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भारत के एक पूर्व राष्ट्रपति बाल अवस्था में बहुत ही बुद्धिमान विद्यार्थी थे. बचपन में उनके पिता उन्हें स्कूल नहीं भेजना चाहते थे. वह उन्हें पंडित बनाना चाहते थे, लेकिन किसी ने ठीक ही कहा है प्रतिभा कितना भी छुपा लो वह सामने आकर ही रहती है. उनकी प्रतिभा को देखते हुए आखिरकार उनके पिता ने उन्हें स्कूल भेजने का निर्णय लिया. आज हम उन्हें भारत के दूसरे राष्ट्रपति के तौर पर जानते हैं और उनके जन्मदिन को हम ‘राष्ट्रीय शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाते हैं. उस महान हस्ती का नाम है डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन.
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स्कूल की शिक्षा प्राप्त करने के बाद सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 16 साल की उम्र में वेलोर कॉलेज में दाखिला लिया. इसी दौरान उनके माता-पिता ने उनकी शादी सिवकामुअम्मा से कर दी. 17 साल की उम्र में उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में दाखिला लिया और विषय के रूप में दर्शनशास्त्र को चुना. अपनी एमए की डिग्री हासिल करने के लिए उन्होंने वेदांत के सिद्धांत पर थीसिस लिखी जिसका शीर्षक था − ‘एथिक्स आफ वेदांत एंड इट्स मेटाफिजिकल प्रीपोजिशन्स’, जो उन आरोपों का जवाब था कि वेदांत व्यवस्था में सिद्धांतों के लिए कोई स्थान नहीं है. उनकी इस थीसिस पर प्रोफेसर एजी हाग ने टिप्पणी की कि डिग्री के लिए उन्होंने दूसरे वर्ष में जो थीसिस तैयार की वह दार्शनिक समस्याओं के मुख्य पहलुओं की जबरदस्त समझ दर्शाती है, ऐसी क्षमता जो अच्छी अंग्रेजी पर औसत पकड़ से ज्यादा होने के साथ जटिल दलील को आसानी से संभालती है. जब यह थिसीस प्रकाशित हुई उस समय राधाकृष्णन की उम्र महज बीस वर्ष थी.
राधाकृष्णन का जन्म बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था. वह इतने गरीब थे कि उनके घर में खाने के बर्तन तक नहीं थे. केले के पत्तों पर उनका परिवार भोजन करता था. एक बार की घटना है जब राधाकृष्णन के पास केले के पत्ते खरीदने के पैसे नहीं थे तब उन्होंने जमीन को साफ किया और जमीन पर ही भोजन किया.
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शुरुआती दिनों में सर्वपल्ली राधाकृष्णन महीने में 17 रुपए कमाते थे. इसी सैलरी से अपने परिवार का पालन पोषण करते थे. उनके परिवार में पांच बेटियां और एक बेटा थे. परिवार के जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्होंने कुछ पैसे उधार भी लिए, लेकिन समय पर ब्याज के साथ उन पैसों को वह लौटा ना सके जिसके कारण उन्हें अपने मैडल भी बेचने पड़े.
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इसके अलावा जब सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने देश का सर्वोच्च पद राष्ट्रपति का पदभार संभाला उस दौरान वह केवल 2,500 रुपए सैलरी के रूप में स्वीकार करते थे जबकि उस समय राष्ट्रपति को सैलरी के रूप में 10000 रुपए मिला करते थे. बाकी पैसों को वह हर महीने प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष में दान करते थे.
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