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मुसलमानों को बनाने दें दूसरा मुल्क

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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कहते हैं एक इन्सान के सोचने का ढंग उसका पारिवारिक परिवेश तय करता है या फिर स्कूल में मिली शिक्षा, या फिर उसके धर्म ग्रन्थ। अगर इन सभी जगह अलगाव और नफरत की शिक्षा मिल रही हो तो स्वाभाविक है इन्सान अलगाववादी ही होगा। हाल ही में मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के उपाध्यक्ष और डिप्टी ग्रैण्ड मुफ्ती नासिर उल इस्लाम का कहना है कि समय आ गया है कि हिन्दुस्तान में रहने वाले मुसलमान अपने लिए अलग देश की मांग करें। जो लोग कहते हैं कि यह देश हिन्दुओं के लिए है तो फिर ठीक है। हिन्दुस्तान का एक और हिस्सा कर दीजिए और हिन्दुस्तान के मुसलमानों को एक और मुल्क बनाने दीजिए। मुफ्ती नासिर यही नहीं रुके उन्होंने आगे कहा कि ‘‘जो फैसला उस समय मुसलमानों ने लिया वह सही फैसला था। हिन्दुस्तान में उनके लिए कोई जगह नहीं है किसी भी जगह उनकी नुमाइंदगी नहीं है। उनका कहना था, उस समय सिर्फ 17 करोड़ मुसलमानों ने पाकिस्तान बनाया। अगर हिन्दुस्तान में मुसलमानों की हालत ऐसी ही रही तो फिर आज 20 करोड़ मुसलमान दूसरा देश क्यों नहीं बना सकते?

हालाँकि मुफ्ती नासिर के इस बयान का खण्डन करते हुए पीडीपी के नेता और मंत्री चौधरी जुल्फिकार अली ने कहा कि ये बयान उनकी निजी सोच हो सकती है। उनका कहना था कि हिन्दुस्तान को बनाने में मुसलमानों का भी हाथ है और यह देश जितना दूसरों का है उतना ही मुसलमानों का भी है। साथ ही कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के राज्य सचिव और विधायक यूसुफ तारिगामी ने मुफ्ती नासिर के बयान पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उनका बयान गैर-जिम्मेदाराना है। उनका कहना था, ‘‘मैं ऐसे लोगों से एक सवाल पूछना चाहता हूं कि 70 साल पहले पाकिस्तान नाम का एक अलग देश वजूद में आया। धर्म की बुनियाद पर एक अलग देश बनने से मसले कम हुए या और भी पेचीदगियां पैदा हुईं?’’

पूरे बयान में मुफ्ती नासिर की एक बात सबके समझ से परे है कि जो फैसला उस समय मुसलमानों ने लिया वह सही फैसला था। हिन्दुस्तान में उनके लिए कोई जगह नहीं है। उन्होंने 1947 के फैसले को जायज ठहराते हुए ये बात कही। लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि जो फैसला उनके लीडरों ने लिया उन्होंने उसका पालन क्यों नहीं किया?

असल में यह एक गंभीर प्रसंग है जिसे अधिसंख्य मुसलमान मन ही मन लेकर जीता है। नवम्बर 1990 में नेशनल रिव्यू नाम की एक संस्था ने मुसलमानों के भय के कुछ कारणों को गिनाया था। उन्होंने लिखा था कि  मुसलमान हजार वर्षों में एक ही अवसाद की स्थिति से गुजर रहे हैं, लड़ाई लड़ी, धर्म प्रचार किया। लोगों को धर्मान्तरित किया। अपनी संख्या बढाई। किन्तु हर बार स्वयं को बिना किसी ज्ञात कारण के सबसे नीचे के पायदान पर पाया। मुस्लिम देशों के पास सबसे अधिक कट्टरपंथी हैं और विश्व के सबसे कम लोकतंत्र। केवल तुर्की ;और कुछ अवसरों पर पाकिस्तान ही पूरी तरह लोकतांत्रिक है। परन्तु वह व्यवस्था भी काफी कमजोर है। अन्य सभी स्थानों पर सरकार के मुखिया ने जबरन सत्ता प्राप्त की है फिर वह स्वयं अपने द्वारा हो या अन्य के माध्यम से इन समस्याओं के बाद यह तर्क सही ठहराया जा सकता है कि मुसलमान ही मुसलमान के सबसे बडे शत्रु हैं।

