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मूर्ति और भगवान अपना बचाव खुद ही करें

दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा
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भारत देश धीरे-धीरे धार्मिक राजनीति की तोड़फोड़ की एक ऐसी प्रयोगशाला बनता जा रहा है जिसके छींटे हर एक राजनैतिक दल की आस्तीन पर लगे हैं। त्रिपुरा से शुरू हुई लेनिन की मूर्ति तोड़ने की राजनीति अब तेजी से देश के बाकी हिस्सों में भी फैल रही है। हाल ही में बिहार के नवादा शहर के गोंदापुर इलाके में बजरंगबली की एक मूर्ति टूटने की खबर आई।  अचानक ही लोगों की भीड़ बजरंगबली के चबूतरे के पास जमा हो गई और देखते ही देखते हिंसक हो गई। इधर मूर्ति तोड़े जाने के कारण पत्थरबाजी जारी ही थी कि थोड़ी देर बाद लोगों ने शहर की ही हजरत सैय्यद सोफी दुल्ला शहीद शाह की मजार में आग लगा दी। मजार के लोगों का कहना है कि पास के हिन्दुओं ने ही मजार को जलने से बचा लिया। हालाँकि गोंदापुर के उस चबूतरे पर प्रशासन ने नई मूर्ति लगवा दी है। स्थानीय लोगों का कहना है गोंदापुर के लोगों के लिए भी यह कोई श्र(ा और आस्था का लोकप्रिय केंद्र नहीं था, लेकिन मूर्ति तोड़े जाने के बाद से यह जगह काफी चर्चित हो गई है।

इससे दो दिन पहले उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में झूंसी के त्रिवेणीपुरम में डॉ. भीमराव अंबेडकर की मूर्ति को निशाना बनाया गया था। आजमगढ़ में, तमिलनाडु के चेन्नई में बी आर अंबेडकर की मूर्ति तोड़ी गई थी। उसमें उनकी गर्दन को धड़ से अलग कर दिया गया था। कर्नाटक में पेरियार की मूर्ति और कोलकाता में महात्मा गांधी की मूर्ति को नुकसान पहुंचाया गया था। ज्ञात हो त्रिपुरा की घटना के अगले दिन कोलकाता में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति तोड़ कर उसके मुंह पर कालिख पोत दी गई थी।

ये सब कुछ ठीक उसी तरह प्रतीत हो रहा है जिस तरह पाकिस्तान समेत अन्य मध्य एशियाई देशों में मस्जिदों को लेकर संघर्ष होता चला आ रहा है कि मस्जिदों पर किसका वर्चस्व हो! इस संघर्ष ने अभी तक कई देशों को बर्बादी की कगार पर पहुँचाया है। लगता है अब भारत में ज्यादा मूर्ति किसकी हों इस संघर्ष ने जन्म ले लिया। घटनाओं को अंजाम देने वाले लोगों को देश के इतिहास की बहुत कम जानकारी है और आज हम यह सब इसी का नतीजा देख रहे हैं।

देश के स्वतन्त्रता संग्राम में शामिल भारत माता के सच्चे सपूतों और महापुरुषों की मूर्ति स्थापित करने की परम्परा रही है। स्वतन्त्रता के बाद क्रांतिकारियों और महापुरुषों की प्रतिमाओं की स्थापना की जाती रही है। ताकि देश के शासक और प्रजा इन वीरों के बलिदान को जेहन में जिन्दा रख सकें।  दूसरा हमारे देश में मूर्तियों के सहारे राजनीति करने की परम्परा कभी नहीं रही है लेकिन बदलते राजनैतिक दौर में कुछ दलों ने मूर्ति आधारित राजनीति शुरू कर दी है। उत्तर प्रदेश में बसपा कार्यकाल में जितनी मूर्तियां स्थापित की गइंर् उतनी शायद आजादी के बाद से नहीं की गयी होगी। एक किस्म से कहें तो क्रांतिकारियों और महापुरुषों के बलिदान और कार्यों को आज देश के राजनितिक दलों द्वारा बन्दरबाँट किया जा रहा है।

लेनिन हमारे कोई महापुरुष या आजादी के दीवाने सैनिक नहीं हैं वह वामदलों के राजनैतिक आस्था के प्रतीक हो सकते हैं। भारत देश में उनकी प्रतिमा स्थापित करने का कोई औचित्य भी नहीं है क्योंकि वह भारतमाता के धराधाम से जुड़े हुए नहीं हैं। इसके बावजूद लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस तरह तोड़फोड़ मनमानी करने का अधिकार किसी को भी नहीं है इसलिए जिसने भी मूर्तियों को तोड़कर आपसी समरसता पर हमला और हिंसा फैलाने की कोशिश की है उन्हें कड़ी सजा मिलनी चाहिए।

इतिहास इसका गवाह है कि आर्य समाज मूर्ति पूजा के पक्ष में नहीं रहा लेकिन मूर्तियों को इस तरह से नुकसान पहुंचाना बहुत ही गंभीर बात है क्योंकि ये सिर्फ चुनाव की राजनीति नहीं है, यह समाज और सभ्यता के नाम पर एक जंग की तैयारी हो रही है। मूर्तियों को तोड़ना या भीड़ के जरिए किसी को मारना आम जनता के बीच इस तरह की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। मुझे नहीं लगता कि यह सिलसिला जल्दी थमने वाला है। क्योंकि वर्तमान में इन घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए कोई नजर नहीं आ रहा है। माननीय प्रधानमंत्री जी की निंदा अपनी जगह ठीक है लेकिन भड़काऊ बयान देने वालों पर कार्रवाई भी होनी चाहिए। सवाल ये भी है कि क्या देश में राजनीतिक विरोध अब दुश्मनी में तब्दील होता जा रहा है? मूर्तियां गिराना क्या इसी उग्र राजनीतिक मानसिकता का नमूना है! हमारी पूरी राजनीति इसी तरफ जा रही है लोकतंत्र में जब तक ऐसी घटनाओं पर राजनीति रहेगी तब तक इन सभी घटनाओं को रोक पाना बहुत मुश्किल है।

इतना हिंसा भरा वातावरण तैयार कर दिया है कि लोगों को लग रहा है कि हम मूर्तियां तोड़ सकते हैं, दूसरों का कत्ल कर सकते हैं, किसी को जला सकते हैं, उसका वीडियो इंटरनेट पर डाल सकते हैं, अपना मुंह बिना छिपाए गर्व से कह सकते हैं कि हम लोगों की जान ले रहे हैं। मुझे लगता है अभी तो यह सिर्फ शुरुआत है कुछ दिनों में मंदिर-मस्जिद का मुद्दा भी रफ्तार पकड़ेगा। 2019 में चुनाव आने वाले हैं इसलिए मुझे लगता है कि यह सब चीजें अब बस बढ़ती ही जाएंगी। ऐसे में मूर्तियाँ और भगवान अपना बचाव खुद ही करें तो ठीक है।

-राजीव चौधरी

 

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