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सोशल मीडिया जिन्दगी और मौत भी

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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सोशल मीडिया यानि इंटरनेट के माध्यम से लोगों को सार्वजनिक रूप से अपने विचारों, भावनाओं और जीवन के हिस्सों को दूसरों के साथ साझा करने की अनुमति देने वाला एक सामूहिक मंच है। लेकिन पिछले कुछ दिनों की घटनाओं ने यह साबित कर दिया कि यह सामूहिक मंच अब बेहद खतरनाक और अमानवीय बनता जा रहा है। नकली समाचार, फर्जी वीडियो अन्य ट्रोलों के साथ आज यह जानना मुश्किल हो गया है कि किस पर, कितना तथा कहाँ तक भरोसा करना चाहिए।

पिछले साल अपने पुरुष मित्र से धोखा मिलने पर होशियारपुर जिले की 18 साल की मनीषा ने आत्महत्या कर ली और सोशल मीडिया पर आत्महत्या को लाइव स्ट्रीम कर दिया था। मनीषा फेसबुक पर अपने प्रेमी की अनदेखी से परेशान थी इस कारण उसने यह कदम उठाया था। यानि जिंदगी में अच्छे मित्रों की कमी और ऑनलाइन मित्रों की अनदेखी, युवाओं में आत्महत्या का कारण बन रही है।

सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर आज कल युवा असली जीवन के रिश्तों की अनदेखी कर नकली रिश्ते बना तो रहे हैं किन्तु जब वे किसी से बात करना चाहते या उन्हें सच्ची हमदर्दी की जरूरत होती है, तो उनके सहयोग के लिए सच्चे मित्र नहीं होते। ये भी कह लीजिये कि बहुत से युवा सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अस्वीकृति को सही से संभाल नहीं पाते। साइबर धमकियां बढ़ रही हैं। इस कारण भी अनेकों युवा आत्महत्या जैसे कदम उठाने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं।

कुछ समय पहले कोलकाता में कक्षा ग्यारह में पढने वाली रिया खन्ना ने आत्महत्या की थी। उसनें फेसबुक पर किसी फैजल इमाम खान की फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार की थी और बाद में दोनों अच्छे दोस्त बन गए। जब दोस्ती में खटास आई तो फैजल ने उससे बदला लेने के लिए फेसबुक पर रिया का एक फर्जी अकाउंट बनाया. एडिटिंग करके बनाई रिया की तस्वीरें फेसबुक पर अपलोड कर दीं। साथ में उसने वहां पर रिया का मोबाइल नंबर भी डाल दिया। इसी तरह साल 2012 में जालंधर में पढ़ने वाली एक लड़की रक्षा ने फेसबुक पर कुछ युवकों द्वारा सताए जाने के कारण आत्महत्या कर ली थी। रक्षा अकेली थी 1997 में उसके माता-पिता को आतंकियों ने मार डाला था। बेटी को सोशल मीडिया के आतंकियों ने मरने के लिए मजबूर कर दिया।

करीब डेढ़ अरब से अधिक सक्रिय दैनिक उपयोगकर्ताओं के साथ सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाले सोशल मीडिया प्लेटफार्म वर्तमान में मौत और अवसाद के अड्डे बनते जा रहे है। जरूरी है कि व्यक्ति अपने जीवन में संतुलन बना कर चले। कई मायनो में सोशल मीडिया में ऐक्टिव रहना जरूरी हो जाता है। मगर यह भी ध्यान रखें कि यह आभासी दुनिया है, वास्तविक नहीं। यदि हम इसे जरूरत से ज्यादा समय देंगे तो वास्तविक रिश्तें खो देंगे। क्योंकि अभी तक रिश्तों की दुनिया में सामाजिक और आर्थिक पहलू ही प्रमुख थे लेकिन आधुनिक जीवनशैली ने अब मनोवैज्ञानिक पहलू भी जोड़ दिया है।

कहा जाता है जीवन कथा गहरी जानकारियों और प्रामाणित रिश्तों की जीवनरेखा है। जब हम इस कथा को सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर खींच लाते हैं, तो अन्य लोग वास्तव में आपकी कहानी का हिस्सा बन जाते हैं। हम दोस्तों का चुनाव इस धारणा के आधार पर करते है वे हमारी समान विचारधारा वाले हैं, आत्म-सीमित है,  हमारे हितों और पसंद-नापसंद को स्वीकार करते है।

चित्र प्रतीकात्मक
चित्र प्रतीकात्मक

जबकि सोशल मीडिया एक तरह का वही समाज है, जहां हमारे जैसे लाखो लोग होते हैं जिनसे हम रोजाना ऑनलाइन मिलते हैं और उनसे अपनी बातों को साझा करते हैं। कुछ लोग प्रेम करते है, नये रिश्तों को भी बनाते है। फेसबुक प्रोफाइल्स से आकर्षित हो कर दोस्त बना लेते हैं और झटपट शादी करने का फैसला ले लेते हैं। कुछ समय पहले अमेरिका के एक लड़के ने सोशल मीडिया एप्प के जरिए डेटिंग के लिए लड़की ढूंढ़ना शुरू किया। उसे पता नहीं था कि उसकी बहन भी उसी ऐप पर डेटिंग के लिए लड़का ढूंढ़ रही है। और इसी बीच लड़के का मैच उसकी ही बहन से हो गया था।

देखा जाये तो शुरू में लोग प्रोफाइल फोटो देखते है,  बात करते है, पहले दोस्ती फिर प्यार और एक नये रिश्ते की शुरुआत कर देते है। लेकिन क्या प्रोफाइल फोटो उसी का है, जिससे बात हो रही है? या उसके बारे में लिखी गयी बाते, उसकी नौकरी, उसकी शिक्षा सब सच है? हो सकता है कोई फेक प्रोफाइल बनाकर आपको सिर्फ एक शिकार के तौर पर देख रहा हो? क्योंकि कई लोग अपनी मानसिक, आर्थिक और जज्बाती जरूरतों के लिए सोशल मीडिया पर निर्भर हो चुके हैं।

कुछ समय पहले मनोविज्ञान से जुड़े लोगों ने एक अध्ययन में पाया था कि कम आत्म-सम्मान वाले लोग, सोशल मीडिया का इस्तेमाल रिश्तों को बनाने में करते हैं। लेकिन जब यह रिश्ते टूटते है तो कई बार इन्सान आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लेते है। इसका कारण ये भी माना जाता है कि लोग सोशल मीडिया पर बहुत से दोस्त तो बना लेते है लेकिन जो असल में करीबी हैं, उनसे पूरी तरह से अलग हो जाते है। क्योंकि सोशल मीडिया हमारे मन मस्तिष्क पर इस कदर हावी हो जाता है कि हम उससे बाहर निकलना नहीं चाहते हैं और ज्यादा से ज्यादा वही पर अपना समय बिताना चाहते हैं। ऐसे में बाहरी दुनिया से पूरी तरह से कट जाते हैं। बाहर की दुनिया से दूर होते चले जाना ही सोशल डिसऑर्डर के होने की ओर संकेत करता है। लोगों को यह समझना होगा कि इंटरनेट का मतलब सिर्फ सोशल मीडिया ही नहीं है। यह सूचनाओं का भंडार है। ऐसे में सोच-समझ कर इस्तेमाल करना ही बेहतर होगा, विश्वास करना अच्छी बात है लेकिन बिना देखें जाने किसी पर अत्यधिक विश्वास कई बार घातक साबित होता है।..राजीव चौधरी 

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