हमेशा की तरह पिछला इतिहास यही कहता है कि पहले अपने लोगों को मजहब के नीचे एकत्र करो जनसँख्या का अनुपात बढ़ाओ और फिर नये देश की मांग करो। लेकिन इसके बाद क्या करना है इस विषय से लगभग समूचा इस्लाम अछूता सा दीखता है। वरना 50 से अधिक मुल्कों में कहीं भी लोकतंत्र और आधुनिकता को नकारना यही सवाल क्या मुस्लिम समाज की बोद्धिक शक्ति पर खड़ा नहीं होता?

जब मुफ्ती नासिर इस्लाम के नाम पर अलग देश की मांग कर रहे थे उसी दौरान अफगानिस्तान में इस्लाम के नाम पर दक्षिणी यमन के अदन शहर में अलगाववादियों ने सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया था। यहां राष्ट्रपति अब्दरब्बुह मंसूर हादी की सेनाओं और अलगावादियों के बीच संघर्ष चल रहा था। ठीक इसी समय अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में हुए आत्मघाती हमले में 100  लोग मारे गये जबकि 158 अन्य घायल हुए। तो तुर्की के लड़ाकू विमानों ने सीरिया के एक हिस्से पर यह कहकर बमबारी शुरू की कि हम अकेले नहीं हैं, अल्लाह हमारे साथ है और हम अपने अभियान में जल्द ही सफल होंगे। इस्लाम के नाम पर बने देश पाकिस्तान का हाल किसी से छिपा नहीं है। ये सभी उदाहरण वर्तमान समय के हैं न कि ऐतिहासिक। इसमें गौर करने वाली बात यह है कि मुफ्ती नासिर ने कहा भारत में इस्लाम सुरक्षित नहीं है तो मुफ्ती नासिर यह जरूर बतायें कि किस इस्लामिक देश में मुसलमान सुरक्षित है?

यमन तबाह, लीबिया तबाह, इराक तबाह, सीरिया का हाल सबके सामने है। इसके बाद अफगानिस्तान को ले लीजिये अकेले जनवरी माह में इस्लाम के नाम पर सेंकड़ां लोग मारे गये। ईरान में मुल्ला मौलवियों की सत्ता के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं। कश्मीर में तो मुसलमान बहुसंख्यक हैं कई जिलों में तो अन्य मत के लोग न के बराबर हैं वहां इस्लाम भी है, मस्जिद भी। सभी अधिकार उनके हाथों में है क्या वहां शांति है? यूरोप से अमेरिका तक नाइजीरिया से लेकर अदन तक हर जगह हाहाकार मची है। क्या यह सभी उपरोक्त उदाहरण मुफ्ती नासिर के लिए काफी नहीं हैं? शायद नासिर मुफ्ती के इस बयान के बाद उन तमाम तथाकथित नकली धर्मनिरपेक्ष समाज को सच का आईना देखने को मिला है जिन्होंने भारत के बंटवारे का बेहद आधारहीन आरोप हिन्दूवादी सोच पर अब तक थोपने का कुत्सित प्रयास किया था। नासिर मुफ्ती के इस बयान के बाद एक बार फिर से धर्मनिरपेक्ष धड़ा पूरी तरह से खामोश है और हिन्दू दलों के छोटे छोटे बयानों को भी ब्रेकिंग बनाने वाले तमाम अन्य लोग भी निष्क्रिय अवस्था में दिख रहे हैं।

-राजीव चौधरी

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