Menu
blogid : 3738 postid : 3208

Karthik Purnima: देर से क्यूं मनाते हैं देवता दीपावली?

Special Days
Special Days
  • 1020 Posts
  • 2122 Comments

दीपावली तो बीते तो आज कई दिन हो गए हैं लेकिन क्या इंसानों की दीपावली के बाद आती है देवों की दीपावली? अजीब बात है लेकिन यह सच है. प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिस तरह मनुष्य कार्तिक अमावस्या के दिन मनुष्य दीपावली मनाते हैं उसी तरह देवता कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपावली मनाते हैं. आइएं जानें आखिर देवताओं और मनुष्यों की दीपावली में यह अंतर क्यूं है?

Read: दीपावली व्रत कथा (Dipawali Vrat katha)


Kartik Puja 2012आखिर देर से क्यूं मनाते हैं देव दीपावली?

मान्यता है कि जिस प्रकार हम लोग कार्तिक की अमावस्या को दीपावली के रूप में मनाते हैं, उसी तरह देवता कार्तिक की पूर्णिमा को अपना दीपावली-महोत्सव मनाते हैं. ऐसा इसलिए कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु चार माह के समय चातुर्मास में योगनिद्रा में लीन रहते हैं. संपूर्ण जगत के पालक  श्री हरि के इस शयनकाल में समस्त मांगलिक कार्यो का स्थगित होना स्वाभाविक ही है. इसी कारण सनातन धर्म के पंचांगों में चातुर्मास में विवाह मुहू‌र्त्त नहीं दिए जाते हैं. कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु के योग-निद्रा से जग जाने के उपरांत ही विवाहादिशुभ कार्य पुन:शुरू होते हैं.

Read: कलयुग में विष्णु जी लेंगे यह अवतार



पति के बिना लक्ष्मीजी कैसे मनाएं दीपावली

हमारी दीपावली की तिथि कार्तिक -अमावस्या श्रीहरि के शयनकाल में होने से इस पर्व में विष्णु प्रिया लक्ष्मी का पूजन उनके पति के बिना होता है. तन्त्रशास्त्र के अनुसार कार्तिक की अमावस्या भगवती कमला की जयन्ती तिथि है. ऐसी मान्यता है कि समुद्र-मंथन से लक्ष्मीजीइसी दिन प्रकट हुई थी. दीपावली की लक्ष्मी-पूजा में दीपमालिका प्रज्वलित करते समय पढ़े जाने वाले मंत्रों से विष्णु-पत्नी लक्ष्मी को श्रीहरि के जगने से पूर्व जगाया जाता है. जिस प्रकार एक अच्छी पत्‍‌नी पति के उठने से पूर्व जगकर घर का काम संभाल लेती है, उसी तरह भगवान विष्णु जी की अर्धागिनी लक्ष्मी जी कार्तिक शुक्ल एकादशी में उनके जगने से पहले कार्तिक-अमावस्या में जाग्रत होकर लोक-पालन की व्यवस्था संभाल लेती हैं.


मान्यता है कि श्रीहरि ने भाद्रमास की एकादशी को शंखासुर राक्षस करने के बाद क्षीरसागर में शयन किया और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागे. इसे देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना गया. भगवान के जागने की खुशी में पांचवें दिन पूर्णिमा की रात देवों ने आह्लादित होकर गंगा, अन्य नदियों व सरोवरों के तट पर दीप जलाकर कर उत्सव मनाया. यह भी माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा को ही भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था. इसी दिन शिवजी के आशीर्वाद से दुर्गारूपिणी पार्वती ने महिषासुर वध के लिए शक्तियां अर्जित की थीं. इस दिन चंद्रोदय पर 6 कृतिकाओं -शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनसूया व क्षमा का पूजन मंगलकारी माना जाता है.

Also Read: Laxmi Pujan Vidhi


दान और स्नान का विशेष मुहूर्त

माना जाता है कि कार्तिका पूर्णिमा पर किए जाने वाला दान दस गुना फलदायी होगा. साथ ही इस दिन गंगा और यमुना, गोदावरी में स्नान का विशेष फल भी मिलता है. जो लोग किसी कारणवश गंगाजी जाने में असमर्थ हों, वह अपने घर के स्नानगृह में तुलसी और आंवले के चूर्ण को साफ पानी से भरी बाल्टी में डालकर नहा सकते हैं. इससे उन्हें भी गंगा-स्नान का पुण्य मिलता है.


भगवान भी करते हैं दान

कार्तिक पूर्णिमा पर मनुष्य ही नहीं देवता भी दान करते हैं, इसमें अन्न वस्त्र का दान महत्वपूर्ण माना जाता है. भगवान विष्णु श्रद्धालुओं के दान आदि से बेहद प्रसन्न होते हैं और वे संसार के निकट रहते हैं.


Also Read:

Ganesh Puja

Love Jokes in Hindi


Tag: Karthik Purnima, Karthik Purnima 2012, Karthik Purnima Vrat Katha, क्यूं मनाते हैं कार्तिक पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा 2012

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh