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आसमान में भी चलेगा शरियत कानून!

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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ब्रिटेन में जल्द ही विमान सेवा शरिया एयरलाइन्स फिरनास एयरवेज शुरू होने वाली है. यानि एयरलाइन्स फिरनास एयरवेज हवाई यात्रा के दौरान सातवीं शताब्दी के इस्लामी दिशानिर्देशों का पालन करेगी. खुद को ब्रिटेन का हलाल रिचर्ड ब्रेन्सन बुलाने वाले काजी शफीकुर रहमान इस सेवा को शुरू करने जा रहे है. अपनी पहली उड़ान के साथ फिरनास एयरवेज ब्रिटेन की पहली शरिया इस्लामिक कानून पर चलने वाली एयरलाइंस बन जाएगी. शरीयत के अनुसार न्याय करने वाले पारम्परिक न्यायाधीशों को काजी कहा जाता है और ब्रिटेन में काजी रहमान की एयरलाइंस का नाम फिरनास एयरवेज है. हर एयरलाइन्स की पहचान उसकी एयर होस्टेस होती हैं इसलिए इस इस्लामिक एयरलाइन्स में काम करने वाली एयर होस्टेस आपको हिजाब पहने इस्लामिक वेशभूषा में नजर आएँगी. चूँकि एयरलाइन्स इस्लाम से जुडी होने के नाते उड़ान से पहले हर फ्लाइट में नमाज भी पढ़ी जाएगी. क्रू मेंबर्स की ड्रेस भी शरिया की गाइडलाइंस के मुताबिक होंगी, गैरमुस्लिम क्रू को भी शरिया के अनुसार कपड़े पहनने होंगे.

 

 

 

शरिया एक अरबी शब्द है जिसका मतलब है – अल्लाह का दिखाया रास्ता और उसके बनाए हुए नियम. कुरान के मुताबिक शरिया सिर्फ एक क़ानून व्यवस्था ही नहीं बल्कि मुसलमानों की पूरी जीवन शैली के लिए नियम निर्धारित करता है.. इस्लामिक समाज में रहने के तौर-तरीकों, नियमों और कायदों के रूप में कानून की भूमिका निभाता है. पर सवाल उठता है कि क्या शरिया कानून मुस्लिमों की ही जीवन शैली निर्धारित करता है या अन्य धार्मिक विचारधाराओं को भी इसके अंतर्ग्रत ढालने की कोशिश करते रहते है? सातवीं सदी में सउदी अरब के मदीना में इस्लाम की स्थापना के साथ ही जब इस्लाम का प्रसार तेजी से आसपास के इलाकों में होने लगा. तब शरिया कानून बनाया गया था. दरअसल पहले अरब में कबीलाई समाज था, जिसमें रहने वाले लोगों के अपने रीति रिवाज थे, लेकिन इस्लाम के राजनीतिक और धार्मिक विचार के प्रसार के साथ ही कुरान के नियम इन कबिलाई समाज को संचालित करने लगे यह रहस्य किसी से छिपा नहीं है कि इन तरीकों को थोपने या अपनाने के लिए हिंसा का भी इस्तेमाल किया जैसे कि वर्तमान में तालिबान, अल-शबाब, बोको हरम, इस्लामिक स्टेट समेत अन्य कट्टर आतंकी इस्लामिक संगठन इसी सातवीं शताब्दी के इस्लाम को आधुनिक दुनिया के ऊपर थोपने में हिंसा का रास्ता अपनाने से नहीं चूक रहे है.

अब जो सबसे बड़ा सवाल उठता है वो यही है कि यदि शरिया कानून को तालिबान, अल-शबाब, बोको हरम आदि संगठन आधुनिक समाज के लिए उपयुक्त माने तो उन्हें आतंकी या कट्टरपंथी कहा जाता है लेकिन जब यही काम कोई काजी शफीकुर रहमान करें तो उसे व्यापार से जोड़ा जाता है. जबकि इस कानून  की गंभीरता को देखें तो बगदादी और काजी रहमान का लक्ष्य सामान है. बस रास्ते अलग-अलग है. मसलन कट्टरपंथी संगठनों को जमींन पर शरियत चाहिए तो इन विमानन कम्पनीयों को आसमान में. दोनों ही आधुनिकता से संघर्ष करते नजर आ रहे है. आईएस अपनी खिलाफत स्थापित करने का उद्देश्य रखता है, एक ऐसी जगह बनाना चाहता है जहां इस्लाम की उसकी बनाई परिभाषा चलेगी और शरिया कानून लागू होगा. दूसरी ओर ये एयरलाइंस भी यही चाहती है

