Menu
blogid : 3738 postid : 2665

सदाबहार संगीतकार आर. डी. बर्मन

Special Days
Special Days
  • 1020 Posts
  • 2122 Comments

संगीत के क्षेत्र में हर कोई नाम कमाता है लेकिन जिसने संगीत को आधुनिकता के साथ जोड़ा, उसकी विविधता को पहचाना और जिसने हर किसी को अपने संगीत पर गुनगुनाने के लिए मजबूर किया वह केवल एक ही हो सकता है और वह हैं हमारे राहुल देव बर्मन उर्फ पंचम दा. गानों में अगर एक स्वस्थ सेंस ऑफ ह्मूमर की बात की जाए तो पंचम दा उसमें काफी आगे थे. पंचम दा भारत के ऐसे संगीतकार थे जिन्होंने सिखाया कि कैसे माउथ ऑर्गन से भी संगीत का मजा लिया जा सकता है.


राहुल देव बर्मन (Rahul Dev Burman) का जन्म 27 जून, 1939 को कोलकाता (Calcutta) में हुआ. इनके पिता सचिन देव बर्मन (Schin dev Burman),  जो खुद हिन्दी सिनेमा के बड़े संगीतकार थे, ने बचपन से ही आर डी वर्मन को संगीत की दांव-पेंच सिखाना शुरु कर दिया था. राहुल देव बर्मन ने शुरुआती दौर की शिक्षा बालीगुंगे सरकारी हाई स्कूल, कोलकाता(Ballygunge Government High School, Calcutta ) से प्राप्त की. जब इनका जन्म हुआ था, तब अभिनेता अशोक कुमार (Actor Ashok kumar) ने देखा कि नवजात राहुल देव बर्मन (Rahul Dev Burman) बार बार पाँचवा स्वर “पा” दुहरा रहे हैं, तभी उन्होंने इनका नाम “पंचम ” रख दिया. आज भी अधिकतर लोग उन्हें पंचम दा (Pancham da ) के नाम से जानते हैं. महज नौ बरस की उम्र में उन्होंने अपना पहला संगीत ”ऐ मेरी टोपी पलट के” (Aye meri topi palat ke aa ) को दिया, जिसे फिल्म “फ़ंटूश” में उनके पिता ने इस्तेमाल किया. छोटी सी उम्र में पंचम दा ने “सर जो तेरा चकराये …” (Sar jo tera chakraaye) की धुन तैयार कर लिया जिसे गुरुदत्त (Guru dutt) की फ़िल्म “प्यासा” (Movie Pyaasa) में ले लिया गया. “प्यासा” (Pyaasa)  फिल्म का यह गाना आज भी लोगों के जुबान पर सुना जा सकता है. कम उम्र में ही उन्होंने संगीत (Music)  की अलग कला सीख ली थी. धीरे-धीरे जब राहुल देव बर्मन (Rahul Dev Burman) बड़े होने लगे तब वह एक बड़े और प्रख्यात संगीतकार बन गए. उनके द्वारा बनाए गए संगीत उनके पिता एस डी बर्मन के संगीत की शैली से काफ़ी अलग थे. आर डी वर्मन हिन्दुस्तानी के साथ पाश्चात्य संगीत का भी मिश्रण करते थे, जिससे भारतीय संगीत को एक अलग पहचान मिलती थी. लेकिन उनके पिता सचिन देव बर्मन को पाश्चात्य संगीत का मिश्रण रास नहीं आता था.


आर डी बर्मन ने अपने कॅरियर की शुरुआत बतौर एक सहायक के रुप में की. शुरुआती दौर में वह अपने पिता के संगीत सहायक थे. उन्होंने अपने फिल्मी कॅरियर में हिन्दी के अलावा बंगला, तमिल, तेलगु, और मराठी में भी काम किया है. इसके अलावा उन्होंने अपने आवाज का जादू भी बिखेरा. शोले फिल्म के ‘महबूबा-महबूबा’ गाने को कौन भूल सकता है. इस तरह से उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर कई सफल संगीत दिए, जिसे बकायदा फिल्मों में प्रयोग किया जाता था.


बतौर संगीतकार आर डी बर्मन की पहली फिल्म छोटे नवाब (1961) (Movie Chhote Nawab) थी जबकि पहली सफल फिल्म तीसरी मंजिल (1966) (Movie Teesri Manzil) थी. आर डी बर्मन ने इसका श्रेय गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी (Lyricist Majrooh Sultanpuri ) को दिया.


सत्तर के दशक के आरंभ में आर डी बर्मन भारतीय फिल्म जगत के एक लोकप्रिय संगीतकार बन गए. उन्होंने लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar), आशा भोसले (Asha Bhosle ), मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) और किशोर कुमार (Kishore Kumar) जैसे बड़े फनकारों से अपने फिल्मों में गाने गवाए. 1970 में उन्होंने छह फिल्मों में अपनी संगीत दी जिसमें कटी पतंग (Movie Kati Patang )काफी सफल रही.  यहां से आर डी बर्मन संगीतकार के रुप में काफी सफल हुए. बाद में यादों की बारात ( Movie Yaadon Ki Baraat ), हीरा पन्ना (Heera panna), अनामिका ( Anamika) आदि जैसे बड़े फिल्मों में उन्होंने संगीत दिया. आर डी वर्मन की बतौर संगीतकार अंतिम फिल्म 1942 लव स्टोरी ( Movie 1942: A Love Story ) रही. वर्ष 1994 में इस बड़े संगीतकार का देहांत हो गया.


पंचम दा संगीत के क्षेत्र में सदाबहार हैं. वह हजारों संगीतकारों में एक अलग और अनोखे संगीतकार थे. उनके द्वारा कंपोज किए अनेक यादगार गानें हमें कई वर्षों तक गुनगुनाने पर मजबूर करते रहेंगे.


Rahul Dev Burman, pancham da

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh