी समेटे हुए है इसमें स्वामी दयानन्द सरस्वती और सुकरात को जहर दिए जाने की घटना के साथ महात्मा बुद्ध के ऊपर थूका जाना ईसा मसीह को सूली पर लटकाया जाना आदि है। इन सबने लोगों की धारणाओं पर हमला किया था बदले में लोगों ने अपनी धारणा बचाने के लिए इन पर हमला किया था।

नफरत का जो दिखावा असहायता, शक्तिहीनता, अन्याय और शर्म की भावना जैसी भावनाओं से खुद को विचलित करने का प्रयास है। दूसरा नफरत एक ऐसी भावना का हिस्सा है जो हमारे परिवार से लेकर इतिहास और हमारे सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास का भी हिस्सा है। हम युद्ध संस्कृति में रहते हैं जो हिंसा को बढ़ावा देती है, जिसमें प्रतिस्पर्धा हैं इसे जीवन का एक तरीका भी समझा जाता है, हमें दुश्मन से नफरत करने के लिए सिखाया जाता है। जिसका मतलब है कि हमारे से अलग कोई भी है जो हमारी विचाधारा से अलग है, सीमाओं से अलग वह नफरत का पात्र है।

हम सभी आक्रामकता और करुणा की क्षमता से पैदा हुए हैं। हम कौन-सी प्रवृत्तियों को गले लगाते हैं यह हमारे ऊपर निर्भर करता है। नफरत पर काबू पाने की कुंजी है आत्मावलोकन मसलन जब भी किसी के प्रति नफरत का भाव पैदा हो हमें आत्मावलोकन करना चाहिए कि आखिर मेरे अन्दर इसके प्रति नफरत का भाव क्यों है? क्या किसी प्रकार का भय है या मेरी क्षमता इससे कम है, अपेक्षा का भाव है या कोई अन्य कारण यह चर्चा मन में हो और इसके बाद हो सके उक्त व्यक्ति से जरुर करें। दूसरा है शिक्षा घर में स्कूलों में, और समुदाय नफरत ईर्ष्या या भी हिंसा जैसे विषयों पर विद्यार्थियों सिखाया और पढाया जाना चाहिए।

हमें समझना होगा यह व्यवहारिक अभिव्यक्तियां हैं और जब हम इनके करीब होते हैं हम एक तनाव में भाग जरुर लेते हैं क्योंकि भावनाएं जीवन के हर एक पल को प्रभावित करती हैं। इससे ही व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र बनते बिगड़ते है आये है तो बेहतर होगा हमें गणित विज्ञान जैसे बिषयों के साथ भावनाओं को समझने ऐसे विषयों को समझना और समझाना पड़ेगा कि आखिर नफरत क्यों होती है और कैसे इसका अंत किया जा सकता है।..लेख राजीव चौधरी 

 

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