अधिकांश के लिए ये एयरलाइन्स एक गैर स्टार्टर की तरह हो सकता है, कुछ दिन बाद ऐसा भी हो सकता है आप इसमें सवार हो और नियमों के मुताबिक आपको नमाज पढने को कहा जाये! आप अपनी पत्नी के साथ हो उसे बुर्का या हिजाब पहनने का दिशा निर्देश दिया जाये? भले ही आप इंकार करें किन्तु एक रुढ़िवादी उद्यमी काजी रहमान यह उम्मीद कर रहा है कि उसकी यह कोशिश रंग जरुर लाएगी. यहाँ दो रास्ते बचते है या तो नकाब या बुर्का पहना जाये या फिर किसी दूसरी एयरलाइंस की सेवा ली जाये. जो सार्वजनिक कल्याण और सभी लोगों के मतो, पूजा उपासना के तौर तरीकों का सम्मान करती हो.

एयरलाइन्स में शरिया लागू होने के बाद इसके नतीजे क्या होंगे, मलेशिया की “रयानी एयर” की तरह बंद होगी ये अभी कुछ कहा नही जा सकता, लेकिन जमीन पर देखें तो सोमालिया और अफगानिस्तान में ये लागू हुआ और हम देख सकते हैं कि इसका क्या नतीजा हुआ, अफ्रीकी देश नाईजीरिया शरिया क़ानून की वजह से पिछले कुछ वर्षों में काफी विवाद चर्चा में रहा है. सीरिया तबाह, लेबनान तबाह या इराक की तबाही शरिया कानून के चाहने वालों ने ही की है. नाईजीरिया के 36 में से 12 प्रांतों में शरिया लागू हो चुका है. वहां के हिंसात्मक हालात किसी से छिपे नहीं है. लेकिन इसमें जो मूल प्रश्न उभरता है वो यह कि शरिया कानून को धार्मिक दर्शन की भाषा में देखे या राजनितिक दर्शन की नजर से?

यदि यह धार्मिक दर्शन है तो इसमें दया, संवेदना, सहनशीलता, उदारता सामान व्यवहार, अपने पड़ोसी के मत-पंथ-धर्म का सम्मान होना चाहिए, और यदि यह राजनितिक दर्शन है तो इसकी व्याख्या धर्म से जोड़कर क्यों? कई लोगों ने अलग-अलग देशों में शरिया की भिन्न-भिन्न व्याख्या पर भी सवाल उठाया. मुसलमानों के लिए शरिया का एक मतलब है, वहाबियों के लिए एक, सलाफियों के लिए दूसरा, आईएस, बोको हराम और अल-कायदा के लिए तीसरा. मुसलमान यह तो मानते हैं कि शरीयत अल्लाह का कानून है लेकिन उनमें इस बात को लेकर बहुत अंतर है कि यह क़ानून कैसे परिभाषित और लागू होना चाहिए. सुन्नी समुदाय में चार भिन्न नजरिए हैं और शिया समुदाय में दो. अलग देशों, समुदायों और संस्कृतियों में भी शरीयत को अलग-अलग ढंगों से समझा जाता है. शायद इसी कारण काइरो विश्वविद्यालय के हसन हनाफी ने एक बार इसे इस प्रकार कहा था कि शरिया कानून के नजर में कुरान एक सुपरमार्केट है जहाँ से जिसे जो चाहिये वह उठा लेता है और जो नहीं चाहिये वह छोड देता है. हो सकता हैं काजी रहमान ने भी अपने किसी धार्मिक लक्ष्य की पूर्ति या सातवीं सदी के इस्लामिक गौरव को पुन:पाने के लिए यही से कुछ उठाया हो..?

 

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